व्रज – भाद्रपद कृष्ण नवमी, शुक्रवार, 08 सितम्बर 2023
आज की विशेषता :- सभी वैष्णवों को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव व नन्द महोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई
श्रीजी में आज का सेवाक्रम :
- गत रात्रि शयनभोग अरोगकर प्रभु रात्रि लगभग 9.30 बजे जागरण में बिराज जाते हैं.
- रात्रि लगभग 11.45 को जागरण के दर्शन बंद होते हैं, भीतर रात्रि 12 बजे भीतर शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है.
- श्रीजी में जन्म के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते जबकि श्री नवनीतप्रियाजी में जन्म के दर्शन सीमित व्यक्तियों को होते हैं.
- प्रभु जन्म के समय नाथद्वारा नगर के रिसाला चौक में प्रभु को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इस अद्भुत परंपरा के साक्षी बनने के लिये प्रतिवर्ष वहां हजारों की संख्या में नगरवासी व पर्यटक एकत्र होते हैं.
- श्रीजी में प्रभु सम्मुख विराजित श्री बालकृष्णलालजी पंचामृत स्नान होता है, तदुपरांत महाभोग धरा जाता है जिसमें पंजीरी के लड्डू, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरिया घेवर, केशरिया चन्द्रकला, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, कई प्रकार के फल आदि अरोगाये जाते हैं.
- प्रातः लगभग 5.30 बजे महाभोग सराये जाते हैं. भोग सरे पश्चात नन्दबाबा (श्रीजी के मुखियाजी), यशोदाजी (श्री नवनीतप्रियाजी के मुखियाजी), गोपियों एवं ग्वाल (श्रीजी व नवनीतप्रियाजी के सेवक व उनके परिवारजन) को गहनाघर, दर्ज़ीखाना, उस्ताखाना आदि के सेवक तैयार करते हैं.
- अनोसर नहीं होने से श्रीजी में जगावे के कीर्तन नहीं गाये जाते.
- महाभोग सराने के पश्चात झारीजी नई आती है और श्रीकंठ में मालाजी नई धराई जाती हैं एवं आरसी चार झाड़ की आती है.
- इसके अलावा नंदमहोत्सव मे श्रृंगार, वस्त्र, साज़ इत्यादि जन्माष्टमी के दिन वाले ही रहते है.
- प्रातः लगभग 6.30 बजे नंदबाबा बने श्रीजी के मुखियाजी लालन में छठी पूजन को पधारते हैं और छठी पूजन के उपरांत पूज्य श्री तिलकायत श्री नवनीतप्रियाजी को श्रीजी में पधराते हैं.
- नंदबाबा व यशोदाजी श्रीजी के सम्मुख सोने के पलने में प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी को झुलाते है.
- नंदमहोत्सव के भोग में पलने की दाई तरफ रंगीन वस्त्र से ढँक कर दूधघर एवं खांडघर की सामग्री, माखन मिश्री तथा पंजीरी धरी जाती है वहीँ पलने की बायीं ओर पडघा के ऊपर झारीजी पधराये जाते है.
- १२ बिड़ी अरोगाई जाती हैं और चार आरती करके न्योछावर करके राई लोन (नमक) से नज़र उतारी जाती हैं.
- सभी भीतरिया, अन्य सेवक व उनके परिवारजन गोपियाँ ओर ग्वाल-बाल का रूप धर कर मणिकोठा में घेरा बनाकर नाचते-गाते हैं और दर्शनार्थी वैष्णवों पर हल्दी मिश्रित दूध-दही का छिडकाव करते हैं.
- नंदमहोत्सव के दर्शन लगभग 11 बजे तक खुले रहते हैं व दर्शन के उपरांत श्री नवनीतप्रियाजी अपने घर पधारकर मंगलभोग अरोगते हैं.
- वहीँ दूध-दही से सरोबार मणिकोठा, डोल-तिबारी रतन-चौक, कमल-चौक सहित पूरे मंदिर को जल से धोया जाता है.
- नंदमहोत्सव के पश्चात पूज्य श्री तिलकायत एवं श्री विशालबावा, नंदबाबा बने श्रीजी के मुखियाजी को कीर्तन समाज व ग्वाल-बाल की टोली के साथ श्री महाप्रभुजी की बैठक में पधराते हैं
- मंगला के दर्शन लगभग 12 बजे खुलते हैं. आज के दिन मंगला और श्रृंगार दोनों दर्शन साथ में होते हैं. उसी दर्शन में केवल टेरा लेकर मालाजी धरायी जाती है और श्रृंगार के कीर्तन गाये जाते हैं.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को कूर के गुंजा, कठोर मठड़ी, सेव के लड्डू व दूधघर में सिद्ध बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- ग्वाल दर्शन नहीं खोले जाते व राजभोग दर्शन दोपहर लगभग 2.00 बजे खुलते हैं. आगे का क्रम अन्य दिनों के जैसे ही होता है.
- राजभोग से शयन तक सभी समां में बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.
- जन्माष्टमी के दिन धराया हुआ श्रृंगार आज शयन मे बड़ा होता है.
श्रीजी दर्शन:
- साज : आज प्रभु श्रीनाथजी को अतिभारी तिहरा श्रृंगार धराया जाता है.
- जिसके तहत आज साज सेवा में लाल रंग की मलमल की सुनहरी ज़री के हांशिया (बड़े लप्पा वाली किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. चोखटा प्राचीन जडाऊ धराया जाता है.
- गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल वाले जडाऊ पधराये जाते है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.
- दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- वस्त्र
- स्त्र सेवा में आज श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी के रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित चाकदार वागा, पटका एवं चोली धरायी जाती है.
- सूथन लाल रंग का धराया है. लाल रंग का पीताम्बर चौखटे के ऊपर धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.
- श्रृंगार
- उत्सव के तीन जोड़ी के नवरत्नों (हीरा-पन्ना, माणक, मोती) के आभरण धराये जाते हैं.
- हांस, त्रवल, बघनखा आदि धराये जाते हैं.
- वैजयंतीमाला धरायी जाती है.
- श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर जमाव का शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
- पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.
- प्रभु के मुखारविंद पर केशर से कपोलपत्र किये जाते हैं.
- पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्वर्ण जड़ाव के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
- श्री चरणों में पैंजनिया, नुपुर, बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- खेल के साज में पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
- आरसी श्रृंगार में जड़ाऊ स्वर्ण की व राजभोग में उस्ताजी की बड़ी दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मनिकोठा में : ऐ री ऐ आज नन्द राय, सब ग्वाल नाचे गोपी गावे,
- महा मंगल मेहराने, उच्छ्व हो बढ़ कीजे
- डोल तिवारी में : आपुन मंगल, मंगल गाओ माई,
- जायो हो सुत, चिर जियो हो लाल
- रतन चौक में : नन्द के दधी, मेरे गोपाल, आज कुलाहल,
- ग्वाल देत है हेरी, गोकुल में बाजत
- नन्द महोत्सव पीछे : नैन भर देखो, आज नंदजू के द्वारे, पलना के 8 पद
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जय श्री कृष्ण. आप सभी को पुनः खूब-खूब बधाई।
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