व्रज – भाद्रपद शुक्ल पंचमी, बुधवार, 20 सितम्बर 2023
आज की विशेषता :- आज ऋषि पंचमी भी है. बारह महिना यह श्रृंगार आज ही होते है
- आज राधिकाजी की परमसखी श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव है. आज से राधाष्टमी की चार दिवस की झांझ (एक प्रकार का वाध्य) की बधाई बैठती है.
- चन्द्रावलीजी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन व्रज में रीठोरा ग्राम में चन्द्रभान गोप के यहाँ माता सुखमा की कोख से हुआ था.
- पुष्टिमार्ग में आपका विग्रह(स्वरुप) सदा 14 वर्ष, 4 मास और 20 दिन का माना जाता है.
- पुष्टिमार्ग में श्री चन्द्रावलीजी दो स्थानों पर प्रत्यक्ष दर्शन देतीं हैं. व्रज के गोकुल में प्रभु श्री गोकुलनाथजी के साथ और राजस्थान के कामवन में प्रभु श्री मदनमोहनजी के साथ आप विराजित हैं.
- श्री विट्ठलनाथजी (गुसांईजी) श्री चन्द्रावलीजी का प्राकट्य स्वरुप है. श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव स्वामिनीजी के उत्सव की भांति मनाया जाता है.
- आपका स्वरुप गौरवर्ण है अतः आज हाथीदांत के खिलौने और श्वेत वस्तुएं श्रीजी के सम्मुख श्री चन्द्रावलीजी के भाव से धरी जाती है.
- इसी भाव से श्रीजी को आज विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.
- आज श्रीजी को नील-पीत के वस्त्र एवं ग्वाल-पगा का श्रृंगार धराया जाता है. वर्षभर में यह श्रृंगार आज ही धराया जाता है जिसमें नीले (मेघश्याम) रंग के हांशिया वाले पीले रंग के पगा, वस्त्र और पिछवाई धरायी जाती है. पगा पर नीले रंग की बिंदी होती है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज श्रीजी में पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी की और आसमानी हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज पीली मलमल का आसमानी हांशिये वाला पिछोड़ा धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण मिलवा – हीरे, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी व वैजयन्ती माला धरायी जाती है.
- श्रीमस्तक पर पीले रंग का आसमानी किनारी और टिपकियों वाला ग्वालपाग (पगा) धराया जाता है जिसके ऊपर चमकना टिपारा का साज – मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में जड़ाव के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में टोडर धराया जाता हैं.
- श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी और वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
- खेल के साज में पट पीला व गोटी बाघ बकरी की आती है.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : बधाई कुंवर लली, श्री वृषभान रायजू के आँगन
- श्रृंगार : प्रकटी नागर रूप निधान
- राजभोग : चंद्रभान के बधाई, वृषभान के नवनिधि आई
- उत्थापन : महरजू याचन तुम पे आयो
- आरती : प्रगट भई वृषभान नंदिनी
- शयन : वृषभान के आनंद आज
- पोढवे : प्रगट भई शोभा त्रिभुवन की वृषभान
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
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जय श्री कृष्ण
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