व्रज – कार्तिक कृष्ण तृतीया, मंगलवार, 31 अक्टूबर 2023
आज की विशेषता :- आज से घन की सेवा प्रारम्भ. आज प्रभु को ‘राते पीरे टिपारा’ का श्रृंगार धराया जाता है.
- ‘राते पीरे’ देशी ब्रजभाषा का शब्द है जिसका हिन्दी अर्थ ‘लाल पीला’ होता है.
- आज से प्रतिदिन सरसलीला के कीर्तन गाये जाते हैं.
- प्रातः राग–बिलावल में, राजभोग आवें तब राग-सारंग में एवं शयन भोग आवें तब राग कान्हरो के कीर्तन गाये जाते हैं. ओसरा (बारी-बारी) से दो अथवा चार पद गाये जाते हैं.
- दीपावली के पूर्व अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं.
जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. - आज का श्रृंगार श्री स्वामिनीजी के भाव से धराया जाता है जिसमें लाल ज़री के चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर (राते पीरे) लाल ज़री का टिपारा, पीले तुर्री व पेच (मोरपंख का टिपारा का साज), गायों के घूमर में प्रभु विराजित हैं ऐसी पिछवाई आती है.
- आज की एक और विशेषता देखें तो प्रभु श्रीनाथजी में आगामी अन्नकूट की भोग सेवा के तहत आज से घन की सेवा प्रारम्भ होती है.
- पूज्य तिलकायत श्री की आज्ञा प्राप्त श्रीजी भक्त सेवक प्रातः मंगला समय अपने अपने टोल कहत ब्रिज्वासियाँ पद का गायन करते हुए श्रीजी मंदिर की परिक्रमा करते है. उनके साथ श्रीजी मंदिर के पंड्या परेशजी भी होते है.
- परिक्रमा के पश्चात विधि विधान से घन की सेवा प्रारंभ करवाई जाती है.
- घन की सेवा का भाव समझें तो प्रभु श्रीनाथजी की अन्नकूट की सामग्री सेवा में सबसे पहले पापड़ की सेवा होती है.
- पापड़ की सामग्री का मिश्रण लोट तैयार किया जाता है. जो वैष्णव पापड़ के लिए विविध सामग्रियों दालों का चून, मसाले आदि मिश्रित कर के तैयार करते है उनको ज्ञात है कि यह मिश्रण कठोर रहता है. अतः उसे सामग्री ले लायक बनाने के लिए काष्ठ के घन से कूटा जाता है. इस लिए इस सेवा को घन की सेवा कहते है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में आज श्रीजी में श्याम रंग के हांशिया वाली श्याम आधार वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. जिसमें गायों व बछड़ो को जरी के भारत काम से उकेरा गया गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे श्रीजी गायों के मध्य विराजित हों.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को लाल ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है.
- पीला पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र पीले दरियाई रेशमी वस्त्र के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण फिरोजा के धराये जाते हैं.
- श्री मस्तक पर लाल टिपारा का साज तुर्री, पेच, मोर चन्द्रिका एवं दोहरा कतरा ले साथ बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में फिरोजा के कुंडल धराये जाते हैं.
- कली कस्तूरी वैजन्ती माला माला धराई जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, फिरोजा के वेणुजी एवं दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट लाल का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.
- आरसी उत्सववत की दिखाई जाती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : गोद बैठे गोपाल कहत
- राजभोग : मदन गोपाल गोवर्धनधारी
- आरती : बोल लिए सब ग्वाल
- शयन : जयत जयत श्रीगोवर्धन उद्धरनधीरे
- मान : रूप रस पुंज बरनो
- पोढवे : रुच रुच सेज सजाई
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर टिपारा ही रहता है और लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.
जय श्री कृष्ण
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