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श्रीनाथजी में आज धनतेरस के आपके श्रृंगार

Divyashankhnaad by Divyashankhnaad
10/11/2023
in नाथद्वारा, श्रीनाथजी दर्शन
0
श्रीनाथजी में आज धनतेरस के आपके श्रृंगार
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व्रज – कार्तिक कृष्ण द्वादशी, शुक्रवार, 10 नवम्बर 2023

आज की विशेषता :- आज वत्स द्वादशी है लेकिन दीपावली चतुर्दशी को होने के कारण धनतेरस का श्रृंगार आज लिया गया हैं. इसी कारण धन तेरस की भावना रखी है.

  • आज धनवन्तरी जयन्ती है. श्री धनवन्तरी, भगवान विष्णु के 17वें अवतार, देवों के वैध व प्राचीन उपचार पद्दति आयुर्वेद के जनक हैं.
  • आज के दिन को धनतेरस भी कहा जाता है. व्रज में गौवंश ही धन का स्वरुप है अतः श्री ठाकुरजी एवं व्रजवासी गायों का श्रृंगार करते हैं, उनका पूजन करते हैं एवं उनको थूली खिलाते हैं.
  • आज से चार दिवस दीपदान का विशेष महत्व है अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रौशनी की जाती है.
  • आज नन्दरानी यशोदाजी भौतिक लक्ष्मीजी की प्रतिमा को स्नान करा, श्रृंगार कर प्रभु के सम्मुख रखती हैं एवं बालक के पहनने के आभूषण को धोती हैं जिससे श्रीजी में मंगला दर्शन उपरांत ‘धन धोवत व्रजरानी’ जैसे पद गाये जाते हैं.
  • श्रीस्वामिनीजी ने श्रीठाकुरजी को अपना सर्वस्व मान कर धन के रूप में प्राप्त किया है ऐसा भाव भी है जिसे प्रदर्शित करते पद भी प्रभु के सम्मुख गाये जाते हैं – ‘राधा मन अति मोद बढ्यो है, मनमोहन धन पाई.’
  • आज की सेवा ललिताजी के भाव की है.
  • उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
  • चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
  • पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल भरा जाता हैं.
    गेंद, चौगान, दिवाला सभी सोने के आते हैं. आज दिनभर प्रभु को भोग स्वर्ण पात्रों में धरे जाते हैं.
  • श्रीजी को आज नियम के हरी सलीदार ज़री के चाकदार वागा एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है. कत्थई आधारवस्त्र पर कला बत्तू के सुन्दर काम से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया पर मखमल की खोल आती है.
  • कार्तिक कृष्ण दशमी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं.
  • ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी.
  • इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त चन्द्रकला अरोगायी जाती है.
  • उत्सव होने के कारण विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
  • राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
  • सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव आदि अरोगाये जाते हैं. अदकी में गेहूं के रवा की खीर अरोगायी जाती है.
  • भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकयुक्त सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं.

श्रीजी दर्शन

  • साज
    • साज सेवा में श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल के ऊपर सुनहरी सिलमा सितारों के कशीदे के ज़रदोशी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है.
    • गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है.
  • वस्त्र
    • वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज हरे रंग सलीदार ज़री की सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं.
    • ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
  • श्रृंगार
    • श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
    • मिलवा – हीरा, मोती, प्रमुखतया माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
    • हांस, कड़ा, हस्त सांखला आदि सर्व श्रृंगार धराये जाते हैं.
    • श्रीमस्तक पर हरे रंग की सलीदार ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर अनारदाना को पट्टीदार सिरपैंच (दोनों ओर मोती की माला से सुसज्जित), पन्ना की लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
    • श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
    • श्रीकंठ में टोडर धराया जाता है.
    • श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
    • पीठिका के ऊपर स्वर्ण का हीरा जड़ित चौखटा धराया जाता है.
    • श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (माणक व पन्ना के) धराये जाते हैं.
    • प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
    • खेल के साज में पट हरा, गोटी शतरंज की सोने की व आरसी लाल मखमल की आती है.
    • आरसी चाँदी की काँच के कलात्मक काम की आती है.
  • श्रीजी की राग सेवा:
    • मंगला : गोकुल गोधन पूज ही गिरधर
    • राजभोग : गोधन पूजा करके गोविंद सब ग्वालन पहेरावत
    • आरती : खेलन को सब गाय बुलाई
    • शयन : दीपदान दे हटरी बैठे
    • पोढवे : रचित रुचिर तर सेज बनाई

सायंकालिन सेवा भावना :

  • शयन समय मणिकोठा में हांडी में रौशनी की जाती है, दीपक का पाट साजा जाता है और रंगोली मांडी जाती है.
  • निज मन्दिर में रौशनी का झाड़ आता है.
    डोलतिबारी में आज से रौशनी नहीं की जाती.
  • आज से श्रीजी को प्रतिदिन उत्थापन के फल भोग में गन्ना के टूक (छीले हुए गन्ना के टुकड़े) अरोगाये जाने प्रारंभ हो जाते हैं.
  • ये सामग्री प्रतिदिन आगामी डोलोत्सव तक अरोगायी जाती है.
  • संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़ेकर छोटे (छेडान के) श्रृंगार धराये जाते हैं.
  • श्रीमस्तक पर लूम, तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.
  • शयन समय प्रभु बंगले (हटड़ी) में बिराजते हैं.
  • मनोरथ के रूप में विविध सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.
  • आज शयन उपरांत नाथद्वारा के आसपास के विभिन्न गावों से ग्रामीण लोग अपने खेतों से और श्रीजी के बगीचों से ठाकुरजी को अन्नकूट पर अरोगाने के लिए आज बैलगाड़ियों में भरकर पालक की भाजी लाते हैं. चतुर्दशी के पूरे दिन भाजी की सेवा चलती है.
  • दशमी से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.
  • इसके अतिरिक्त दशमी से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.
  • श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
  • नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.

जय श्री कृष्ण
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