व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा, मंगलवार, 28 नवम्बर 2023
आज की विशेषता :- आज सारे दिन की सेवा श्री ललिताजी की है जिससे आपके स्वरुप एवं श्रृंगारवत प्रभु के श्रृंगार होते हैं.
- हमारे पुष्टिमार्ग की सेवा में कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं पौष मास श्री ललिताजी की भाव सेवा के मास हैं.
- आज से इस मार्गशीर्ष मास का प्रारंभ होता है. श्री ललिताजी की सेवा का यह दूसरा मास है. इस मास में व्रतचर्या के पद होते है और पूर्णिमा के दिन उद्यापन के रूप में छप्पन भोग होता है.
- श्री ललिताजी ही दामोदर दास हरसानी स्वरुप में श्री वल्लभ के संग है.
- इसी भाव से मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा पर श्रीजी में नियम (घर) का छप्पनभोग महोत्सव होता है.
- व्रतचर्या के पदों में अष्टपदी कई बार होती है. जिनमे नवरस की झलक ब्रज साहित्य में दिखती है. ये नवरस इन मासों में सिद्ध होते है.
- इसी भाव से कीर्तन भी खंडिता, हिलग, मिषांतर, मान, व्रतचर्या, शीतकालीन चित्रसारी, रंगमहल आदि के गाये जाते हैं.
- हेमंत ऋतू के इस प्रथम मास में प्रभु ने वस्त्रहरण लीला की इसलिए इस मास में प्रभात की सेवा जल्दी होती है.
- इसका दूसरा भाव देखे तो कार्तिक मास में अन्नकूट महा महोत्सव आ गया था. इस मास में ‘गोपमास’ के भाव से विविध सेवा, सामग्रियां एवं उत्सव होते हैं.
- मार्गशीर्ष एवं पौष मास में हेमंत ऋतु होने से शीतकालीन सेवा में प्रभु सुखार्थ विविध नूतन पौष्टिक सामग्रियाँ अरोगायी जाती है. जिनमे उड़द की रोटी, टिकड़ा, चूरमा, सुहागसोंठ, अदरक के प्रकार, लोंग के प्रकार आदि शामिल है.
- जडाऊ श्रृंगार धराये जाते हैं. जिनमे पन्ना, माणक, पिरोजा, पुखराज आदि के कुल्हे, टिपारा, पगा आदि धराये जाते है.
- वहीँ वस्त्र भी मोतियों के फूल वाले, फतवी, घुंडियों के बंद, बंधेबंध के वागा, दुहेरा वस्त्र, रुई के निकलमा गद्दल, तथा स्वर्ण, हीरा आदि की पाग आदि धराये जाते है.
- मार्गशीर्ष अर्थात ‘गोपमास’ एवं पौष अर्थात ‘धनुर्मास’ अत्यधिक सर्दी वाले मास हैं, अतः देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन से बसंत पंचमी तक पुष्टि स्वरुप निज मंदिर से बाहर नहीं पधारते.
श्री नवनीतप्रियाजी आदि जो स्वरुप पलना झूलते हैं उनके पलना के दर्शन भी निज मंदिर में ही होते हैं. - यह श्रीजी एवं पुष्टि में गोपमास की सेवा भावना है. इसका लौकिक में भाव देखे तो शीत ऋतू को सर्वोत्तम माना गया है. क्योंकि इन महीनों में आप पौष्टिक भोजन कर सकते है. दैहिक व्यायाम कर सकते है. मनभावन सुन्दर वस्त्र आभूषण धारण कर सकते है जो अन्य ऋतुओं में संभव नहीं है. वहीँ हिलग की भावना के अनुसार संगीतमय आनंदित जीवन का रसास्वादन कर सकते है, यह भी अन्य ऋतुओं में संभव नहीं है. एक और दुर्लभ गुण जो केवल पुष्टि में ही संभव है, वह है ललिता भाव अर्थात अनेक ललित कलाओं का ज्ञाता ही प्रभु सेवा, भजन और अपने जीवन में ललितता ला सकता है.
- अर्थात इस भूलोक पर सर्वश्रेष्ठ आनंद जीवन जीने की कला कही उपलब्ध है तो केवल श्रीजी के सानिध्य में. आप स्वयं परख लीजिये.
- गोपमास के आरंभ पर श्रीजी को आज विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग की सखड़ी में मूंग की द्वादसी व खाडवे को अरोगाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में श्रीजी में आज गहरे लाल साटन की सुनहरी ज़री के ज़रदोज़ी के जायफल की बेल वाली एवं हरे रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी, पडघा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज गहरे लाल रंग की साटन का सुनहरी ज़री की बूटी के काम वाले व रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित चोली, घेरदार वागा व सूथन धराये जाते हैं.
- लाल एवं सफेद रंग के मोजाजी धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र सफेद लट्ठा के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- पन्ना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर पतंगी (गहरे लाल) साटन की सुनहरी ज़री की बूटी वाले चीरा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- एक रंग-बिरंगे पुष्पों की एवं दूसरी पीले पुष्पों की कलात्मक मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. - खेल के साज में पट लाल, गोटी छोटी सोना की व
- श्रीजी को आरसी श्रृंगार में स्वर्ण की एवं राजभोग में बटदार दिखाई जाती है.
- चोरसा स्याम सुरु का आता हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : ब्रजानन्द कंदम
- राजभोग : आये जू अरसाने
- आरती : सुन मुरली की टेर
- शयन : ऐ सिर सोने सुतन सोहत
- मान : लालन मनायो न मानत
- पोढवे : लागत है अत शीत
सायंकालिन सेवा भावना :
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं.
- त्रवल बड़े नहीं किये जाते और श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
जय श्री कृष्ण
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