व्रज – फाल्गुन शुक्ल सप्तमी, शनिवार, 16 मार्च 2024
आज की विशेषता :- आज श्री मथुराधीशजी का पाटोत्सव है और श्रीजी में परमपूज्य गौस्वामी तिलकायत श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) का जन्मदिवस है. इन शुभ प्रसंगों की तिलकायत परिवार व समस्त पुष्टि-सृष्टि को बधाई.
श्रीजी का सेवाक्रम :
- तिलकायत का जन्मदिन होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को पूजन कर हल्दी मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- श्रृंगार दर्शन में सेहरे के भाव की चित्रांकन की पिछवाई आती है जिसे ग्वाल दर्शन में बड़ा कर लिया जाता है.
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में मीठी सेव, केशरयुक्त पेठा और छहभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात एवं नारंगी भात) अरोगाये जाते हैं.
- प्रभु के श्री अंग पर एक गुलाल की व एक अबीर की पोटली बाँधी जाती है.
- राजभोग में गुलाल, अबीर एवं चन्दन से अन्य दिनों की अपेक्षा भारी खेल किया जाता है. खेल के समय फेंट से गुलाल उड़ायी जाती है.
- फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी के पाटोत्सव) से श्रीजी में गुलाल-कुंड के मनोरथ प्रारंभ हो जाते हैं.
- नियम नहीं है परन्तु उसी श्रृंखला में आज भी राजभोग से संध्या-आरती गुलाल-कुंड का मनोरथ होता है और सभी प्रकार की सामग्रियां मनोरथ के रूप में अरोगायी जाती हैं.
श्रीजी दर्शन
- साज
- राजभोग में आज सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से भारी मात्रा में कलात्मक खेल किया जाता है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- रजत के एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- आज श्रीजी को पतंगी रंग का, रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं राजशाही पटका धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
- प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.
- अत्यधिक गुलाल खेल के कारण वस्त्र लाल प्रतीत होते हैं.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण लाल, हरे, मेघश्याम एवं सफ़ेद मीना व स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर पतंगी रंग के दुमाला के ऊपर स्वर्ण का मीनाकारी का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- दुमाला के दायीं ओर सेहरे की मीना की चोटी धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्री कंठ में एक चन्द्रहार व दो माला अक्काजी की धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ मिलवा धराई जाती है.
- पट चीड़ का व गोटी चाँदी की आती है.
- भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है.
- आरसी उत्सववत दिखाई जाती है.
संध्याकालिन सेवा
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के श्रृंगार बड़े किये जाते हैं.
- शयन दर्शन में श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर सेहरा के स्थान पर स्वर्ण की सुन्दर पाग धरायी जाती है.
- लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते. फाग के भाव की रंग-पंचमी के दिन धरायी जाने वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. वस्त्र आदि परिवर्तित नहीं किये जाते है.
- श्रीजी की राग सेवा: श्रीजी की राग सेवा में आज
- मंगला : अनोखे होरी खेलन लागे
- राजभोग : अष्टपदी, नन्द गाँव को पाण्डे,
- नन्द कुंवर को कुंवर कन्हैया होरी खेलत
- आरती : गोकुल राज कुमार कमल दल लोचना
- शयन : होरी को सुख अद्भुत मोपे
- पोढवे : चले हो भावते रस एन
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- श्रीजी के कपोल पर गुलाल अबीर से सुन्दर चित्रांकन किया जाता है.
- राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर पोटली से गुलाल अबीर उडाये जाते है.
- सायंकालिन भोग दर्शनों के भोग में खेल के साज के भोग अरोगाये जाते है जिसमे सूखे मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
जय श्री कृष्ण
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