व्रज – फाल्गुन शुक्ल बारस, गुरूवार, 21 मार्च 2024
आज की विशेषता :- द्वितीया पाट के दिन तक प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जा रहे हैं. इसी कड़ी में आज द्वादशी का श्रृंगार धराया जाता हैं.
श्रीजी में सेवाक्रम :
- आज सभी समय झारीजी यमुनाजल से भरी जाती है और दो समय आरती थाली में होती है.
- फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां आज से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को अरोगायी जाती हैं.
- इस श्रृंखला में श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में बूंदी के बड़े लड्डु अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग में इन दिनों भारी खेल होता है. पिछवाई पूरी गुलाल से भरी जाती है और उस पर गुलाल से दोहरी चिड़िया मांडी जाती है.
- राजभोग के खेल में तीन बिंदी लगायी जाती हैं और भारी खेल होता है और अबीर की टिपकियां की जाती है.
- आज प्रभु की दाढ़ी रंगी जाती है और खेल के समय गुलाल भी फेंट (पोटली) में भर कर वैष्णवों पर उड़ाई जाती है. ठाडे वस्त्र सबसे खेले.
श्रीजी दर्शन
- साज
- आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है एवं दोहरी चिड़िया माँड़ी जाती हैं.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- आज श्रीजी को श्वेत लाल बसंत के किनारी का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं.
- लाल रंग का कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है.
- ठाडे वस्त्र गहरे हरे रंग के धराये जाते हैं जो सबसे खेलते है.
- सभी वस्त्र दोहरी रुपहली ज़री की किनारी से सजे होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
- प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं व दाढ़ी भी रंगी जाती है.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हरे मीना के स्वर्ण जडित धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल चीला वाली पाग के ऊपर सुनहरी फोंदना का मोर का क़तरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते वहीँ कंठी धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- पट चीड़ का, गोटी चांदी की आती है.
- आरसी श्रृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में छोटी आती है.
संध्याकालिन सेवा
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े किये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा: श्रीजी की राग सेवा में आज
- मंगला : रस सरस बसो बरसाने जू
- राजभोग : डोल के पद धनाश्री के, सुन्दर श्याम सुजान शिरोमन
- मेरे नवरंग बिहारी
- आरती : ढोटा दोऊ राय के खेलत डोलत फाग
- शयन : दो तुक – मोहना रस मत पियारी, डोल झुलत है गिरधर नवल लाला
- पोढवे : चले हो भावते रस एन
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- श्रीजी के कपोल पर गुलाल अबीर से सुन्दर चित्रांकन किया जाता है.
- राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर पोटली से गुलाल अबीर उडाये जाते है.
- सायंकालिन भोग दर्शनों के भोग में खेल के साज के भोग अरोगाये जाते है जिसमे सूखे मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
जय श्री कृष्ण
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