व्रज – फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी (द्वितीय), शनिवार, 23 मार्च 2024
आज की विशेषता :- आज अधिक का छप्पन भोग.
- फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो गये हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है.
- ये श्रृंगार द्वितीया पाट तक धराये जायेंगे. ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.
- इसी शृंखला में आज चतुर्दशी का श्रृंगार धराया जाता हैं.
- सभी समय की झारीजी यमुनाजल से भरी जाएगी. दो समय आरती थाली में की जाएगी.
- आज नियम का श्रृंगार है जिसमें श्वेत चंदन की बुटी के किनारी वाले वस्त्र के घेरदार वागा और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग एवं मच्छीघाट का सुनहरी कतरा धराया जाता हैं.
- फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी.
- इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में घेवर अरोगाया जाता हैं.
राजभोग में इन दिनों भारी खेल होता है. पिछवाई पूरी गुलाल से भरी जाती है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है. - प्रभु की कमर पर एक पोटली गुलाल की बांधी जाती है.
- ठोड़ी (चिबुक) पर तीन बिंदी बनायी जाती है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से भारी खेल किया जाता है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- आज श्रीजी को श्वेत चंदन की बुटी के किनारी का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं.
- कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है.
- ठाडे वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.
- अत्यधिक गुलाल खेल के कारण वस्त्र लाल प्रतीत होते हैं.
- सभी वस्त्र दोहरी रुपहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
- प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं व दाढ़ी भी रंगी जाती है.
- श्रृंगार
- आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण फिरोजा एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर मच्छीघाट का सुनहरी कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते वहीँ कंठी धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फिरोजा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- पट चीड़ का, गोटी चांदी की आती है.
- आरसी श्रृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में छोटी डांडी की आती है.
- भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है.
संध्याकालिन सेवा
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं.
- शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.
- श्रीजी की राग सेवा: श्रीजी की राग सेवा में आज
- मंगला : रस सरस बसो बरसाने जू
- राजभोग : डोल के पद धनाश्री के
- आरती : ढोटा दोऊ राय के खेलत डोलत फाग
- शयन : दो तुक – मोहन रस मत पियारी
- डोल झुलत है गिरधर नवल नन्द लाला
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- श्रीजी के कपोल पर गुलाल अबीर से सुन्दर चित्रांकन किया जाता है.
- राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर पोटली से गुलाल अबीर उडाये जाते है.
- सायंकालिन भोग दर्शनों के भोग में खेल के साज के भोग अरोगाये जाते है जिसमे सूखे मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
जय श्री कृष्ण
………………………
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
………………………