व्रज – चैत्र कृष्ण पंचमी, शनिवार, 30 मार्च 2024
आज की विशेषता :- आज की पंचमी को रंग-पंचमी कहा जाता है. आज नियम के वस्त्र श्रृंगार धराये जाते है. वस्त्रों के रंग में परिवर्तन हो सकता है.
- उत्तर भारत में विशेषकर मध्य-प्रदेश, राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में आज के दिन सूखे और गीले रंगों से होली खेली जाती है.
- पुष्टिसंप्रदाय के अलावा अन्य मर्यादामार्गीय मंदिरों में आज रंगपंचमी को प्रभु स्वरूपों को होली खेलायी जाती है और आगामी चैत्र कृष्ण एकादशी को डोल झुलाये जाते है.
- श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी माला-तिलक रक्षण हेतु कश्मीर पधारे थे. श्री गोवर्धनधरण प्रभु ने आपको वसंत खेलाने और डोल झुलाने की आज्ञा की.
- आपश्री डोल पश्चात पधारे और लौटने में विलम्ब होने से प्रभु ने पुनः अपनी इच्छा दोहराई अतः आपने उस वर्ष श्रीजी को आज के दिन पुनः वसंत खेलाये और आगामी एकादशी को डोल झुलाये.
- श्री गोवर्धनधरण प्रभु जतीपुरा से राजस्थान पधारे उपरांत राजस्थान की रंग-बिरंगी संस्कृति से प्रेरित श्री दामोदरलालजी महाराज ने अपनी कुमारावस्था में फाग की सवारी का प्रारंभ किया.
- इस सवारी के चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में साजी जाती है. यह पिछवाई इसके अतिरिक्त कुंज-एकादशी के दिन शयन समय भी साजी जाती है.
- आज नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. यह श्रृंगार प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.
- अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.
- जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.
- जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- आज श्रीजी में हाथी के ऊपर सवारी, पृष्ठभूमि में महल, व्रजभक्तों के साथ होली खेल आदि के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- जडाऊ स्वर्ण के एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- श्रीजी को आज लाल सफ़ेद ज़री का सूथन, दोनों काछनी, लाल रास-पटका एवं मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली धराये जाते हैं.
- सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र सफेद लट्ठा के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- स्वर्ण व गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर मीना की मुकुट टोपी के ऊपर मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर मोती की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
- श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्री कर्ण, श्री मस्तक, श्री हस्त और चोटीजी पर छोगाजी धराये जाते है.
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, सोने के झीने लहरिया के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- पट लाल व गोटी नाचते मोर की आती है. आरसी उत्सववत दिखाई जाती है.
संध्याकालिन सेवा
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण, मुकुट, टोपी, पीताम्बर, चोली व दोनों काछनी बड़े किये जाते हैं.
- शयन दर्शन में मेघश्याम चाकदार वागा व लाल तनी धरायी जाती है.
- श्रीमस्तक पर लाल गोलपाग के ऊपर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
- आभरण फूलों के छेड़ान के (छोटे) धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा: श्रीजी की राग सेवा में आज
- मंगला : नन्द सदन गुरुजन की
- राजभोग : कुञ्ज भवन ते निकसे राधा माधव
- आरती : बन्यो मोर मुकुट नटखट वपु
- शयन : चलो क्यों न देखे खरे दोऊ
- मान : केदारो के पद
- पोढवे : कुञ्ज में पोढ़े पिय प्यारी
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- श्रीजी के कपोल पर गुलाल अबीर से सुन्दर चित्रांकन किया जाता है.
- राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर पोटली से गुलाल अबीर उडाये जाते है.
- सायंकालिन भोग दर्शनों के भोग में खेल के साज के भोग अरोगाये जाते है जिसमे सूखे मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
जय श्री कृष्ण
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