व्रज – ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया, रविवार, 26 मई 2024
आज की विशेषता :- आज प्रभु को नियम से मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीजी को ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया से आषाढ़ शुक्ल एकादशी तक प्रभु को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जाते हैं. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं.
- इनमें कुछ श्रृंगार नियत हैं यद्यपि कुछ मनोरथी के द्वारा आयोजित होते हैं. इसके अतिरिक्त उसी दिन से खस के बंगला और मोगरे की कली और पुष्पों के बंगला के मनोरथ भी प्रारंभ हो जाते हैं.
- उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और श्रृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के श्रृंगार की भोग सामग्री संध्या-आरती में ली जाती हे.
- संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं.
- कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं.
- इसमें प्रभु श्रमित होवें इस भाव से अधिक ग्रीष्म हों तब कली के श्रृंगार के अगले दिन प्रभु को अभ्यंग कराया जाता है.
सूर्य रोहिणी नक्षत्र में हैं
- ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा (शुक्रवार, 24 मई 2024) रात्रि 3 बजकर 17 मिनिट से आगामी ज्येष्ठ शुक्ल एकम (शुक्रवार, 07 जून 2024) सायं 1:06 तक सूर्य रोहिणी नक्षत्र में हैं.
- अति ऊष्ण के इन दिनों में प्रभु को चंदन धराया जाना प्रशस्त (उत्तम) माना गया है.
- यद्यपि पूरे ऊष्णकाल में प्रभु सेवा में चन्दन प्रयुक्त होता है परन्तु इस अवधि में विशेष रूप से श्रीजी को ताप निवारणार्थ चन्दन धराना, विशेषकर चन्दन की चोली, चन्दन की गोली धराना, लपट-झपट, खस-खाना, जल-विहार और नौका-विहार के मनोरथ, शीतल जल से स्नान (संध्या-आरती पश्चात) आदि किये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन
- साज
- श्रीजी में आज शरबती रंग की मलमल की बिना किनारी की पिछवाई सजाई जाती है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- तीन पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी और तीसरे पडघा पर श्वेत माटी के कुंजा में शीतल जल भरकर पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को शरबती मलमल की गोल छोर वाली बिना किनारी की परधनी धरायी जाती है.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मोती के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर शरबती रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
- आज मोती का चोलड़ा धराया जाता हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं कटि पर चांदी के वेत्रजी धराये जाते हैं.
- खेल के साज में आज पट उष्णकाल का और गोटी हक़ीक की छोटी पधरायी जाती है.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है.
- आरसी नित्यवत चांदी वाली वाली दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : पतित पावन करे
- राजभोग : बन बन में बनवारी
- फूल के श्रृंगार : फूल के भवन गिरिधर नवल
- आरती : दरस जाय देरी जाके दरस को
- शयन : पायन चन्दन लगाऊं
- मान : मान नी मान मेरो कह्यो
- पोढवे : रावटी सुख सेज पोढ़े
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
जय श्री कृष्ण
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