व्रज – ज्येष्ठ शुक्ल तेरस, गुरूवार, 20 जून 2024
आज की विशेषता :-
- आज नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गिरिधारीजी महाराज श्री (वि.सं.१८९९) का उत्सव है. आज ही ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल भर कर अधिवासन किया जायेगा.
- उत्सव सेवाक्रम :-
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.
- प्रभु को नियम के वस्त्र और श्रृंगार
- केसरी धोती, पटका व दुमाला के ऊपर सेहरा धराया जाता है.
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में खंडरा प्रकार अरोगाये जाते हैं. - खंडरा प्रकार प्रसिद्द गुजराती व्यंजन खांडवी का ही रूप है. इसे सिद्ध करने की प्रक्रिया व बहुत हद तक उससे प्रेरित है, केवल खंडरा सिद्ध कर उन्हें घी में तला जाता है फिर अलग से घी में हींग-जीरा का छौंक लगाकर खांड का रस पधराया जाता है और तले खंडरा उसमें पधराकर थोडा नमक डाला जाता है. प्रभु सेवा में इस सामग्री को खंडरा की कढ़ी कहा जाता है और यह सामग्री वर्ष में कई बार बड़े उत्सवों पर व विशेषकर अन्नकूट पर अरोगायी जाती है.
- भोग समय फीका में घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.
ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल भरने तथा अधिवासन सेवाक्रम :
- तिलकायत श्री राकेशजी महाराज और श्री विशालबावा आज प्रातः श्रृंगार उपरांत श्रीजी को ग्वाल भोग धरकर श्रीजी व श्रीनवनीतप्रियाजी के मुखियाजी, भीतरिया व अन्य सेवकों, वैष्णवजनों के साथ श्रीजी मन्दिर के दक्षिणी भाग में मोतीमहल के नीचे स्थित भीतर की बावड़ी पर ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल लेने पधारेंगे.
- स्वर्ण व रजत पात्रों में जल भर कर लाया जायेगा और शयन के समय इस जल का अधिवासन किया जायेगा.
- पुष्टिमार्ग में सर्व वस्तु भावात्मक एवं स्वरूपात्मक होने से अधिवासन अर्थात जल की गागर का चंदन आदि से पूजन कर भोग धरकर उसमें देवत्व स्थापित कर बालक की रक्षा हेतु अधिवासन किया जाता है.
- अधिवासन में जल की गागर भरकर उसमें कदम्ब, कमल, गुलाब, जूही, रायबेली, मोगरा की कली, तुलसी, निवारा की कली आदि आठ प्रकार के पुष्पों चंदन, केशर, बरास, गुलाबजल, यमुनाजल, आदि पधराये जाते हैं.
- अधिवासन के समय यह संकल्प किया जाता है. “श्री भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्च: स्नानयात्रोत्सवार्थं ज्येष्ठाभिषेकार्थं जलाधिवासनं अहं करिष्ये l”
कल ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल मंगला समय प्रभु को इस जल के 108 धड़ों (स्वर्ण पात्र) से प्रभु का ज्येष्ठाभिषेक कराया जायेगा. सवा लाख आमों का भोग लगाया जायेगा.
श्रीजी दर्शन
- साज
- श्रीजी में आज केसरी मलमल की, उत्सव के कमल के काम वाली एवं रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी गया है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- तीन पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी और तीसरे पडघा पर श्वेत माटी के कुंजा में शीतल जल भरकर पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को केसरी मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया गया है.
- दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज मध्य से दो अंगुल नीचे (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मोती व उत्सव के मिलवा धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मोती का सेहरा पर पांच हीरा के फूल एवं बायीं ओर शीशफूल धराये हैं. दायीं ओर सेहरे की हीरे की चोटी धरायी गयी है. मोती की बग्घी धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में कली आदि सब माला धरायी जाती है. आज हांस-त्रवल नहीं धराये जाते.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में दो कमल की कमलछड़ी, जड़ाव मोती के वेणुजी एवं कटि पर दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- खेल के साज में आज पट उष्णकाल का और गोटी राग-रंग की पधरायी जाती है.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा उत्सववत धराई जाती है.
- आरसी श्रृंगार में पीले खंड की व राजभोग में सोने की डांडी की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : यह विनती चित्त धरिये श्री यमुनाजी
- राजभोग : आज बने गिरधारी दुल्हे, केसर की धोती पहरे
- आरती : चितेवो छांड दे री राधा
- शयन : बैठे ब्रजराज कुंवर
- मान : राधेजू के प्राण गोवर्धनधारी
- पोढवे : रंग महल गोविन्द
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
जय श्री कृष्ण
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