व्रज – श्रावण शुक्ल पूर्णिमा, सोमवार, 19 अगस्त 2024
आज की विशेषता :- आज श्रीजी में रक्षाबंधन के साथ नि.ली. गौस्वामी श्री दामोदरजी का प्राकट्योत्सव भी है. आप सभी को बधाई.
- वैसे तो राखी त्यौहार के विषय में हम सभी भलीभांति जानते है. परन्तु युवाओं के लिए थोड़ी सी जानकारी साझा करते है. हमारी संस्कृति में राखी जिसे रक्षा कहते है का प्रारंभ लगभग राजा बलि के समय से हुआ. इसलिए आज के दिन रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है-
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
अर्थात “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे! तुम अडिग रहना, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।” रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। जो सूत के धागे से लगाकर सोने तक का हो सकता है. इस त्यौहार को श्रावणी अथवा सलूनो भी कहते है. इसमें लक्ष्मीजी ने भगवन विष्णु को राजा बलि से छुडाया था. - कृष्ण और द्रौपदी की का भाव भी है, जिसमे युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने अपनी साड़ी मे से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट मे द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था।
- गर्गादिक ऋषि, गुरु आदि भी राखी बांधते हैं.
- माताएं यशोदा भाव से लालन की रक्षा हेतु राखी बांधती है. सार्वजानिक रूप नेता भी राखी बंधवाते है.
- एक भावना के अनुसार यह पर्व पुष्टी में श्री यमुनाजी के भाव से मनाया जाता है. यमुनाजी यमराज की बहन है, वे यम को राखी बाँध कर पुष्टी जीवों के लिए रक्षा का वचन मांगती है.
श्रीजी की सेवा प्रणालिका इसका भाव : - श्रीनाथजी में बाल भाव से प्रभु को यशोदा मैया के भाव से रक्षा सूत्र बांधे जाते है.
- आज परम्परानुसार रक्षा या राखी शुभमुहूर्त में उत्थापन समय में दिन में 3 बज के 45 मिनट पूर्व धरायी जायेंगी.
- आज श्री गुसांईजी के ज्येष्ठ पुत्र गिरधरजी के पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी का प्राकट्योत्सव भी है.
- आप का जन्म विक्रम संवत १६३२ में आज के दिन हुआ था.
आपने अपने जीवनकाल में श्रीजी के विविध मनोरथ किये थे. आपश्री वेदज्ञ, मन्त्रज्ञ, अत्यंत तेजस्वी एवं सरल स्वाभाव के थे. - आज से श्रीजी में जन्माष्टमी की बड़ी बधाई बैठती भी है जिससे पिछवाई, गादी, तकिया आदि सर्व साज लाल मखमल के नवमी तक आते हैं. जड़ाव स्वर्ण के पात्र, चौकी, पडघा, शैयाजी आदि आते हैं.
श्रीजी में सेवाक्रम :-
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- दिनभर झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.
- मंगला, राजभोग, संध्या व शयन में आरती थाली में की जाती है.
- गेंद, चौगान, दीवला सभी सोने के आते हैं.
- मंगला के पश्चात ठाकुरजी को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
- उत्थापन दर्शन में 3.45 बजे के आसपास झालर, घण्टा बजाते हुए व शंखध्वनि के साथ श्रीजी को तिलक, अक्षत कर दोनों श्रीहस्त में एवं दोनों बाजूबंद के स्थान पर रक्षा (राखी) बांधी जाती है.
- श्रीजी को राखी धराए जाने के पश्चात सभी स्वरूपों को राखी धराई जाती हैं.
- दर्शन उपरांत उत्सव भोग धरे जाते है.
- उत्सव भोग में विशेष रूप से गुलपापड़ी (गेहूं के आटे की मोहनथाल जैसी सामग्री), दूधघर में सिद्ध केशर-युक्त बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना और फल आदि अरोगाये जाते हैं.
- अनोसर में श्रीजी के सनमुख अत्तरदान, मिठाई का थाल, चोपड़ा,चार बीड़ा आरसी इत्यादि धरे जाते हैं.
- आज नियम से श्रीजी में प्रभु श्री मदनमोहनजी कांच के हिंडोलने में झूलते हैं.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा के तहत श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी हरी मखमल वाली आती है.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. एक अन्य चांदी के पडघाजी पर माटी के कुंजा में शीतल सुगंधित जल भरा होता है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- पीठिका व पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का रूपहरी पठानी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज मध्य से दो अंगुल ऊँचे तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- हीरे की प्रधानता के मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार चिल्ला वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरा के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
- नीचे पाँच पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं.
- श्वेत पुष्पों की मालाजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की आती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : सोहेलरा नन्द महर घर आज
- राखी धराते : बहन सुभद्रा राखी बांधत
- राजभोग : ऐ री ऐ आज नन्द राय
- हिंडोरा : सावन को पून्यो मन भवन
- सुघर रावरे की गोप कुंवर
- मनमोहन रंग बोरे झूलन आई
- रशे जू झुलत रमक झमक
- शयन : श्रावण सुन सजनी बाजे मंदिलरा
- मान : गृह आवत गोपीजन
- श्रीजी की भोग सेवा के दर्शन :
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी डोल तिवारी में कांच के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं.
- श्री नवनीत प्रियाजी भी कांच के हिंडोलने में विराजित होकर झूलते है.
- श्री नवनीत प्रियाजी भी चांदी के हिंडोलने में विराजित होकर झूलते है.
- इस वर्ष कल 19 अगस्त 2024 पूर्णिमा को रक्षा (राखी) उत्थापन दर्शन में धरायी जायेंगी.
- सभी वैष्णव अपने सेव्य ठाकुरजी को रक्षा (राखी) धरा सकते हैं.
जय श्री कृष्ण
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