व्रज – भाद्रपद कृष्ण सप्तमी, रविवार 25 अगस्त 2024
आज की विशेषता :- आज छठ्ठी उत्सव की विशेष सेवा होती है, कुछ परिवर्तन भी होते है.
- आज तीन समां की आरती थाली में की जाती है.
- आज सभी समय झारीजी में यमुनाजल आता है.
- आज ऊष्णकाल की सेवा का अंतिम दिन होने से गुलाबदानी एवं माटी का कुंजा अंतिम बार धरे जाएंगे.
- कल से गुलाबदानी, कुंजा, चन्दन की बरनी, अंकुरित मूंग, चने की दाल, मूंग की दाल, शीतल आदि (जो अक्षय तृतीया से प्रभु को प्रतिदिन संध्या-आरती में अरोगाये जा रहे थे) भोग में नहीं आयेंगे.
- आज श्रीजी में पिछवाई, पलंगपोश, सूजनी, खिलौने, चौपाट, आरसी आदि बदल के उत्सव का नया साज लिया जाता है.
- एक छाब में जन्माष्टमी के दिवस धराये जाने वाले नये वस्त्र, इत्र की शीशी, गुंजा माला, कुल्हे जोड़, श्रीफल, भेंट-न्यौछावर के सिक्के आदि तैयार कर के रखे जाते हैं.
- प्रतिवर्ष जन्माष्टमी के दिवस केसरी वस्त्र, गुंजा की माला एवं कुल्हे जोड़ नयी धरने की रीत है.
- जन्माष्टमी के दिवस पंचामृत के लिए दूध, दही, घी, शहद एवं बूरा आदि भी साज के रखना होता है. कुंकुम, अक्षत और हल्दी आदि भी तैयार कर लिए जाते है.
- भोग में आज श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरिया घेवर अरोगाया जाता है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा के तहत श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. खण्डपाट सहित सभी साज भी पीले रंग के आते हैं.
- गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी हरी मखमल वाली आती है. आज तकिया के खोल जड़ाऊ स्वर्ण काम के आते हैं.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- चांदी के पडघा के ऊपर माटी के कुंजे में शीतल सुगन्धित जल भरा जाता है.
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल रंग का डोरिया का रूपहरी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं.
- श्रृंगार
- श्रीजी को आज छेड़ान का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्तसांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरे के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
- नीचे चार पान घाट की जुगावली एवं ऊपर मोतियों की माला धरायी जाती हैं.
- त्रवल नहीं धरावें परन्तु हीरा की बघ्घी धरायी जाती है.
- गुलाब के पुष्पों की एक मालाजी एवं दूसरी श्वेत पुष्पों की कमल के आकार की मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशजी वाले वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.
- आरसी श्रृंगार में लाल मख़मल की व राजभोग में सोने की डांडी की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : झगरन ते हो बहुत खिजाई
- राजभोग : ब्रज भयो महर के पूत
- ऐ री ऐ आज नन्दराय के
- आरती : जन्म दिन लाल को
- शयन भोग : आज छटी जसुमत के सुत
- मंगल द्योस छटी
- पोढवे : गृह आवत गोपीजन
- श्रीजी की भोग सेवा के दर्शन :
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
जय श्री कृष्ण
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