व्रज – अश्विन कृष्ण तेरस, सोमवार, 30 सितम्बर 2024
आज की विशेषता :- आज श्री गुसांईजी के तृतीय पुत्र बालकृष्णजी का उत्सव है.
- आपका प्राकट्य विक्रमाब्द 1606 में आज के दिन प्रयाग (इलाहबाद) के निकट अडेल में हुआ था. आपश्री तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारकाधीशजी के आचार्य थे अतः आज का उत्सव श्री द्वारकाधीश मंदिर (कांकरोली) में भव्य रूप से मनाया जाता है.
- आपके नैत्र कमलदल के समान विशाल एवं अत्यंत सुन्दर थे. जिससे आपको घर में ‘राजीवलोचन’ कहा जाता था.
- आपको श्री गुसांईजी ने प्रभु श्री द्वारकाधीशजी का स्वरुप सेवा हेतु दिया. आप उनकी सेवा काफी श्रृद्धा, स्नेह से करते थे.
- तब प्रभु श्री द्वारकाधीशजी के संग स्वामिनीजी नहीं विराजते थे. आपको श्री द्वारकाधीशजी की स्वामिनीजी की सेवा की बहुत इच्छा थी.
- बालकृष्णजी को एक रात्रि स्वप्न में यमुनाजी ने दर्शन दिए और कहा कि मैं श्री द्वारकाधीश प्रभु की स्वामिनी हूँ अतः मुझे उनके संग पधराओ.
- प्रातः उठकर आपने गुंसाईजी के सम्मुख स्वप्न दृष्ट स्वामिनीधेर्यआष्टक की रचना सुनाई.
- इसे सुनकर गुसांईजी अत्यंत प्रसन्न हुए और उनकी आतुरता देख बालकृष्णजी को स्वर्ण के दो कंगन दिए और आज्ञा की कि मुखारविंद से परिक्रमा प्रारम्भ करो और जिनके हाथ में ये कंगन सही माप के हों उनको पधरा कर ले आओ, वही प्रभु की स्वामिनीजी होंगी.
- आपने अनेक स्थानों पर जा कर स्वामिनीजी की खोज की और अंत में विक्रमाब्द 1638 में गुंजावन में आपको श्री यमुनाजी ने दर्शन दिए और अपने कंगन मांगे.
- उस स्वरूप को श्री बालकृष्णजी पधरा ले आये.
- तब से स्वामिनीजी का काष्ट स्वरुप प्रभु श्री द्वारकाधीशजी के साथ गुप्त रूप से विराजित हैं अर्थात वहां सामान्यजनों को स्वामिनीजी के दर्शन नहीं कराये जाते.
- आपके भाई यदुनाथजी को गुसांईजी ने प्रभु श्री बालकृष्णलालजी का स्वरुप सेवा हेतु प्रदान किया था.
- दोनों भाइयों में अत्यंत स्नेह होने के कारण तब दोनों स्वरूपों को साथ पधरा कर दोनों भाई मिल के दोनों स्वरूपों की सेवा करते थे.
- आप नन्द महोत्सव के साक्षात स्वरुप थे. इस लीला का स्वरुप आप में सदा ही गोचर होता था.
- एक बार प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी के नन्द महोत्सव समय उत्साहवश आपको पिंडरू होने का भी भान नहीं रहा और आप नन्द महोत्सव में कूद पड़े.
- आप सदैव यशोदाजी का स्वरूप धारण कर प्रभु को पलना झुलाते थे. कहा जाता है कि एक समय तो आपके स्तनों में से दूध की धाराएं बहने लगी थी.
आपके 5 ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं –
1 स्वप्न दृष्ट स्वामिनीस्त्रोत
2 गुप्त स्वामिनी स्त्रोत-विवृति
3 भक्तिवर्धिनी स्त्रोत-विवृति
4 प्रसादवागीश भाष्य-विवरण
5 सर्वोत्तम स्त्रोत-विवृति
ऐसे श्री बालकृष्णजी के प्राकट्य दिवस पर आप सभी को कोटि-कोटि बधाई.
आज का सेवाक्रम :
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को हल्दी से मांडा जाता हैं.
- आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- श्रीजी को दान की हांडियों के अतिरिक्त गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में – सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.
- आज इस अवसर पर वहां से जलेबी के टूक की सामग्री श्रीजी के भोग हेतु आती है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल के आधार पर लाल रंग की गायों, बड के पान के भरतकाम वाली एवं लाल रंग के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी के ऊपर सफेद, तकिया के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी सफ़ेद मखमल वाली आती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज केसरी रंग का मलमल का सुनहरी किनारी से सजा पिछोड़ा धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र मेघ श्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण माणक, पन्ना, हीरे, मोती के जड़ाव सोने के के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, माणक की किलंगी, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते है.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत, गुलाबी व पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी में से एक स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- खेल के साज में पट केसरी व गोटी श्याम मीना की आती है.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है.
- श्रीजी को आरसी श्रृंगार में पीले खण्ड की तथा राजभोग में सोना की दांडी वाली दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : मिल पांच सात निकली, दान दे रसिकनी चली क्यों
- राजभोग : विहरत सातों रूप धरें है
- आरती : कापर ढोटा नैन नचावत, जाओ गुजरिया झूठी
- शयन : अरे नंदराय की चरेबा, अरी तुम कौन हो री
- मान : नवल कुञ्ज नवल मृग नैनी
- पोढवे : चांपत चरण मोहन लाल
भोग सेवा दर्शन : - श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
- सांझी दर्शन : आज श्रीजी मंदिर के कमल चौक में हाथी पोल की दहलीज व प्रांगण में श्रीमद गोकुल ठकुरानी घाट, श्री बैठकजी, बल लीला, नन्दभवन, माखन चोरी आदि की सांझी बनायी जाती है.
जय श्री कृष्ण
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