व्रज – कार्तिक कृष्ण नवमी, शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024
आज की विशेषता :- आज दीपोत्सव के आगम (प्रतिनिधि) का श्रृंगार कल से आप के श्रृंगार.
- बड़े उत्सवों के पूर्व उनके जैसे ही श्रृंगार धराये जाते हैं. ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि अथवा आगम के श्रृंगार भी कहे जाते हैं.
- इसी श्रृंखला में आज श्रीजी को दीपावली के दिन धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जाता है.
- भोग विशेष : मनोरथ के साज की भावना से श्रीजी को राजभोग व शयनभोग में कट-पुआ, केशरयुक्त सुवाली, पकागुंजा, खुरमा, खस्ता मठडी आदि अरोगाये जाते हैं.
- दशमी से आरम्भ होने वाले दीपावली के विशिष्ट श्रृंगार कल कार्तिक कृष्ण दसमी से प्रारंभ हो जाएंगे. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘घर के श्रृंगार’ कहा जाता है. ये श्रृंगार दीपावली के अलावा जन्माष्टमी एवं डोलोत्सव के पूर्व भी धराये जाते हैं.
- इन श्रृंगार का विशेषाधिकार पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री का होता है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में आज लाल रंग की धरती अर्थात आधार वस्त्र के ऊपर सिलमा-सितारा के कशीदे के ज़रदोशी के काम वाली पिछवाई आती है, जिसमें चन्द्र, सूर्य, गाय, तथा पुष्पों का ज़रदोशी का काम किया गया है.
- तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी तथा चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री की सूथन, श्वेत फूलक साई ज़री की रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं.
- पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का तीन जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- माणक की प्रधानता सहित हीरे, मोती, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर फूलक साई श्वेत ज़री की कुल्हे के ऊपर तीन टीका व तीन ही त्रवल, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति हीरा के कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
- पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.
- त्रवल व टोडर दोनों धराये जाते हैं.
- आज हालरा धराया जाता हैं.
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
- राजभोग में पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- आरसी उत्सववत जडाऊ की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : आज कहा सम्भ्रम तिहारे
- राजभोग : गुड़ के गुंजा पुआ सुहारी, गोधन पूजत व्रज की नारी
- आरती : देखो अपने नैनन को सुख
- शयन : मानत पर्व दिवाली को शुभ
- मान : उठ चल बेग राधिका प्यारी
- पोढवे : वे देखो बरत झरोखन दीपक
विशेष सेवा दर्शन : - संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर तुर्रा-किलंगी नहीं आते हैं व हीरा की किलंगी धरायी जाती है.
- पिछवाई बड़ी (हटा) कर कांच का बंगला आवे.
- मणिकोठा में पांच कांच की हांडियों में रौशनी की जाती है वहीँ निज मन्दिर की देहरी के भीतर दो कांच की मृदंग में रौशनी की जाती है.
- शयन दर्शन उपरांत अनोसर में कुल्हे बड़ी कर छज्जेदार पाग धरायी जाती है.
जय श्री कृष्ण
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