मेष संक्रान्ति हिंदू वर्ष की पहली संक्रान्ति

सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे संक्रांति कहते हैं। आज ये ग्रह मेष राशि में प्रवेश करेगा, इस कारण इसे मेष संक्रांति कहा जाता है। मेष संक्रान्ति हिंदू वर्ष की पहली संक्रान्ति होती है।| मेष संक्रांति का धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है। इस दिन सूर्य का मेष राशि में प्रवेश होता है,जो की एक नया चक्र और नवजीवन का प्रतीक होता है।
खरमास समाप्त :
सूर्य देव मीन राशि में विराजमान होते हैं तब खरमास चल रहा होता है। खरमास में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है। सूर्य देव के मेष राशि में प्रवेश करते ही खरमास का समापन हो जाता है।खरमास समाप्त होने से मांगलिक कार्यों पर लगी रोक हट जाती है। अब विवाह, सगाई, जनेऊ, गृह प्रवेश और भूमि पूजन जैसे मांगलिक कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त मिल सकेंगे।
सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करते ही दिन बड़े होने लगते हैं, और वातावरण में नई ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए इस दिन को जीवन में सकारात्मकता, नयापन और शांति लाने वाला पर्व भी माना जाता है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करना या नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मेष संक्रांति पर दान करना बहुत फलदायक माना गया है। आम के फल के सेवन की शुरुआत भी इसी दिन से करने की मान्यता है।
इस दिन स्नान पूजन के बाद सत्तू, जल से भरा घड़ा, ताड़ का पंखा इस विश्वास से दान किया जाता है कि अगले जन्म में गर्मी के समय उन्हें भी इन चीजों का सुख मिलेगा। इस दिन तिल से बनी मिठाइयां जैसे तिल लड्डू, तिलकूट आदि भी बनाए जाते हैं।
सतुआ संक्रांति’ के नाम से क्यों जाना जाता है ?

सतुआ संक्रांति’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस दिन से ठाकुरजी को जौ या चने के सत्तू भोग लगाया जाता है। इस दिन सत्तू और गुड़ का सेवन विशेष रूप से शुभ माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चना और उसका सत्तू सूर्य, मंगल और गुरु ग्रहों से संबंधित है, इसलिए इनका सेवन करने से इन ग्रहों की कृपा बनी रहती है। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ गर्मी के मौसम कि शुरुआत मानी जाती है. यही वजह है कि लोग ऐसा आहार लेते हैं जो शीतलता दे और सुपाच्य भी हो|
इस दिन अन्न, वस्त्र, जल, फल, चना, गुड़, सत्तू, तांबे के बर्तन, घी और धन का दान विशेष तौर पर करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान देने से दोषों का नाश होता है। इस दिन जल, मिट्टी के घड़े, स्नान, तिलों द्वारा पितरों का तर्पण तथा कृष्ण भगवान की पूजा अर्चना का भी विशेष महत्व है|

इस दिन सूर्य देव की पूजा करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। लोग सूर्य देव की उपासना करते हैं और सूर्यमंत्र का जाप करते हैं। सूर्य के साथ-साथ विष्णु और शिव की पूजा भी की जाती है| ताकि समृद्धि, शांति और स्वास्थ्य की प्राप्ति हो। सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
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