व्रज – श्रावण शुक्ल त्रयोदशी, शुक्रवार, 20 अगस्त 2021
आज की विशषता : किंकोडा तेरस, चतुरा नागा के श्रृंगार
-आज चतुरानागा पर श्रीजी कृपा का दिवस है जिसे किंकोड़ा तेरस भी कहते है. आज का दिवस केवल पुष्टी जीवों के लिए ही नहीं सर्वकालीन सत्ताओं के लिए भी मार्गदर्शक दिवस है. पुष्टिमार्गीय साहित्य के अनुसार आज के दिन व्रज में विराजित श्रीजी ने यवनों के उपद्रव का बहाना कर पाड़े अर्थात भैंसे के ऊपर बैठकर रामदासजी, कुम्भनदासजी, सदु पांडे व माणिकचंद पांडे को साथ लेकर चतुरा नागा नाम के अपने भक्त को दर्शन देने कृपा एवं उक्त पाड़े (भैंसे) का उद्धार करने टॉड का घना नाम के घने वन में पधारे थे.
यह उल्लेखनीय है कि आज भी राजस्थान में भरतपुर के समीप टॉड का घना नामक स्थान पर श्रीजी की चरणचौकी एवं बैठकजी है जो कि अब अत्यंत रमणीय स्थान है.
इस लीला का संकेत यह है कि चतुरा नागा जो कि हमारी व्यवस्था के कारण सर्वकालीन अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति है जो श्रीजी के दर्शन को लालायित थे परन्तु वे श्री गिरिराजजी पर पैर नहीं रखते थे जिससे श्रीजी के दर्शन से विरक्त थे.
- भक्तवत्सल प्रभु अत्यन्त दयालु हैं अखिल ब्रह्मांड की व्यवस्था की शीर्ष शक्ति हैं फिर भी वे स्वयं अपने भक्त को दर्शन देने पधारते है. अर्थात सत्ता को प्रथम वैष्णव जिन्हें कल ही पवित्रा द्वादशी पर ब्रह्मसम्बन्ध की कृपा प्राप्त हुई गुरु श्री वल्लभ के माध्यम से. लेकिन चतुरा नागा साधनहीन है वंचित है उन पर कृपा करने के लिए प्रभु स्वयं पधार कर अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक सत्ता को पहुँचने की आज्ञा कर रहे है. जिससे वंचित की अपार प्रसन्नता का कोई छोर नहीं रहता. आगे की लीला में भी सन्देश है.
- वर्षा ऋतु थी सो चतुरा नागा तुरंत वन से किंकोडा के फल तोड़ लाये और उसका शाक सिद्ध किया. रामदासजी साथ में सीरा (गेहूं के आटे का हलवा) सिद्ध कर के लाये थे सो श्रीजी को सीरा एवं किंकोडा का शाक भोग अरोगाया. अर्थात प्रभु अपने भक्तो में भेद नहीं करते. उनके लिए भक्त की भक्ति ही मायने रखती है.
- उपरोक्त प्रसंग की भावना से ही आज के दिन श्रीजी को गोपीवल्लभ अर्थात ग्वाल भोग में किंकोडा का शाक एवं सीरा जिसे हम सामान्य भाषा में गेहूं के आटे का हलवा कहते है भी अरोगाया जाता है.
- अद्भुत बात यह है कि आज भी प्रभु को उसी लकड़ी की चौकी पर यह भोग रखे जाते हैं जिस पर सैंकड़ों वर्ष पूर्व चतुरा नागा ने प्रभु को अपनी भाव भावित सामग्री अरोगायी थी.
श्रीजी दर्शन :
साज सेवा में आज वर्षाऋतु में बादलों की घटा एवं बिजली की चमक के मध्य यमुनाजी के किनारे कुंज में एक ओर श्री ठाकुरजी एवं दूसरी ओर स्वामिनीजी को व्रजभक्त झूला झुला रहे हैं. प्रभु की पीठिका के आसपास सोने के हिंडोलने का सुन्दर भावात्मक चित्रांकन किया है जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु स्वर्ण हिंडोलना में झूल रहे हों, ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. - गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी हरी मखमल वाली आती है.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल एवं केसरी रंग के लहरिया की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र सफेद डोरीया के धराये जाते है.
श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. - कंठहार, बाजूबंद, पौची आदि मोती के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सिलमा सितारा का मुकुट व टोपी एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में मोती के कुंडल धराये जाते हैं.
- चोटीजी नहीं आती हैं.
- श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
- पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थाग वाली दो सुन्दर मालाजी एवं कमल के फूल की मालाजी धरायी जाती है.
- रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- पट लाल एवं गोटी मीना की धराई जाती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा के तहत आज निम्न पदों का गान किया जाता है :
मंगला : यह नित नेम यशोदा जू
राजभोग : महा मंगल मेहराने आज
हिंडोरा : झुलत गिरधर लाल
सांवरे संग गोरी झुलत
आज लाल झुलत रंग भरे
मोर मुकुट की लटकन मटकन
शयन : आज तो बधाई बाजे मंदिर
भोग सेवा दर्शन : - श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
- संध्या आरती में श्री मदनमोहन जी डोल तिवारी में चांदी के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं.
- श्री नवनीत प्रियाजी भी चांदी के हिंडोलने में विराजित होकर झूलते है.
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जय श्री कृष्ण।
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https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
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किंकोडा तेरस, चतुरा नागा की वार्ता
आज के दिन संवत १५५२ श्रावण सुद तेरस बुधवार के दिन श्रीनाथजी टोंड के घने पधारे थे उस प्रसंग की वार्ता इस प्रकार है :
उस समय यवन का उपद्रव इस विस्तारमें शुरू हुआ. उसका पड़ाव श्री गिरिराजजीसे चंद किलोमीटर दूर पड़ा था.
सदु पांडे, माणिकचंद पांडे, रामदासजी और कुंभनदासजी चारों ने विचार किया कि यह यवन बहुत दुष्ट है और भगवद धर्म का द्वेषी है. अब हमें क्या करना चाहिये ? यह चारों वैष्णव श्रीनाथजीके अंतरंग थे. उनके साथ श्रीनाथजी बाते किया करते थे. उन्होंने मंदिर में जाकर श्रीनाथजी को पूछा कि महाराज अब हम क्या करें ? धर्म का द्वेषी यवन लूटता चला आ रहा है. अब आप जो आज्ञा करें हम वेसा करेंगें.
श्रीनाथजी ने आज्ञा करी कि हमें टोंड के घने में पधारने की इच्छा है वहां हमें ले चलो. तब उन्होंने पूछा कि महाराज इस समय कौन सी सवारी पर चले? तब श्रीनाथजी ने आज्ञा करी कि सदु पांडे के घर जो पाडा है उसे ले आओ. मैं उसके ऊपर चढ़कर चलुंगा. सदु पाण्डे उस पाड़ा को लेकर आये. श्रीनाथजी उस पाड़ा पर चढ़कर पधारें. श्रीनाथजी को एक तरफ से रामदासजी थाम कर चल रहे थे और दूसरी तरफ सदु पांडे थांभ कर चल रहे थे. कुंभनदास और माणिकचंद दोनों आगे चलकर मार्ग बताते रहते थे. मार्ग में कांटें – गोखरू बहुत लग रहे थे. वस्त्र भी फट गये थे.
टोंड के घने में एक चौतरा है और छोटा सा तालाब भी है. एक वर्तुलाकार चौक के पास आकर रामदासजी और कुंभनदासजी ने श्रीनाथजी को पूछा कि आप कहाँ बिराजेंगे ? तब श्रीनाथजीने आज्ञा करी कि हम चौतरे पर बिराजेंगे. श्रीनाथजी को पाड़े पर बिठाते समय जो गादी बिछायी थी उसी गादी को इस चौतरे पर बिछा दी गई और श्रीनाथजी को उस पर पधराये.
चतुरा नागा नाम के आप के परमभक्त थे वे टोंड के घने में तपस्या किया करता थे. वे गिरिराजजी पर कभी अपना पैर तक नहीं रखते थे. मानों उस चतुरा नागा को ही दर्शन देनेके लिए ही श्रीनाथजी पाडा पर चढ़कर टोंड की इस झाड़ी में पधारें, चतुरा नागा ने श्रीनाथजी के दर्शन करके बड़ा उत्सव मनाया. बन मे से किंकोडा चुटकर इसकी सब्जी सिद्ध की. आटे हलवा (सिरा) बनाकर श्रीनाथजी को भोग समर्पित किया.
इसके बारे में दूसरा उल्लेख यह भी है कि श्रीनाथजी ने रामदासजीको आज्ञा करी कि तुम भोग धरकर दूर खड़े रहो. तब श्री रामदासजी और कुंभनदासजी सोचने लगे कि किसी व्रजभक् तके मनोरथ पूर्ण करने हेतु यह लीला हो रही है. रामदासजी ने थोड़ी सामग्री का भोग लगाया तब श्रीनाथजी ने कहा कि सभी सामग्री धर दो. श्री रामदासजी दो सेर आटा का सिरा बनाकर लाये थे उन्होंने भोग धर दिया. रामदासजीने जताया कि अब हम इधर ठहरेंगें तो क्या करेंगें ? तो श्रीनाथजी ने कहा कि तुमको यहाँ रहना नहीं है. कुम्भनदास, सदु पांडे, माणिक पांडे और रामदासजी ये चारों जन झाड़ी की ओट के पास बैठे तब निकुंजके भीतर श्री स्वामिनीजी ने अपने हाथोंसे मनोरथकी सामग्री बनाकर श्रीनाथजी के पास पधारे और भोग धरे, श्रीनाथजी ने अपने मुख से कुंभनदासको आज्ञा करी कि कुंभनदास इस समय ऐसा कोई कीर्तन गा तो मेरा मन प्रसन्न होने पावे. मै सामग्री आरोंगु और तु कीर्तन गा.
श्री कुम्भनदासने अपने मनमें सोचा कि प्रभु को कोई हास्य प्रसंग सुनने की इच्छा है ऐसा लगता है. कुंभनदास आदि चारों वैष्णव भूखे भी थे और कांटें भी बहुत लगे थे इस लिये कुंभनदासने यह पद गाया :
राग : सारंग
“भावत है तोहि टॉडको घनो ।
कांटा लगे गोखरू टूटे फाट्यो है सब तन्यो ।।१।।
सिंह कहां लोकड़ा को डर यह कहा बानक बन्यो ।
‘कुम्भनदास’ तुम गोवर्धनधर वह कौन रांड ढेडनीको जन्यो ।।२।।
यह पद सुनकर श्रीनाथजी एवं श्री स्वामिनीजी अति प्रसन्न हुए. सभी वैष्णव भी प्रसन्न हुए. बादमें मालाके समय कुंभनदासजीने यह पद गाया :
बोलत श्याम मनोहर बैठे…
राग : मालकौंश
बोलत श्याम मनोहर बैठे, कमलखंड और कदम्बकी छैयां ।
कुसुमनि द्रुम अलि पीक गूंजत, कोकिला कल गावत तहियाँ ।। 1 ।।
सूनत दूतिका के बचन माधुरी, भयो हुलास तन मन महियाँ ।
कुंभनदास ब्रज जुवति मिलन चलि, रसिक कुंवर गिरिधर पहियाँ ।। 2 ।।
यह पद सुनकर श्रीनाथजी स्वयं अति प्रसन्न हुए. बादमें श्री स्वामिनीजी ने श्रीनाथजी को पूछा की आप यहाँ किस प्रकारसे पधारें? श्रीनाथजी ने कहा कि सदु पांडेके घर जो पाडा था उस पर चढ़कर हम पधारें हैं. श्रीनाथजी के इस वचन सुनकर स्वामिनीजीने उस पाडा की ओर दृष्टि करके कृपा करके बोले कि यह तो हमारे बाग़ की मालन है. वह हमारी अवज्ञा से पाडा बनी है पर आज आपकी सेवा करके उसके अपराधकी निवृत्ति हो गई है. इसी तरह नाना प्रकारे केली करके टोंड के घने से श्री स्वामिनी जी बरसाना पधारें. बादमें श्रीनाथजी ने सभी को झाडी की ओट के पास बैठे थे उनको बुलाया और सदु पांडेको आज्ञा करी कि अब जा कर देखो कि उपद्रव कम हुआ ? सदु पांडे टोंड के घनेसे बाहर आये इतने मे ही समाचार आये कि यवन की फ़ौज तो वापिस चली गई है. यह समाचार सदु पांडे ने श्रीनाथजी को सुनाया और बिनती की कि यवनकी फ़ौज तो भाग गई है तब श्रीनाथजी ने कहा कि अब हमें गिरिराज पर मंदिरमें पधरायें.
इसी प्रकारे आज्ञा होते ही श्रीनाथजीको पाडे पर बैठा के श्री गिरिराज पर्वत पर मंदिर में पधराये. यह पाडा गिरिराज पर्वत से उतर कर देह छोड़कर पुन: लीलाको प्राप्त हुआ. सभी ब्रजवासी मंदिरमें श्रीनाथजीके दर्शन करके बहुत प्रसन्न हुए और बोले की धन्य है देवदमन ! जिनके प्रतापसे यह उपद्रव मिट गया.
इस तरह संवत १५५२ श्रावण सुदी तेरस को बुधवार के दिन चतुरा नागाका मनोरथ सिद्ध करके पुन: श्रीनाथजी गिरिराजजी पर पधारें.
यह टोंड के घनेमें श्रीनाथजी की बैठक है जहाँ सुंदर मंदिर व बैठकजी बनाई गई है.
यह पाडा दैवी जीव था. लीला में वो श्री वृषभानजी के बगीचा की मालन थी. नित्य फूलोंकी माला बनाकर श्री वृषभानजी के घर लाती थी. लीला में वृंदा उसका नाम था. एक दिन श्री स्वामिनीजी बगीचा में पधारें तब वृंदा के पास एक बेटी थी उसको वे खिलाती रही थी. उसने न तो उठकर स्वामिनी जी को दंडवत किये कि न तो कोई समाधान किया. फिर भी स्वामिनीजीने उसको कुछ नहीं कहा. उसके बाद श्री स्वामिनीजी ने आज्ञा की के तुम श्री नंदरायजी के घर जाकर श्री ठाकोरजीको संकेत करके हमारे यहां पधारने के लिए कहो तो वृंदा ने कहा की अभी मुझे मालाजी सिद्ध करके श्री वृषभानजी को भेजनी है तो मैं नहीं जाऊँगी. ऐसा सुनकर श्री स्वामिनीजीने कहा कि मैं जब आई तब उठकर सन्मान भी न किया और एक काम करने को कहा वो भी नहीं किया. इस प्रकार तुम यह बगीचा के लायक नहीं हो. तु यहाँ से भुतल पर पड़ और पाडा बन जा. इसी प्रकार का श्राप उसको दिया तब वह मालन श्री स्वामिनीजी के चरणारविन्दमें जा कर गीर पडी और बहुत स्तुति करने लगी और कहा कि आप मेरे पर कृपा करों जिससे मैं यहां फिर आ सकुं. तब स्वामिनीजी ने कृपा करके कहा की जब तेरे पर चढ़कर श्री ठाकुरजी बन में पधारेंगें तभी तेरा अंगीकार होगा. इसी प्रकार वह मालन सदु पांडे के घर में पाडा हुई और जब श्रीनाथजी उस पर बेठ कर वन में पधारे तब वो पुन: लीलाको प्राप्त हुई.
आज भी राजस्थान में भरतपुर के समीप टॉड का घना नमक स्थान पर श्रीजी की चरणचौकी एवं बैठकजी है जो कि अत्यंत रमणीय स्थान है.
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जय श्री कृष्ण
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केवल पुष्टी जीवों के लिए ही नहीं सर्वकालीन सत्ताओं के लिए भी मार्गदर्शक दिवस है.
पुष्टिमार्गीय साहित्य के अनुसार आज के दिन व्रज में विराजित श्रीजी ने यवनों के उपद्रव का
बहाना कर पाड़े अर्थात भैंसे के ऊपर बैठकर रामदासजी, कुम्भनदासजी, सदु पांडे व माणिकचंद
पांडे को साथ लेकर चतुरा नागा नाम के अपने भक्त को दर्शन देने कृपा एवं उक्त पाड़े (भैंसे) का
उद्धार करने टॉड का घना नाम के घने वन में पधारे थे.
यह उल्लेखनीय है कि आज भी राजस्थान में भरतपुर के समीप टॉड का घना नामक स्थान पर
श्रीजी की चरणचौकी एवं बैठकजी है जो कि अब अत्यंत रमणीय स्थान है.
इस लीला का संकेत यह है कि चतुरा नागा जो कि हमारी व्यवस्था के कारण सर्वकालीन अंतिम
छोर पर खड़े व्यक्ति है जो श्रीजी के दर्शन को लालायित थे परन्तु वे श्री गिरिराजजी पर पैर नहीं
रखते थे जिससे श्रीजी के दर्शन से विरक्त थे.
- भक्तवत्सल प्रभु अत्यन्त दयालु हैं अखिल ब्रह्मांड की व्यवस्था की शीर्ष शक्ति हैं फिर भी वे
स्वयं अपने भक्त को दर्शन देने पधारते है. अर्थात सत्ता को प्रथम वैष्णव जिन्हें कल ही पवित्रा
द्वादशी पर ब्रह्मसम्बन्ध की कृपा प्राप्त हुई गुरु श्री वल्लभ के माध्यम से. लेकिन चतुरा नागा
साधनहीन है वंचित है उन पर कृपा करने के लिए प्रभु स्वयं पधार कर अंतिम छोर पर खड़े
व्यक्ति तक सत्ता को पहुँचने की आज्ञा कर रहे है. जिससे वंचित की अपार प्रसन्नता का कोई
छोर नहीं रहता. आगे की लीला में भी सन्देश है.
- वर्षा ऋतु थी सो चतुरा नागा तुरंत वन से किंकोडा के फल तोड़ लाये और उसका शाक सिद्ध
किया. रामदासजी साथ में सीरा (गेहूं के आटे का हलवा) सिद्ध कर के लाये थे सो श्रीजी को
सीरा एवं किंकोडा का शाक भोग अरोगाया. अर्थात प्रभु अपने भक्तो में भेद नहीं करते. उनके
लिए भक्त की भक्ति ही मायने रखती है.
- उपरोक्त प्रसंग की भावना से ही आज के दिन श्रीजी को गोपीवल्लभ अर्थात ग्वाल भोग में
किंकोडा का शाक एवं सीरा जिसे हम सामान्य भाषा में गेहूं के आटे का हलवा कहते है भी
अरोगाया जाता है.
- अद्भुत बात यह है कि आज भी प्रभु को उसी लकड़ी की चौकी पर यह भोग रखे जाते हैं जिस
पर सैंकड़ों वर्ष पूर्व चतुरा नागा ने प्रभु को अपनी भाव भावित सामग्री अरोगायी थी.
श्रीजी दर्शन :
साज सेवा में आज वर्षाऋतु में बादलों की घटा एवं बिजली की चमक के मध्य यमुनाजी के
किनारे कुंज में एक ओर श्री ठाकुरजी एवं दूसरी ओर स्वामिनीजी को व्रजभक्त झूला झुला रहे हैं.
प्रभु की पीठिका के आसपास सोने के हिंडोलने का सुन्दर भावात्मक चित्रांकन किया है जिसमें
ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु स्वर्ण हिंडोलना में झूल रहे हों, ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित
पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है.
- गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी हरी मखमल वाली आती है.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल एवं केसरी रंग के लहरिया की सुनहरी ज़री की तुईलैस की
किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र सफेद डोरीया के धराये जाते है.
श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार
धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची आदि मोती के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सिलमा सितारा का मुकुट व टोपी एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में मोती के कुंडल धराये जाते हैं.
- चोटीजी नहीं आती हैं.
- श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
- पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थाग वाली दो सुन्दर मालाजी एवं कमल के फूल की मालाजी धरायी
जाती है.
- रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- पट लाल एवं गोटी मीना की धराई जाती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा के तहत आज निम्न पदों का गान किया जाता है :
मंगला : यह नित नेम यशोदा जू
राजभोग : महा मंगल मेहराने आज
हिंडोरा : झुलत गिरधर लाल
सांवरे संग गोरी झुलत
आज लाल झुलत रंग भरे
मोर मुकुट की लटकन मटकन
शयन : आज तो बधाई बाजे मंदिर
भोग सेवा दर्शन : - श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
- संध्या आरती में श्री मदनमोहन जी डोल तिवारी में चांदी के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी
वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं.
- श्री नवनीत प्रियाजी भी चांदी के हिंडोलने में विराजित होकर झूलते है.
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जय श्री कृष्ण।
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किंकोडा तेरस, चतुरा नागा की वार्ता
आज के दिन संवत १५५२ श्रावण सुद तेरस बुधवार के दिन श्रीनाथजी टोंड के घने पधारे थे उस
प्रसंग की वार्ता इस प्रकार है :
उस समय यवन का उपद्रव इस विस्तारमें शुरू हुआ. उसका पड़ाव श्री गिरिराजजीसे चंद
किलोमीटर दूर पड़ा था.
सदु पांडे, माणिकचंद पांडे, रामदासजी और कुंभनदासजी चारों ने विचार किया कि यह यवन
बहुत दुष्ट है और भगवद धर्म का द्वेषी है. अब हमें क्या करना चाहिये ? यह चारों वैष्णव
श्रीनाथजीके अंतरंग थे. उनके साथ श्रीनाथजी बाते किया करते थे. उन्होंने मंदिर में जाकर
श्रीनाथजी को पूछा कि महाराज अब हम क्या करें ? धर्म का द्वेषी यवन लूटता चला आ रहा है.
अब आप जो आज्ञा करें हम वेसा करेंगें.
श्रीनाथजी ने आज्ञा करी कि हमें टोंड के घने में पधारने की इच्छा है वहां हमें ले चलो. तब
उन्होंने पूछा कि महाराज इस समय कौन सी सवारी पर चले? तब श्रीनाथजी ने आज्ञा करी कि
सदु पांडे के घर जो पाडा है उसे ले आओ. मैं उसके ऊपर चढ़कर चलुंगा. सदु पाण्डे उस पाड़ा
को लेकर आये. श्रीनाथजी उस पाड़ा पर चढ़कर पधारें. श्रीनाथजी को एक तरफ से रामदासजी
थाम कर चल रहे थे और दूसरी तरफ सदु पांडे थांभ कर चल रहे थे. कुंभनदास और माणिकचंद
दोनों आगे चलकर मार्ग बताते रहते थे. मार्ग में कांटें – गोखरू बहुत लग रहे थे. वस्त्र भी फट
गये थे.
टोंड के घने में एक चौतरा है और छोटा सा तालाब भी है. एक वर्तुलाकार चौक के पास आकर
रामदासजी और कुंभनदासजी ने श्रीनाथजी को पूछा कि आप कहाँ बिराजेंगे ? तब श्रीनाथजीने
आज्ञा करी कि हम चौतरे पर बिराजेंगे. श्रीनाथजी को पाड़े पर बिठाते समय जो गादी बिछायी
थी उसी गादी को इस चौतरे पर बिछा दी गई और श्रीनाथजी को उस पर पधराये.
चतुरा नागा नाम के आप के परमभक्त थे वे टोंड के घने में तपस्या किया करता थे. वे
गिरिराजजी पर कभी अपना पैर तक नहीं रखते थे. मानों उस चतुरा नागा को ही दर्शन देनेके
लिए ही श्रीनाथजी पाडा पर चढ़कर टोंड की इस झाड़ी में पधारें, चतुरा नागा ने श्रीनाथजी के
दर्शन करके बड़ा उत्सव मनाया. बन मे से किंकोडा चुटकर इसकी सब्जी सिद्ध की. आटे हलवा
(सिरा) बनाकर श्रीनाथजी को भोग समर्पित किया.
इसके बारे में दूसरा उल्लेख यह भी है कि श्रीनाथजी ने रामदासजीको आज्ञा करी कि तुम भोग
धरकर दूर खड़े रहो. तब श्री रामदासजी और कुंभनदासजी सोचने लगे कि किसी व्रजभक् तके
मनोरथ पूर्ण करने हेतु यह लीला हो रही है. रामदासजी ने थोड़ी सामग्री का भोग लगाया तब
श्रीनाथजी ने कहा कि सभी सामग्री धर दो. श्री रामदासजी दो सेर आटा का सिरा बनाकर लाये
थे उन्होंने भोग धर दिया. रामदासजीने जताया कि अब हम इधर ठहरेंगें तो क्या करेंगें ? तो
श्रीनाथजी ने कहा कि तुमको यहाँ रहना नहीं है. कुम्भनदास, सदु पांडे, माणिक पांडे और
रामदासजी ये चारों जन झाड़ी की ओट के पास बैठे तब निकुंजके भीतर श्री स्वामिनीजी ने
अपने हाथोंसे मनोरथकी सामग्री बनाकर श्रीनाथजी के पास पधारे और भोग धरे, श्रीनाथजी ने
अपने मुख से कुंभनदासको आज्ञा करी कि कुंभनदास इस समय ऐसा कोई कीर्तन गा तो मेरा
मन प्रसन्न होने पावे. मै सामग्री आरोंगु और तु कीर्तन गा.
श्री कुम्भनदासने अपने मनमें सोचा कि प्रभु को कोई हास्य प्रसंग सुनने की इच्छा है ऐसा
लगता है. कुंभनदास आदि चारों वैष्णव भूखे भी थे और कांटें भी बहुत लगे थे इस लिये
कुंभनदासने यह पद गाया :
राग : सारंग
“भावत है तोहि टॉडको घनो ।
कांटा लगे गोखरू टूटे फाट्यो है सब तन्यो ।।१।।
सिंह कहां लोकड़ा को डर यह कहा बानक बन्यो ।
‘कुम्भनदास’ तुम गोवर्धनधर वह कौन रांड ढेडनीको जन्यो ।।२।।
यह पद सुनकर श्रीनाथजी एवं श्री स्वामिनीजी अति प्रसन्न हुए. सभी वैष्णव भी प्रसन्न हुए.
बादमें मालाके समय कुंभनदासजीने यह पद गाया :
बोलत श्याम मनोहर बैठे…
राग : मालकौंश
बोलत श्याम मनोहर बैठे, कमलखंड और कदम्बकी छैयां ।
कुसुमनि द्रुम अलि पीक गूंजत, कोकिला कल गावत तहियाँ ।। 1 ।।
सूनत दूतिका के बचन माधुरी, भयो हुलास तन मन महियाँ ।
कुंभनदास ब्रज जुवति मिलन चलि, रसिक कुंवर गिरिधर पहियाँ ।। 2 ।।
यह पद सुनकर श्रीनाथजी स्वयं अति प्रसन्न हुए. बादमें श्री स्वामिनीजी ने श्रीनाथजी को पूछा
की आप यहाँ किस प्रकारसे पधारें? श्रीनाथजी ने कहा कि सदु पांडेके घर जो पाडा था उस पर
चढ़कर हम पधारें हैं. श्रीनाथजी के इस वचन सुनकर स्वामिनीजीने उस पाडा की ओर दृष्टि करके
कृपा करके बोले कि यह तो हमारे बाग़ की मालन है. वह हमारी अवज्ञा से पाडा बनी है पर
आज आपकी सेवा करके उसके अपराधकी निवृत्ति हो गई है. इसी तरह नाना प्रकारे केली करके
टोंड के घने से श्री स्वामिनी जी बरसाना पधारें. बादमें श्रीनाथजी ने सभी को झाडी की ओट के
पास बैठे थे उनको बुलाया और सदु पांडेको आज्ञा करी कि अब जा कर देखो कि उपद्रव कम
हुआ ? सदु पांडे टोंड के घनेसे बाहर आये इतने मे ही समाचार आये कि यवन की फ़ौज तो
वापिस चली गई है. यह समाचार सदु पांडे ने श्रीनाथजी को सुनाया और बिनती की कि यवनकी
फ़ौज तो भाग गई है तब श्रीनाथजी ने कहा कि अब हमें गिरिराज पर मंदिरमें पधरायें.
इसी प्रकारे आज्ञा होते ही श्रीनाथजीको पाडे पर बैठा के श्री गिरिराज पर्वत पर मंदिर में पधराये.
यह पाडा गिरिराज पर्वत से उतर कर देह छोड़कर पुन: लीलाको प्राप्त हुआ. सभी ब्रजवासी
मंदिरमें श्रीनाथजीके दर्शन करके बहुत प्रसन्न हुए और बोले की धन्य है देवदमन ! जिनके
प्रतापसे यह उपद्रव मिट गया.
इस तरह संवत १५५२ श्रावण सुदी तेरस को बुधवार के दिन चतुरा नागाका मनोरथ सिद्ध करके
पुन: श्रीनाथजी गिरिराजजी पर पधारें.
यह टोंड के घनेमें श्रीनाथजी की बैठक है जहाँ सुंदर मंदिर व बैठकजी बनाई गई है.
यह पाडा दैवी जीव था. लीला में वो श्री वृषभानजी के बगीचा की मालन थी. नित्य फूलोंकी
माला बनाकर श्री वृषभानजी के घर लाती थी. लीला में वृंदा उसका नाम था. एक दिन श्री
स्वामिनीजी बगीचा में पधारें तब वृंदा के पास एक बेटी थी उसको वे खिलाती रही थी. उसने न
तो उठकर स्वामिनी जी को दंडवत किये कि न तो कोई समाधान किया. फिर भी स्वामिनीजीने
उसको कुछ नहीं कहा. उसके बाद श्री स्वामिनीजी ने आज्ञा की के तुम श्री नंदरायजी के घर
जाकर श्री ठाकोरजीको संकेत करके हमारे यहां पधारने के लिए कहो तो वृंदा ने कहा की अभी
मुझे मालाजी सिद्ध करके श्री वृषभानजी को भेजनी है तो मैं नहीं जाऊँगी. ऐसा सुनकर श्री
स्वामिनीजीने कहा कि मैं जब आई तब उठकर सन्मान भी न किया और एक काम करने को
कहा वो भी नहीं किया. इस प्रकार तुम यह बगीचा के लायक नहीं हो. तु यहाँ से भुतल पर पड़
और पाडा बन जा. इसी प्रकार का श्राप उसको दिया तब वह मालन श्री स्वामिनीजी के
चरणारविन्दमें जा कर गीर पडी और बहुत स्तुति करने लगी और कहा कि आप मेरे पर कृपा
करों जिससे मैं यहां फिर आ सकुं. तब स्वामिनीजी ने कृपा करके कहा की जब तेरे पर चढ़कर
श्री ठाकुरजी बन में पधारेंगें तभी तेरा अंगीकार होगा. इसी प्रकार वह मालन सदु पांडे के घर में
पाडा हुई और जब श्रीनाथजी उस पर बेठ कर वन में पधारे तब वो पुन: लीलाको प्राप्त हुई.
आज भी राजस्थान में भरतपुर के समीप टॉड का घना नमक स्थान पर श्रीजी की चरणचौकी
एवं बैठकजी है जो कि अत्यंत रमणीय स्थान है.
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जय श्री कृष्ण
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