व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या, मंगलवार, 07 सितम्बर 2021
आज की विशेषताए : राधाष्टमी की झांझ की बधाई बैठे
- पुष्टिमार्ग में आज की कुशग्रहणी अमावस्या जोगी-लीला के लिए प्रसिद्द है.
- आज के दिन शंकर बालक श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए पधारे थे.
आज कीअमावस्या को कुशग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है. - इसे कुशग्रहणी अमावस्या इसलिए कहा जाता है कि इस दिन उखाड़ा गया दर्भ (दूब) निःसत्व नहीं होता एवं इसे आवश्यकतानुसार (ग्रहण आदि के समय) उपयोग में लिया जा सकता है.
- प्रतिपदा क्षय के कारण राधाष्टमी की आठ दिवस की बधाई कल एकम की जगह आज अमावस से बेठेगी. आज से प्रतिदिन अष्ट सखियों का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है. इस भाव से आठ दिवस तक नित्य नूतन श्रृंगार, भोग और कीर्तनगान होता है.
सेवा क्रम : - उत्सव की बधाई बैठती है अतः आज श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज भोग विशेष कुछ नहीं पर राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
श्रीजी दर्शन :
साज सेवा में आज लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. - गादी-तकिया के ऊपर लाल एवं चरण चौकी के ऊपर सफेद बिछावट होती है.
- सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के आते हैं.
- चांदी की त्रस्टीजी भी धरी जाती है.
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो आज प्रभु को छोटा हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची आदि सभी आभरण माणक के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम तथा मोती की गोल-चन्द्रिका क़तरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
- हीरे-मोती की एक मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है.
- गुलाब के पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट केसरी एवं गोटी मीना की धराई जाती हैं.
…………………………… - श्रीजी की राग सेवा के तहत आज निम्न पदों का गान किया जाता है :
मंगला : बधाई है बरसाने आज
राजभोग : आज वृषभान के आनंद
आरती : मेरे मन आनंद भयो
शयन : भादो की उजियारी
पोढवे : गृह आवत गोपीजन
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जय श्री कृष्ण।
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आइये आज के दिवस की विशेषताए विस्तार से देख लेते है.
आज अमावस्या है जिसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है. - इसे कुशग्रहणी अमावस्या इसलिए कहा जाता है कि इस दिन उखाड़ा गया दर्भ (दूब) निःसत्व नहीं होता एवं इसे आवश्यकतानुसार (ग्रहण आदि के समय) उपयोग में लिया जा सकता है.
- श्रीजी की सेवा प्रणालिका में कल भादवा शुक्ल एकम का क्षय होने से तथा भादवा शुक्ल आठम को राधा अष्टमी होने से आज से राधाष्टमी की आठ दिवस की बधाई प्रारंभ होती है.
- आज से प्रतिदिन अष्ट सखियों का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है.
- इस भाव से आठ दिवस तक नित्य नूतन श्रृंगार, भोग और कीर्तनगान होता है.
- यहाँ उल्लेखनीय है कि पुष्टिमार्ग में राधाजी को श्रीस्वामनिजी स्वरुप मानते हुए प्रभु की अर्धांगिनी का जमोत्सव अष्टमी मनाया जाता है।
श्री राधिकाजी प्रभु श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी हैं. - षोडश कलायुक्त प्रभु श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ जिसका अर्धांग श्रीराधा हैं.
- अतः आठ दिवस की बधाई बैठती है.
- श्री राधिकाजी की सखियाँ भी आठ है, इस भावना से आठ दिवस की झांझ की बधाई बैठती है.
……………… - वहीँ पुष्टिमार्ग में आज की कुशग्रहणी अमावस्या जोगी-लीला के लिए भी प्रसिद्द है.
पुष्टिमार्गीय हवेलियों में प्रभु के सन्मुख जोगी लीला का मंचन होता है.
हालाँकि प्रभु श्रीजी के मंदिर में ऐसा कोई आयोजन नहीं होता है. - लेकिन इसके पीछे का भाव श्री कृष्ण जन्म की एक घटना के साथ जुड़ा हुआ है. – जिसके अनुसार आज के दिन शंकर बालक श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए पधारे थे.
यह सनातन संस्कृति में सर्व ज्ञात है की भगवान् शंकरजी साकार ब्रह्म के बाल स्वरुप के दर्शन के लिए पधारे थे. - मैया यशोदा को पता चला कि कोई साधु द्वार पर भिक्षा लेने के लिए खड़े हैं तो उन्होंने दासी को साधु को फल देने की आज्ञा की.
- दासी ने हाथ जोड़कर साधु को भिक्षा लेने व बालकृष्ण को आशीर्वाद देने को कहा.
- शंकरजी ने दासी से कहा कि-“मेरे गुरू ने मुझसे कहा है कि गोकुल में यशोदाजी के घर परमात्मा प्रकट हुए हैं. इससे मैं उनके दर्शन के लिए आया हूँ. मुझे लाला के दर्शन करने हैं.”
- यह जानकर यशोदाजी को आश्चर्य हुआ. उन्होंने खिड़की से बाहर झाँककर देखा कि एक साधु खड़े हैं जिन्होंने बाघम्बर पहना है, गले में सर्प हैं, भव्य जटा हैं और हाथ में त्रिशूल है.
- मैया यशोदा ने साधु को बारम्बार प्रणाम करते हुए कहा कि- “महाराज आप महान पुरुष लगते हैं. क्या भिक्षा कम लग रही है?
- आप माँगिये…मैं आपको वही दूँगी पर मैं लाला को बाहर नहीं लाऊँगी.
- यह मुझे प्राणों से भी प्रिय है. आपके गले में सर्प है और मेरा लाला अति कोमल है, वह उसे देखकर डर जाएगा.”
- जोगी वेषधारी शंकरजी ने कहा-“मैया, आपका पुत्र देवों का देव है, वह काल का भी काल है और संतों का तो सर्वस्व है.
- वह मुझे देखकर प्रसन्न होगा. माँ, मैं लाला के दर्शन के बिना पानी भी नहीं पीऊँगा. आपके आँगन में ही समाधी लगाकर बैठ जाऊँगा.”
- ऐसा कहकर वे वहीँ नंदभवन के बाहर ध्यान लगा कर बैठ गए.
- आज भी नन्दगाँव में नन्दभवन के बाहर आशेश्वर महादेव का मंदिर है जहां भगवान शंकर प्रभु श्रीकृष्ण के दर्शन की आशा में बैठे हैं.
- शंकरजी महाराज ध्यान करते हुए तन्मय हुए तब बालकृष्णलाल उनके हृदय में पधारे और बालकृष्ण ने अपनी लीला की.
- अचानक बालकृष्ण ने जोर-जोर से रोना शुरु कर दिया.
- मैया यशोदा ने उन्हें दूध, फल, खिलौने आदि देकर चुप कराने की बहुत कोशिश की पर वह चुप ही नहीं हो रहे थे.
- एक गोपी ने मैया यशोदा से कहा कि आँगन में जो साधु बैठे हैं उन्होंने ही लाला पर कोई मन्त्र फेर दिया है.
- तब मैया यशोदा ने शांडिल्य ऋषि को लाला की नजर उतारने के लिए बुलाया. – शांडिल्य ऋषि समझ गए कि भगवान शंकर ही कृष्णजी के बाल स्वरूप के दर्शन के लिए आए हैं.
- उन्होंने मैया यशोदा से कहा-“मैया, आँगन में जो साधु बैठे हैं, उनका लाला से जन्म-जन्म का सम्बन्ध है. उन्हें लाला का दर्शन करवाइये…तभी बालकृष्ण चुप होंगे.”
- मैया यशोदा ने लाला का सुन्दर श्रृंगार किया, बालकृष्ण को पीताम्बर पहनाया, लाला को नजर न लगे इसलिए गले में बाघ के सुवर्ण जड़ित नाखून को पहनाया.
- साधू (जोगी) से लाला को एकटक देखने से मना कर दिया कि कहीं लाला को उनकी नजर न लग जाये.
- मैया यशोदा ने शंकरजी को भीतर बुलाया.
- भगवान शंकर ने प्रभु के बाल रूप के दर्शन किये और अपना सर्वस्व वार दिया.
- इसी भाव से पुष्टिमार्गीय हवेलियों में जोगी लीला का मंचन किया जाता है.
- इस प्रसंग का आधार सूरदासजी द्वारा गाया गया एक पद भी है. जिसमे इस लीला का वर्णन है.
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आयो है अवधूत जोगी कन्हैया दिखलावै हो माई ॥ ध्रु ॥
हाथ त्रिशूल दूजे कर डमरू, सिंगीनाद बजावै ।
जटा जूटमें गंग बिराजै, गुन मुकुंदके गावै हो माई ॥ १ ॥
भुजंगकौ भूषण भस्मकौ लेपन, और सोहै रुण्डमाला ।
अर्द्धचंद्र ललाट बिराजै, ओढ़नकों मृगछाला ॥ २ ॥
संग सुंदरी परम मनोहर, वामभाग एक नारी ।
कहै हम आये काशीपुरीतें, वृषभ कियें असवारी ॥ ३ ॥
कहै यशोदा सुनौ सखीयौ, इन भीतर जिन लाऔ ।
जो मांगै सो दीजो इनकों, बालक मती दिखाऔ ॥ ४ ॥
अंतरयामी सदाशिव जान्यौ, रुदन कियौ अति गाढौ ।
हाथ फिरावन लाई यशोदा, अंतरपट दै आड़ौ ॥ ५ ॥
हाथ जोरि शिव स्तुति करत हैं, लालन बदन उघार्यो ।
‘सूरदास’ स्वामी के ऊपर, शंकर सर्वस वार्यो ॥ ६ ॥
……….