व्रज : भाद्रपद शुक्ल अष्टमी, मंगलवार, 14 सितम्बर 2021
आज के उत्सव की विशेषताएं :
- पुष्टिमार्ग में आज का उत्सव भी जन्माष्टमी की भांति ही मनाया जाता है. लेकिन कुछ तथ्यों को हमें अवश्य जानना चाहिए. श्री वृषभानुजा राधाजी का चरित्र गर्ग सहिंता, ब्रह्मवैवर्त पुराण, पद्मपुराण, स्कन्द पुराण आदि विशेष रूप से किया है. परन्तु श्रीमदभागवत में इनको छिपाकर संकेत से कहा है. लेकिन आचार्यजी ने सुबोधिनिजी में आज्ञा की है कि राधाजी को अनेक सिध्धिदात्री के रूप में अनेक नामों से श्रीमदभागवत में महामुनि शुकदेवजी कहा है. अतः पुष्टिमार्ग में राधाजी को स्वामिनीजी कहा गया है.
- क्योंकि श्री वल्लभ ही स्वामिनी स्वरुप है अतः आपने राधाष्टमी उत्सव नहीं मनाया.
- बल्कि बाद में श्री गुंसाईजी विट्ठलनाथजी ने यह उत्सव मनाया.
- आपने श्री वल्लभ को ही स्वामिनी स्वरुप मानते हुए यह उत्सव मनाने की परम्परा प्रारम्भ की.
- श्री स्वामिनीजी की अति सुन्दरता के पुष्टि में अनेक संकेत है. जैसे घटाओं में राधा रूप की घटा आदि. आप की सुन्दरता की चर्चा से समस्त देव तथा नारद मुनि, गर्गाचार्य जी, शांडिल्य मुनि आदि पधारे थे.
- उक्त ग्रंथों के आधार से राधाजी के प्राकट्य का सारांश कुछ इस प्रकार है.
- श्रीप्रभु की स्वामिनीजी श्री राधिकाजी का प्राकट्य आज के दिवस व्रज के बरसाना गाँव में वृषभान नामक गोप के यहाँ माता कीर्तिरानी के गर्भ से हुआ था.
- प्रभु श्रीकृष्ण से लगभग एक वर्ष पूर्व आपका जन्म हुआ परन्तु आपने नैत्र नहीं खोले.
- 11 माह और 15 दिवस पश्चात जब गोकुल में नंदरायजी के यहाँ प्रभु श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ और उसकी बधाई में जब थाली-मांदल बजाये गये तब आपने अपने नैत्र खोले. तब आनंदित होकर नारदजी तो नाचने लगे थे.
- श्रीप्रभु के साथ आपने मधुरभाव से दानलीला, मानलीला, चीर-हरण लीला, रासलीला आदि कई अद्भुत लीलाएँ की है.
श्रीजी में आज का सेवाक्रम – - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को हल्दी से लीप कर मांडा जाता है.
- आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.
- आज शंखनाद प्रातः 4.15 बजे और मंगला दर्शन प्रातः 5.00 खुलते हैं.
- मंगला दर्शन पश्चात चन्दन, आवंला, एवं फुलेल से अभ्यंग स्नान कराया जाता है.
- चारों समय (मंगला, राजभोग संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
- आज ग्वाल के दर्शन बाहर नहीं खुलते गोपी वल्लभ (ग्वाल) के भोग सरे पश्चात स्वामिनीजी के शृंगार धराए जाते हैं.
- मालाजी नवीन धरायी जाती हैं.
- प्रभु के मुखारविंद पर (ऊबटना) चंदन से कपोलपत्र मांड़े जाते हैं.
- गुलाल, अबीर, चंदन, चोवा से सूक्ष्म खेल होवे फिर जड़ाऊ आरसी दिखा कर प्रभु श्री गोवर्धनधरण को कुंकुम-अक्षत से तिलक करके आरती करी जाती हैं.
- शंख, झालर, घंटानाद के द्वारा स्वामिनीजी के आगमन का स्वागत किया जाता हैं.
- तत्पश्चात उत्सव भोग धरे जाते हैं जिसमें विशेष रूप से पंजीरी के लड्डू, छुट्टीबूंदी, खस्ता शक्करपारा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), सफ़ेद-केसरी मावा की गुंजिया, केशरयुक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, रवा की खीर, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, और विविध प्रकार के संदाना अरोगाये जाते हैं.
- श्रीजी को आज श्री नवनीतप्रियाजी, द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी एवं तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारकाधीशजी के घर से सिद्ध होकर आये पंजीरी के लड्डू भी अरोगाये जाते हैं.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोरर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी एवं शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं.
- उत्थापन समय फलफूल के साथ अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.
- विगत भाद्रपद कृष्ण पंचमी के दिन केसर से रंगे गये वस्त्र जन्माष्टमी एवं राधाष्टमी दोनों उत्सवों पर श्रीजी को धराये जाते हैं.
- आगामी वामन द्वादशी को धराये जाने वाले वस्त्र भी उसी दिन रंगे जाते हैं.
श्रीजी दर्शन : - साज सेवा के तहत श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की किनारी वाले हांशिया की जन्माष्टमी वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी के ऊपर सफेद, तकिया के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी सफ़ेद मखमल वाली आती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पीठिका पर जडाऊ चोखटा आता है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली फूल वाली किनारी से सुसज्जित चाकदार वागा एवं चोली धरायी जाती है.
- सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र मेघ श्याम के होते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का दो जोड़ का हीरा एवं माणक मोती का भारी श्रृंगार धराया जाता है. – कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण मिलवा- हीरे, मोती, माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- उत्सव की हीरों की चोटीजी धरायी जाती है.
- पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.
- मुखारविंद पर चंदन से कपोलपत्र किये जाते हैं.
- श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि मालाजी धरायी जाती है.
- श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- आज मोती का कमल धराया जाता हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- खेल के साज में पट व गोटी जडाऊ स्वर्ण के रखे जाते है.
- आरसी शृंगार में जड़ाऊ स्वर्ण की व राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.
- शयन समय डोल-तिबारी में ध्रुव-बारी के पास में बड़ी बिछायत की जाती है.
- कांच का बंगला धरा जाता है एवं विविध सज्जा की जाती है जो कि अनोसर में भी रहती है और अगले दिन शंखनाद पश्चात हटा ली जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : आज बधाई बरसाने
अभ्यंग : वरस गांठ वृषभान लली की
राजभोग : आज वृषभान के आनंद
उत्थापन : रावल की बधाई
आरती : जदुवंशी जिजमान, श्री वृषभान रायजू के आँगन
(यह ढाढी ढाढन गाते है)
शयन : काम केलि कनक वेली रंग रेल
मान : आज बनी कुंजेश्वरी रानी
पोढवे : राय गिरधरन संग राधिका रानी.
सायंकाल में विशेष :
भोग-आरती के दर्शन में ढाढ़ी-ढाढन (नाच-गा कर बधाई देने वाले) आते हैं एवं मणिकोठा में हो रहे कीर्तन के दौरान दोनों नृत्य करते हैं.
ढाढ़ीलीला होती है, ढाढ़ीलीला के पद गाये जाते हैं. इसके पश्चात दोनों को बधाई स्वरुप दान दिया जाता है.
ढाढ़ी-ढाढन दोनों पुरुष ही होते हैं. पिछले कई वर्षों से ढाढ़न के रूप में बुरहानपुर (महाराष्ट्र) के परम वैष्णव श्री बलदेवभाई सुन्दर स्त्रीवेश धर कर श्रीजी के समक्ष नृत्य करते हैं.
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जय श्री कृष्ण।
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