आश्विन शुक्ल एकादशी, रविवार, 16 अक्टूबर 2021
- रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं जिसके तहत आज महारास की सेवा का द्वितीय मुकुट का श्रृंगार है जिसमें लघुरास, रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- आज मुकुट धराया जाता है एवं श्री ललिताजी के भाव से शयन में गुलाबी उपरना धराया जाता है.
- इसके पूर्व प्रथम मुकुट का श्रृंगार आश्विन शुक्ल अष्टमी को था जिसमें प्रथम वेणुनाद, प्रश्न, उपदेश तथा प्रणय गीत होते हैं जिससे रास के भाव से आती गोपीजनों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है.
- आज की सेवा श्री ललिताजी के भाव से होती है. वस्त्र का रंग एवं आभरण ऐच्छिक है परन्तु श्रृंगार ड़ाख का मुकुट-काछनी का ही धराया जाता है.
- आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
- निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.
अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता. - जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है.
- जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.
- जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.
- दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.
श्रीजी दर्शन : - साज सेवा में आज “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े रास कर रहें हैं ऐसी रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को सफ़ेद जरी रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं रास-पटका (पीताम्बर) धराया जाता है.
- चोली स्याम सुतरु की धरायी जाती हैं.
- ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण मिलवा हीरे एवं मोती के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- शरद के दिनो में चोटीजी (शिखा) नहीं धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- हीरा की बग्घी एवं बग्घी की कंठी धरायी जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ कली, कस्तूरी कमल माला व् श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट व गोटी उत्सववत धराई जाती है.
विशेष :
संध्या-आरती दर्शन उपरांत सारे वस्त्र, शृंगार ठाड़े वस्त्र पिछवाई बड़े कर के शयन के दर्शन में मंगला के दर्शन की भांति गुलाबी उपरना एवं गोल पाग एवं हीरा मोती के छेड़ान के शृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
आज से कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा तक आठों दर्शनों में रास के कीर्तन गाये जाते हैं. - श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : मान लाग्यो गिरधर गावे
राजभोग : बन्यो रास मंडल अहो ब्रज
आरती : तत थई रास मंडल
शयन : श्याम सजनी शरद रजनी
मान : सब ही में तो सों प्राण
पोढवे : दम्पत्ति पोढ़े रस बतियाँ करत
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राजभोग दर्शन कीर्तन (राग : सारंग)
बन्यौ रास मंडल अहो युवति यूथ मध्यनायक नाचे गावै l
उघटत शब्द तत थेई ताथेई गतमे गत उपजावे ll 1 ll
बनी श्रीराधावल्लभ जोरी उपमाको दीजै कोरी, लटकत कै बांह जोरी रीझ रिझावे l
सुरनर मुनि मोहे जहा तहा थकित भये मीठी मीठी तानन लालन वेणु बजावे ll 2 ll
अंग अंग चित्र कियें मोरचंद माथे दियें काछिनी काछे पीताम्बर शोभा पावे l
‘चतुर बिहारी’ प्यारी प्यारा ऊपर डार वारी तनमनधन, यह सुख कहत न आवे ll 3 ll
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जय श्री कृष्ण
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