व्रज – कार्तिक कृष्ण एकादशी, सोमवार, 01 नवम्बर 2021
- आज रमा एकादशी है लेकिन चतुर्दशी क्षय होने के कारण द्वादशी का श्रृंगार आज लिया गया हैं.
विशेष : - आज की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है. कहा जाता है कि आज के दिन रमा नाम की व्रजगोपी ने श्री यशोदाजी को नंदालय में दीपावली की बधाई दी थी जिससे नंदालय में नगाड़े बजाये जाते हैं.
-दीपावली तक प्रतिदिन रौशनी की जाती है. मंदिर के द्वार (नक्कार खाने) के ऊपर नौबत नगाड़े बजाये जाते हैं.
-: अन्नकूट की बड़ी सेवा :- - आज अन्नकूट की बड़ी सेवा सिद्ध करी जाती हैं. आज बहूजीयों और बेटीजी के द्वारा अन्नकूट के दिन श्रीजी के सनमुख धराये जाने वाले भात (चांवल) का ढेर अन्नकूट (अर्थात अन्न का शिखर)
के ऊपर रखे जाने वाले चारों दिशाओं में घी में सेके हुए कसार के चार बड़े गुंजे और मध्य में एक गुंजा चक्र को सिद्ध किया जाता है चारों दिशाओं के गुंजों पर क्रमशः शंख, चक्र, गदा व पद्म उकेरे जाते हैं. - सेवाक्रम :- विगत दशमी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं. आज निज मंदिर में फूल-पत्ती की बाड़ी आती हैं.
- आज का श्रृंगार तुंगविद्याजी की ओर है और आज का श्रृंगार निश्चित है जिसमें पीली सलीदार ज़री के घेरदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पीला चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना की सीधी चन्द्रिका धरायी जाती है.
- तकिया पर मखमल की खोल आती है.
- कार्तिक कृष्ण दशमी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं.
- ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं.
- व्रज में गौवंश ही धन का स्वरुप है अतः श्री ठाकुरजी एवं व्रजवासी गायों का श्रृंगार करते हैं, उनका पूजन करते हैं एवं उनको थूली खिलाते हैं. आज से चार दिन दीपदान का विशेष महत्व है अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रौशनी की जाती है.
आज के श्रीजी दर्शन :- - साज सेवा में आज लाल रंग के आधारवस्त्र पर सुनहरी सिलमाँ-सितारा के विद्रुम के जाल के ज़रदोशी के काम की एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज पीली सलीदार ज़री की सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं पटका धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज मध्य का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण पन्ना तथा सोने के धराये जाते हैं.
- कड़ा, हस्त, सांखला, हांस, त्रवल सभी धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री के चीरा अर्थात ज़री की पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, पन्ना की सीधी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल की दो जोड़ी धराये जाते हैं.
- कली की माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाब के पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- खेल के साज में पट प्रतिनिधि का व गोटी सोने की बड़ी आती है.
- आरसी चाँदी की काँच के कलात्मक काम की आती है.
- विगत दशमी से ही प्रतिदिन प्रभु के सम्मुख उत्थापन उपरांत पुष्प-पत्तियों की बाड़ी धरी जाती है जो शयन उपरांत बड़ी कर दी जाती है.
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
- शयन दर्शन में मणिकोठा व डोलतिबारी में हांडी में रौशनी की जाती है वहीं निज मन्दिर में कांच मृदंग में रौशनी की जाती है.
- दशमी से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.
- इसके अतिरिक्त दशमी से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : पूजा विधि गिरिराज की बतावें
राजभोग : गोवर्धन पूजा को आए सकल ग्वाल
आरती : खेलन को सब गाय बुलाई
शयन : सरस लीला 61 – 63
पोढवे : आई ब्रज बधु, दीपदान दे हटरी
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जय श्री कृष्ण
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राजभोग दर्शन कीर्तन (राग : सारंग)
मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll
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