व्रज – कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी, बुधवार, 03 नवम्बर 2021
विशेष : आज कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी है परन्तु श्रीनाथजी को रूपचौदस का श्रृंगार धराया जा रहा है. इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है.
- कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में दशहरा के दिन तैयार कर सुखाकर रखे 10 गोबर के कंडों को जलाकर उन पर प्रभु स्वरूपों के आज के अभ्यंग स्नान के लिए जल गर्म किया जाता है.
- विशेषकर सूर्योदय से पूर्व हल्दी से चौक लीप कर उसके ऊपर लकड़ी की चौकी बिछाकर, चारों ओर दीप जलाकर, श्री ठाकुरजी को चौकी के ऊपर पधराकर, तिलक, अक्षत एवं आरती कर अभ्यंग स्नान कराया जाता है.
- स्नान पश्चात प्रभु को सुन्दर वस्त्राभूषण धराये जाते हैं जिससे श्री ठाकुरजी का स्वरुप खिल उठता है इस भाव से आज के उत्सव को रूप चतुर्दशी कहा जाता है.
- अपने बालकों को भी इसी शास्त्रोक्त विधि से स्नान कराने से बालकों का स्वास्थ्य उत्तम होता है और रोगादि से मुक्ति मिलती है.
- ऐसी भी मान्यता है कि इस प्रकार शास्त्रोक्त विधि के अनुसार स्नान करने से नर्क-यातना एवं रोगादि से मुक्ति मिलती है. इसी कारण आज के दिवस को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है.
श्रीजी में आज का सेवाक्रम :- - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- दिन भर सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.
- चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
- आज प्रभु के चरणचौकी, तकिया, शैयाजी, कुंजा, बंटा आदि सभी साज जड़ाव के होते हैं. दोनों खण्ड चांदी के साजे जाते हैं.
- गेंद, दिवाला, चौगान सभी सोने के आते हैं.
- मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को फुलेल समर्पित कर तिलक किया जाता है.
- तत्पश्चात बीड़ा पधराकर चन्दन, आवंला एवं उपटना से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- आज सुनहरी ज़री के आधारवस्त्र पर भीम पक्षी के पंख के भरतकाम से सुसज्जित पिछवाई आती है.
- आज श्रीजी को सुनहरी फुलकशाही ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है.
- कार्तिक कृष्ण दशमी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं. ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी.
- इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कटपूवा अरोगाये जाते हैं.
- उत्सव होने के कारण विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव, आधे नेग की श्याम-खटाई आदि अरोगाये जाते हैं.
- अदकी में संजाब (गेहूं के रवा) की खीर अरोगायी जाती है.
- प्रभु के सम्मुख चार बीड़ा की सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.
- भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकयुक्त सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं.
- आरती समय अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर गेहूं के पाटिया के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन : - साज सेवा में श्रीजी में आज सुनहरी ज़री के आधारवस्त्र पर भीम पक्षी के पंख के काम वाली एवं लाल रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल एवं सुनहरी फुलक शाही ज़री का सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं.
- पटका सुनहरी ज़री का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- हीरे की प्रधानता सहित, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना के थेगडा वाला सिरपैंच, केरी घाट की लटकन वाला लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. – श्रीकर्ण में हीरा के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, मोती के हार, दुलड़ा माला, कस्तूरी, कली आदि की माला धरायी जाती हैं.
- गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- खेल के साज में पट उत्सव का गोटी जडाऊ रखी जाती है.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
श्रीजी की सायंकालीन सेवा : - प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर चीरा पर हीरा की किलंगी व मोती की लूम धरायी जाती है. – आज श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.
- शयन समय निज मन्दिर के बाहर दीपमाला सजायी जाती है.
- मणिकोठा में रंगोली का पाट व दीपक सजाये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : गोकुल गोधन पूज ही गिरधर
अभ्यंग : आज न्हावो मेरे कुंवर, बलदाऊ कुंवर कन्हाई
बल न्हाए तैसे लालन, आज दिवारी बड़ो पर्व
घरी एक छाडो तात
राजभोग : बडडन आगे ले गिरधर
आरती : दीप दान दे श्याममनोहर, खेली बहो खेली
शयन : आज अमावस दीपमालिका, आज कहू की रात
पोढवे : वे देखो बारात झरोखन
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अभ्यंग पद :-
न्हात बलकुंवर कुंवर गिरिधारी ।
जसुमति तिलक करत मुख चुंबत, आरती नवल उतारी ॥ १ ॥
आनंद राय सहित गोप सब, नंदरानी व्रजनारी ।
जलसों घोर केसर कस्तुरी, सुभग सीसतें ढारी ॥ २ ॥
बहोर करत शृंगार सबे मिल, सब मिल रहत निहारी ।
चंद्रावलि व्रजमंगल रस भर, श्रीवृषभान दुलारी ॥ ३ ॥
मनभाये पकवान जिमावत, जात सबें बलहारी ।
श्रीविठ्ठलगिरिधरन सकल व्रज, सुख मानत छोटी दिवारी ॥ ४ ॥
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राजभोग दर्शन कीर्तन (राग : सारंग)
बड़ड़ेन को आगें दे गिरिधर श्री गोवर्धन पूजन आवत l
मानसी गंगा जल न्हवायके पाछें दूध धोरी को नावत ll 1 ll
बहोरि पखार अरगजा चरचित धुप दीप बहु भोग धरावत l
दे बीरा आरती करत है ब्रज भामिन मिल मंगल गावत ll 2 ll
टेर ग्वाल भाजन भर दे के पीठ थापे शिरपेच बंधावत l
‘चत्रभुज’ प्रभु गिरिधर अब यह व्रज युग युग राज करो मनभावत ll 3 ll
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