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श्रीनाथजी में आज बड़ा मनोरथ, विशेष श्रृंगार दर्शन

Divyashankhnaad by Divyashankhnaad
24/11/2021
in Uncategorized, श्रीनाथजी दर्शन
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श्रीनाथजी में आज बड़ा मनोरथ, विशेष श्रृंगार दर्शन
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व्रज : मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी, बुधवार, 24 नवम्बर 2021
आज अधकि (मनोरथी) का छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)
आज श्रीजी में श्रीजी में वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है.
इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार
मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों
एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
श्रीजी में घर के छप्पनभोग और अदकी के छप्पनभोग में कुछ अंतर होते हैं –

  • नियम (घर) के छप्पनभोग की सामग्रियां उत्सव से पंद्रह दिवस पूर्व अर्थात मार्गशीर्ष शुक्ल
    प्रतिपदा से सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है परन्तु अदकी के छप्पनभोग की सामग्रियां मनोरथ से
    आठ दिवस पूर्व ही सिद्ध होना प्रारंभ होती है.
  • नियम (घर) के छप्पनभोग ही वास्तविक छप्पनभोग होता है क्योंकि अदकी का छप्पनभोग
    वास्तव में छप्पनभोग ना होकर एक मनोरथ ही है जिसमें विविध प्रकार की सामग्रियां अधिक
    मात्रा में अरोगायी जाती है.
  • नियम (घर) का छप्पनभोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन
    प्रातः लगभग 11 बजे खुल जाते हैं जबकि अदकी का छप्पनभोग मनोरथ राजभोग में अरोगाया
    जाता है अतः इसके दर्शन दोपहर लगभग 12 बजे खुलते हैं.
  • नियम (घर) के छप्पनभोग में श्रीजी के अतिरिक्त किसी स्वरुप को आमंत्रित नहीं किया जाता
    जबकि अदकी के छप्पनभोग मनोरथ में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार श्री नवनीतप्रियाजी में
    राजभोग अपेक्षाकृत कुछ जल्दी होते हैं और
    लालन अपने घर राजभोग अरोग कर श्रीजी में पधारते हैं व श्रीजी की गोदी में विराजित हो
    छप्पनभोग अरोगते हैं.
  • नियम (घर) का छप्पनभोग उत्सव विविधता प्रधान है अर्थात इसमें कई अद्भुत सामग्रियां ऐसी
    होती है जो कि वर्ष में केवल इसी दिन अरोगायी जाती हैं परन्तु अदकी के छप्पनभोग मनोरथ
    संख्या प्रधान है अर्थात इसमें सामान्य मनोरथों में अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अधिक मात्रा
    (351)में अरोगायी जाती हैं.
  • उत्सव रुपी वृहद मनोरथ होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज)
    को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती
    हैं.
    आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.
    मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में
    मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
    श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी
    की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के पणा (मुरब्बा) का भोग अरोगाया
    जाता है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव,
    केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात ) अरोगाये
    जाते हैं.
    छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते हैं.
    श्रीजी दर्शन :
    साज : आज श्रीजी में श्याम रंग की धरती (आधार वस्त्र) पर श्वेत ज़री से गायों, बछड़ों के
    चित्रांकन वाली एवं श्वेत ज़री की लैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया
    एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
    वस्त्र : श्रीजी को आज पीली ज़री का रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं
    चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघ श्याम रंग के धराये जाते हैं.
    श्रृंगार : श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ा
    तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
    श्रीमस्तक पर लाल टिपारा के ऊपर पीले तुर्री व पेच, लाल ज़री के गौकर्ण, सुनहरी ज़री का
    घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी
    (शिखा) मीना की बायीं ओर धरायी जाती है.
    कली, कस्तूरी व वैजयन्ती माल धरायी जाती हैं.
    श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
    बायीं ओर मीना की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में फ़ीरोज़ा के मकराकृति कुंडल
    धराये जाते हैं.
    पीले एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.
    श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
    पट लाल व गोटी सोना की बाघ-बकरी की आती है.
    संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के श्रृंगार
    धराये जाते हैं. टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं और शयन दर्शन
    खुलते हैं.
  • श्रीजी की राग सेवा :
    मंगला : व्रजानंद कंदम
    राजभोग : कछु कही ना जाय तेरी उनकी
    आरती : टेडी री आली टेड़ी अलक
    शयन : ऐ सिर सोने के सुतन सोहे पाग
    मान : तेरे सुहाग की महिमा मोपे
    पोढवे : लागत है अत शीत की निकी
  • श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं
    शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
  • नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग
    आरोगाया जाता है.
    ………………………
    जय श्री कृष्ण
    ………………………
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    ……………………….
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