व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी, शनिवार, 27 नवम्बर 2021
विशेष :– आज श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोविन्दरायजी का उत्सव है. बधाई. श्री गुसांईजी के सभी सात लालजी के प्राकट्योत्सव सभी सात गृहों में उत्सववत मनाये जाते हैं.
श्रीजी का सेवाक्रम :-
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी हल्दी से मांडी जातीहैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज प्रभु के श्रृंगारी द्वितीय गृह के आचार्य श्री कल्याणरायजी महाराज होते हैं.
- आज श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं.
- वस्त्र के साथ जलेबी घेरा की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहाँ से आती हैं.
- साथ ही आज प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) के घर से भी श्रीजी के भोग हेतु जलेबी के टूक की सामग्री आती है.
- आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
- कल मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी श्रीजी में शीतकाल का प्रथम मंगलभोग होगा.
श्रीजी दर्शन : - साज सेवा में श्रीजी में आज पीली साटन के वस्त्र पर कत्थइ हांशिया वाली एवं रुपहरी ज़री की चौकड़ी की सज्जा वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र सेवा में आज प्रभु को पीले साटन का सुनहरी किनारी से सुसज्जित सूथन, चाकदार वागा, चोली एवं जडाऊ मोजाजी (गोकुलनाथजी के) धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
- मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्री हस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि धराये जाते है.
- खेल के साज में पट पीला, गोटी श्याम मीना की आती है.
- आरसी श्रृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : देहो बसन हमारो मोहन
राजभोग : सेवक की सुख रास, गो वल्लभ गोवर्धन
आरती : राखी हो अलक बीच
शयन : टेरी हो बल बल जाऊं
मान : कीजे माननी मान
पोढवे : रंग महल सुखदाई पोढ़े - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
सायंकालीन सेवा :-
संध्या-आरती दर्शन उपरान्त श्रीजी के श्रीकंठ व श्रीमस्तक के श्रृंगार बड़े किये जाते हैं और श्रीकंठ में छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं वहीँ श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे के स्थान पर केसरी कुल्हे व जड़ाव मोजाजी के स्थान पर केसरी मोजाजी धराये जाते हैं. लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.
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श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोविन्दरायजी का प्राकट्योत्सव
(मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी विक्रम सम्वत् १५९९) परिचय :
आप द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के आचार्य थे. श्री गुसांईजी ने आपको श्री विट्ठलनाथजी एवं श्री स्वामिनीजी का स्वरुप सेवा हेतु प्रदान किया.
आपके पुत्र श्री कल्याणरायजी एवं पौत्र श्री हरिरायजी (शिक्षापत्र वाले) थे. श्री हरिरायजी के समय में प्रभु श्री विट्ठलनाथजी गोकुल से नाथद्वारा पधारे.
श्री गोविन्दरायजी एक बार श्रीजी का श्रृंगार कर रहे थे तब आपके पुत्र श्री कल्याणरायजी का जन्म हुआ. श्रीजी ने बधाई देते हुए कहा – “गोविन्द तेरे कल्याण भयो है…मोंको बधाई दे.” इसी कारण आपके पुत्र का नाम श्री कल्याणरायजी पड़ा.
पिंडरू पड़ा इस लिए आपको सेवा तुरंत छोड़नी पड़ी.
श्रीजी ने पुनः आज्ञा की – “मोंको पहले बधाई दे….श्रृंगार कर के चल्यो जाएगो.” तब आपने तुरंत हाथ में से अंगूठी निकल कर प्रभु को भेंट की.
उस अंगूठी का पन्ना का नग आज भी श्रीजी के श्रीमस्तक पर धराया जाता है एवं खाली अंगूठी के दर्शन आज श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में कराये जाते हैं.
आपश्री ठाकुरजी की सेवा को सर्वोपरि मानते थे . आपश्री की सेवाभावना से जुड़ा प्रेरणास्पद प्रसंग हैं.
जब आपके लालजी श्री कल्याणरायजी के विवाह के दिन उत्थापन की सेवा के समय वर-घोड़ा का मुहूर्त था तब आपकी आँखो से आँसू निकल आये यह देखकर श्री गुसांईजी ने कारण पुछा तो आपने उत्तर दिया “उत्थापन सेवा छूट जावेगी.” श्री गुसांईजी ने उत्थापन सेवा सिद्ध करने की आज्ञा करी और कहा वे स्वयं वर-घोड़ा संभाल लेंगे.
यह प्रसंग तत्कालीन आचार्यों में सेवा की प्रतिष्ठा दर्शाता है.
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कीर्तन – (राग : सारंग)
गोवल्लभ गोवर्धन वल्लभ श्रीवल्लभ गुन गिने न जाई l
भुवकी रेनु तरैया नभकी घनकी बूँदें परति लखाई ll 1 ll
जिनके चरन कमल रज वन्दित संतन होत सदा चितचाई l
‘छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविट्ठल’ नंदनंदन की सब परछाई ll 2 ll
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जय श्री कृष्ण
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