व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021
विशेष : आज श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी का उत्सव है.
- आपको पुष्टिमार्ग के हितों के रक्षणकर्ता, श्री वल्लभ के सिद्धांतों को वार्ता आदि के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने वाले के रूप में जाना जाता है. ऐसे पुष्टि के यश स्वरुप वैष्णव प्रिय श्री गोकुलनाथजी के प्राकट्योत्सव की बधाई.
श्रीजी का सेवाक्रम :-
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से मांडा जाता हैं.
- आशापाल के पत्तों से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- गेंद, चौगान, दिवाला आदि सोने के आते हैं.
- सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.
- चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
- दिनभर के सभी कीर्तनों में झांझ बजायी जाती है.
- सभी समय के कीर्तनों में गोकुल शब्द वाले बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.
- विगत रात्रि से पौष कृष्ण अष्टमी तक श्रीजी को प्रतिदिन शयन के अनोसर में व राजभोग पश्चात अनोसर में दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध की गयी सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाती है.
- केशर, कस्तूरी, सौंठ, अम्बर, बरास, जाविन्त्री, जायफल, विभिन्न सूखे मेवों, घी व मावा सहित 29 मसालों से निर्मित सौभाग्य-सूंठ के बारे में कहा जाता है कि इसे खाने वाला व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है.
- पौष कृष्ण नवमी को श्री गुसांईजी के उत्सव के दिवस से शाकघर की सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाएगी.
- श्री गोकुलनाथजी ने श्रीजी को मुकुट, कुल्हे, मोजाजी एवं तोड़ा आदि जड़ाव स्वर्ण के भेंट किये थे उसमें से आज जड़ाव की कुल्हे एवं मोजाजी प्रभु को धराये जाते हैं.
- उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी प्रभु को केशरयुक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है.
- अनसखड़ी में राजभोग में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख चार बीड़ा की सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.
श्रीजी दर्शन :- - साज सेवा में आज लाल मखमल के आधारवस्त्र के ऊपर सिलमा सितारा की, कशीदे की पुष्प-लताओं के ज़रदोशी के भरतकाम वाली पिछवाई सजाई जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल साटन के छापा के सूथन, चाकदार वागा, चोली एवं जड़ाऊ मोजाजी धराये जाते हैं.
- सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- जड़ाऊ मोजाजी के ऊपर लाल रंग के फूंदे शोभित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा में आज प्रभु को वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण माणक की प्रधानता वाले धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
- त्रवल नहीं धराये जाते परन्तु टोडर धराया जाता है.
- आज श्रीकंठ में बघनखा भी धराया जाता है.
- श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में माणक के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (माणक व हीरा) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि उत्सववत धराये जाते है.
- आरसी चार झाड की दिखाई जाती है.
- खेल के साज में पट उत्सव का व गोटी सोने की जाली की आती है.
सायंकालिन सेवा :- - संध्या-आरती दर्शन उपरान्त प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार, जड़ाऊ मोजाजी व कुल्हे बड़े किये जाते हैं.
- आभरण छेड़ान के धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर लाल छापा की कुल्हे व मोजाजी भी लाल छापा के ही धराये जाते हैं.
- आज से बसंत पंचमी तक श्रीजी में शयन दर्शन बाहर नहीं खोले जाते.
- हालांकि नाथद्वारा में शयन पूरे वर्ष होते हैं, केवल प्रभु सुखार्थ कुछ विशिष्ट कारणों से आज से बसंत पंचमी व रामनवमी से आश्विन शुक्ल नवमी (मातृनवमी) तक शयन के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते है.
- दर्शन के अतिरिक्त शयन का सभी सेवाक्रम (शयनभोग, शयन-आरती व अनोसर का क्रम) पूर्ववत ही रहता है.
- शीत से बचाव के लिए संध्या-आरती दर्शन के पश्चात भीतर की सोहनी कर सभी द्वार बंद कर दिए जाते हैं. डोल-तिबारी, मणिकोठा आदि विभिन्न स्थानों पर अंगीठी रखी जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा :
श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : बहुरी कृष्ण गोकुल पुनि प्रगटे
श्रृंगार : जुग जुग राज करो श्री गोकुल
राजभोग : विट्ठलेश चरण चारु पंकज
आरती : वल्लभ खेलत है गृह आँगन
शयन : श्री वल्लभ राजाधिराज राजत - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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कीर्तन (राग : सारंग)
श्रीविट्ठलेश चरणकमल पावन त्रैलोक करण दरस परस सुंदर वर वार वार वंदे ।
समरथ गिरिराज धरण लीला निज प्रकट करण संतन हित मानुषतनु वृंदावन चंदे ।।१।।
चरणोदक लेत प्रेत ततक्षण ते मुक्त भये करूणामय नाथ सदा आनंद निधि कंदे ।
वारते भगवानदास विहरत सदा रसिकरास जय जय यश बोल बोल गावते श्रुति छंदे ।।२।।
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श्रीगोकुलनाथजी चरित्र दर्शन :
प्रकटे श्रीगोकुलनाथजी श्रीविट्ठलनाथके धाम बधाई ।
उग्र कियो यश या भूतल पर, माला तिलक दृढ़ाई ।।
श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी का प्राकट्योत्सव
श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी का प्राकट्य विक्रम संवत 1608 में मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी को इलाहबाद के अडेल में हुआ था.
आपके प्राकट्य के समय श्री गुसांईजी के कृपापात्र कृष्णादासी ने कहा –“मेरो गोकुलनाथ आयो.” तब से आपका नाम श्री गोकुलनाथ पड़ा, परन्तु घर में सभी आपको ‘श्रीवल्लभ’ के नाम से पुकारते थे एवं आपके भक्त आपको ‘श्रीजी’ कहते थे.
पुष्टिमार्ग में सभी आपको ‘माला-तिलक के रक्षणहार’ के रूप में जानते हैं एवं भक्ति भाव से वंदन करते हैं.
आप मेघश्याम वर्ण के एवं मध्यम कद के थे. लम्बा मुख, विशाल ललाट एवं सुन्दर नैत्र थे. आपको विद्याभ्यास के साथ खेलकूद में भी अत्यधिक रूचि थी. सभी कलाओं में आप प्रवीण थे.
सोलह वर्ष की आयु में आपका विवाह श्री पार्वती बहूजी के साथ हुआ. आपको तीन पुत्र (श्री गोपालजी, श्री विट्ठलरायजी एवं श्री व्रजरत्नजी) एवं तीन पुत्रियाँ थीं.
श्री गुसांईजी ने आपको प्रभु श्री गोकुलनाथजी का स्वरुप सेवा हेतु प्रदान किया. गोकुल में जहाँ आप रहते थे वहीँ निकट आपने मंदिर बनवा कर श्री ठाकुरजी को पधराया एवं सेवा करते थे.
श्री गोकुलनाथजी का सभी परिवारजनों पर अत्यंत स्नेह था. श्री गिरधरजी लीलाप्रवेश के पश्चात आप ही परिवार के मुखिया थे अतः सभी आपको बहुत मान देते थे एवं आपकी सलाह के अनुसार कार्य करते थे.
विक्रम संवत 1672 में बादशाह जहाँगीर ने वश कर चिद्रुप नामक सन्यासी के माला-तिलक पहनने पर प्रतिबन्ध लगा दिया तब आपने इसका कड़ा विरोध कर माला-तिलक का रक्षण किया. 72 वर्ष की आयु में आप 49 दिन की विकट यात्रा कर बादशाह जहाँगीर को समझाने कश्मीर पधारे.
आपने कहा था –
माला केम उतारिये जे आपी छे जगदीश, ए कोण माला के उतराव माला बाँधी शीष |
शीष जे बाँधी छे ते शीष साथे जाय, पण हाथे करी माला उतारू एम केम करी थाय ||
अर्थात यह तुलसीजी की माला (कण्ठीजी) हम कैसे उतार दें, यह माला तो जगदीश (श्रीजी) ने दी है, और वो कौन है जो मालाजी को उतरवाये अब तो यह मालाजी शीष से बाँध ली है, अगर यह माला जायेगी तो यह मेरा मस्तक भी जाएगा, अरे ! इस मालाजी को कौन कैसे अपने हाथ से उतार सकता है…?
अथक प्रयत्न करने के पश्चात भी जब जहाँगीर नहीं माना तब आपने गोकुल को छोड़ दिया परन्तु माला-तिलक को नही छोड़ा. आप तीन मास तक गोकुल छोड़कर सोरम गाँव में विराजे, वर्षों तक सतत संघर्ष कर माला-तिलक का रक्षण किया.
बादशाह को अपनी भूल का आभास हुआ और जब उसने अपना आदेश वापिस लिया तब आप पुनः गोकुल पधारे.
आपकी तेरह बैठकें विराजित हैं. इनमें से आठ बैठकें व्रज में, दो गुजरात (अहमदाबाद एवं गोधरा) में, एक सोरमजी में, एक अडेल में एवं एक कश्मीर में स्थित हैं. विक्रम संवत 1697 में माघ कृष्ण नवमी के दिवस 89 वर्ष की आयु में आपने नित्यलीला में प्रवेश किया.
वैष्णवों को आप इतने प्रिय थे कि तत्समय आपके प्रबल विरह में 78 वैष्णवों ने अपने प्रण त्याग दिए. सातों भाइयों में आप ही सर्वाधिक समय तक भूतल पर विराजित रहे.
पुष्टिसम्प्रदाय के हितों के रक्षणकर्ता, श्री वल्लभ के सिद्धांतों को वार्ता आदि के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने वाले श्री गोकुलनाथजी का यह पुष्टिमार्ग सदा ऋणी रहेगा.
ऐसे पुष्टि के यश स्वरुप वैष्णव प्रिय श्री गोकुलनाथजी के प्राकट्योत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई
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जय श्री कृष्ण
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