व्रज – पौष कृष्ण प्रतिपदा, सोमवार, 20 दिसंबर 2021
आज के दिवस की विशेषता :- आज पौष कृष्ण प्रतिपदा है और आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री राजीवजी (श्रीदाऊबावा) का उत्सव है.
श्रीजी का सेवाक्रम :- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरियों को हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज दिनभर सभी समय श्री गुसांईजी की बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.
- चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
- गद्दल रजाई बड़े बूटा के खिनखाब धराये जाते है.
- राजभोग में कांच के टुकड़ा का बंगला आता है.
- श्रीजी को नियम के लाल साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर किरीट मुकुट धराया जाता है.
- श्रीजी दर्शन :– साज सेवा में आज श्रीजी में केसरी रंग की साटन की सुनहरी ज़री के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में एक ओर आरती करते श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री एवं दूसरी ओर हाथ जोड़ कर प्रभु के दर्शन करते श्री दाऊबावा का कलाबत्तू का चित्रांकन किया हुआ है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल रंग की साटन का रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, चाकदार वागा, चोली व लाल मलमल का पटका धराये जाते हैं.
- टंकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते है.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं जिसके चारों ओर पुष्प-लताओं का चित्रांकन किया हुआ है.
- इस प्रकार के ठाड़े वस्त्र वर्षभर में केवल आज के दिन ही धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा में प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक भारी श्रृंगार धराया जाता है. कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं. तीन हार पाटन वाले विशेष धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर छिलमां हीरा का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है.
- कली, कस्तूरी व नीलकमल की माला धरायी जाती है.
- श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी तथा दो वेत्रजी (हीरा व स्वर्ण के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि उत्सववत धराये जाते है.
- खेल के साज में पट व गोटी उत्सव की आती हैं.
- आरसी श्रृंगार में लाल मख़मल की और राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.
- भोग सेवा विशेष :-
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशर-युक्त चंद्रकला, दूधघर में सिद्ध केसर-युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में छःभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा :
- मंगला : पौष कृष्ण नौमी जब आयी
- राजभोग : पौष निर्दोष सुख को
- आरती : जन्म लियो शुभ लग्न विचार
- शयन : सुभग सहेली सब मिल
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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- जय श्री कृष्ण
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- राजभोग दर्शन –
- कीर्तन – (राग : सारंग)
- पौष निर्दोष सुख कोस सुंदरमास कृष्णनौमी सुभग नव धरी दिन आज l
- श्रीवल्लभ सदन प्रकट गिरिवरधरन चारू बिधु बदन छबि श्रीविट्ठलराज ll 1 ll
- भीर मागध भई पढ़त मुनिजन वेद ग्वाल गावत नवल बसन भूषणसाज l
- हरद केसर दहीं कीचको पार नहीं मानो सरिता वही निर्झर बाज ll 2 ll
- घोष आनंद त्रियवृंद मंगल गावें बजत निर्दोष रसपुंज कल मृदुगाज l
- ‘विष्णुदास’ श्रीहरि प्रकट द्विजरूप धर निगम पथ दृढथाप भक्त पोषण काज ll 3 ll
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- नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री राजीवजी (श्री दाऊबावा) – संक्षिप्त जीवन परिचय
- आपका जन्म विक्रम संवत २००५ में पौष कृष्ण प्रतिपदा को मुंबई में हुआ. आप – नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री के ज्येष्ठ पुत्र व वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) महाराजश्री के ज्येष्ठ भ्राता थे.
- आप जीवनभर श्री गोवर्धनधरण प्रभु एवं श्री नवनीतप्रियाजी के सुखार्थ गुप्त मनोरथ करने के आग्रही थे.
- आप मनोरथ की भाव-भावना को विचार कर प्रभु के सुखार्थ अनेक रसमय सामग्रियां, श्रृंगार व मनोरथ करते थे.
- आपका उपनयन संस्कार जतीपुरा में एवं विवाह नाथद्वारा में हुआ था.
- आपने विक्रम संवत २०२३ में नाथद्वारा पधारकर आज का श्रृंगार प्रारंभ किया था. श्रीजी प्रभु को आपने अनेक आभूषण भेंट किये. जीवन भर आप प्रभु सेवा में व्यस्त रहे एवं जीवन के अंतिम वर्षों तक स्वास्थ्य की प्रतिकूलता होने पर भी श्री गोवर्धनधरण प्रभु को विविध मनोरथों द्वारा लाड लड़ाते थे.
- आपने श्रीजी के विग्रह स्वरुप श्री मदनमोहनजी, श्री नवनीतप्रियाजी, द्वितीय पीठाधीश्वर श्री विट्ठलनाथजी एवं प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) को नाथद्वारा के समीप प्रभु के कछुवाई के बाग़ में पधरा कर भव्य फाग का अद्भुत मनोरथ किया था जिसे नगरवासी एवं वैष्णव आज भी याद करते हैं.
- आप नगरवासियों और व्रजवासियों में भी अत्यंत लोकप्रिय थे. आज दिनभर श्री गुसांईजी की बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.
- सभी वैष्णवों को प्रिय श्री दाऊबावा के जन्मोत्सव की अनेकानेक बधाईयाँ
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