व्रज – पौष शुक्ल बारस, शुक्रवार, 14 जनवरी 2022
विशेष : – आज उत्तरायण अर्थात मकर-संक्रांति है. भारतीय तिथियों का आकलन चंद्रमा की कलाओं के आधार पर किया जाता है और सामान्यतया अधिकतर त्यौहार चन्द्र तिथियों के आधार पर ही मनाये जाते हैं परन्तु यह त्यौहार सूर्य के विभिन्न राशियों पर संक्रमण के आधार पर मनाया जाता है अतः सामान्यतया अंग्रेज़ी वर्ष की 14 अथवा 15 जनवरी को मनाया जाता है.
- प्राचीन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रतिमाह सूर्य का निरयण राशी परिवर्तन संक्रांति कहलाता है. इसके अनुसार सूर्यदेव आज मकर राशि में प्रवेश एवं दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रस्थान करते हैं. प्रतिमाह संक्रांति अलग-अलग वाहनों में, वस्त्र धारण कर, शस्त्र, भोज्य पदार्थ एवं अन्य पदार्थों के साथ आती है.
- यह त्यौहार उत्तर भारत के कुछ भागों में लोहड़ी, गुजरात में उत्तरायण, दक्षिण भारत में पोंगल और असम में बीहू के नाम से मनाया जाता है जिसमें कृषक अपनी अच्छी फसलों की ख़ुशी मनाते हुए उसे अपने इष्टदेव को समर्पित करते हैं.
- यद्यपि सूर्य की 12 संक्रांतियां है परन्तु इनमें से चार (मेष, कर्क, तुला एवं मकर) संक्रांति महत्वपूर्ण है. भारत में सामान्य लोग केवल मकर-संक्रांति के विषय में जानते हैं क्योंकि इस दिन दान-पुण्य किया जाता है परन्तु ‘पुष्टिमार्ग’ में भी दो (मेष एवं मकर) संक्रांति को मान्यता दी गयी है.
- मकर-संक्रांति 14-15 जनवरी एवं मेष-संक्रांति 14 अप्रेल को मनायी जाती है.
श्रीजी का सेवाक्रम –
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को पूजन कर हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. रजाई व गद्दल छींट की आती है. दिन में दो समाँ में आरती थाली में की जाती है.
- मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- प्रभु के समक्ष नयी गेंदे धरी जाती है. सभी समां में गेंद खेलने के पद गाये जाते हैं.
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कट-पूवा अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग में अनसखड़ी में नियम से दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में केसरी पेठा, मीठी सेव, विशेष रूप से सिद्ध सात धान्य का खींच व मूंग की द्वादशी अरोगायी जाती है. इसके साथ प्रभु को आज गेहूं का मीठा खींच भी अरोगाया जाता है.
- श्रीजी में भोगी संक्रांति नहीं मनाई जाती है. केवल नवनीत प्रियाजी में सखडी में चीला की सामग्री अरोगाई जाती है.
मकर संक्रांति पुण्य काल निर्णय :
- श्रीजी की व्रतोत्सव की टिप्पणी के अनुसार इस वर्ष मकर संक्रांति द्वादशी शुक्रवार को दिन के 2 बजकर 30 मिनिट पर प्रारंभ होगी अतः मकर-संक्रांति का पुण्यकाल आज 2 बज कर 30 मिनिट से प्रारंभ होकर सायं 6 बजकर 5 मिनिट तक रहेगा. जिसमे संक्रांति के पास के 2 घंटे तक अतिमुख्य पुण्यकाल है.
- श्रीजी को तिलवा के उत्सव भोग उत्थापन में धरे जायेंगे.
- उत्सव भोग में श्रीजी को तिलवा के गोद के बड़े लड्डू, श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी एवं श्री द्वारकाधीश प्रभु के घर से आये तिलवा के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांड़ी, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा एवं तले हुए बीज-चालनी के नमकीन सूखे मेवे का भोग अरोगाया जाता है.
श्रीनाथजी दर्शन :–
- साज सेवा में आज श्रीजी में बड़े बूटों वाली लाल रंग की छींट की केरी भात की पिछवाई धरायी जाती है जो कि रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को लाल रंग की छींट का रुई भरा सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं मोजाजी धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र श्वेत लट्ठे के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा में आज श्रीजी को छोटा चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. – कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरा, मोती तथा सोने के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की छींट की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में त्रवल नहीं आवे बल्कि कंठी धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी (विट्ठलेशरायजी के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि धराये जाते है.
- खेल के साज में पट लाल एवं गोटी स्याम मीना की आती हैं.
- आरसी श्रृंगार में स्वर्ण की दिखाई जाती हैं.
शयन में विशेष भोग सेवा : - आज शयनभोग में प्रभु को शाकघर में सिद्ध सूखे मेवे का अद्भुत खींच भी अरोगाया जाता है जो कि वर्षभर में केवल आज के दिन ही अरोगाया जाता है.
- श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : ललन की प्रीति अमोली
श्रृंगार : तरणी तनया तीर आवत है
राजभोग : बोलत श्याम मनोहर बैठे
आरती : ते मेरी मोतीन लर क्यों तोरी
शयन : ग्वालिन तें मेरी गेंद चुराई
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है. - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
……………………..
जय श्री कृष्ण
………………………
मकर संक्रांति में श्रीजी के कीर्तन –
श्रृंगार दर्शन – (राग-धनाश्री)
तरणी तनया तीर आवत है प्रातसमें गेंद खेलत देख्योरी आनंदको कंदवा l
काछिनी किंकिणी कटि पीतांबर कस बांधे लाल उपरेना शिर मोरनके चंदवा ll
आरती दर्शन -(राग-नट)
तुम मेरी मोतीन लर क्यों तोरी ।
रहो रहो ढोटा नंदमहरके करन कहत कहा जोरी ।।१।।
में जान्यो मेरी गेंद चुराई ले कंचुकी बीच होरी ।
परमानंद मुस्काय चली तब पूरन चंद चकोरी ।।२।।
शयन – (राग-धनाश्री)
ग्वालिन तें मेरी गेंद चुराई l
खेलत आन परी पलका पर अंगिया मांझ दुराई ll 1 ll
भुज पकरत मेरी अंगिया टटोवत छुवत छतियाँ पराई l
‘सूरदास’ मोहि यहि अचंभो एक गयी द्वै पाई ll 2 ll
मलार मठा खींच को लोंदा।
जेवत नंद अरु जसुमति प्यारो जिमावत निरखत कोदा॥
माखन वरा छाछ के लीजे खीचरी मिलाय संग भोजन कीजे॥
सखन सहित मिल जावो वन को पाछे खेल गेंद की कीजे॥
सूरदास अचवन बीरी ले पाछे खेलन को चित दीजे॥
……………………..
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
……………………….