व्रज – माघ कृष्ण सप्तमी, मंगलवार, 25 जनवरी 2022
नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े दामोदरजी (दाऊजी) महाराज का उत्सव
विशेष :– श्री गोवर्धनधरण प्रभु जिनके माध्यम से व्रज से मेवाड़ पधारे, आज श्रीजी में उन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े दामोदरजी (दाऊजी) का उत्सव है.
आपका प्राकट्य श्री लाल-गिरधरजी महाराज के यहाँ विक्रम संवत १७११ में गोकुल में हुआ.
आप अद्भुत स्वरुपवान थे एवं सदैव अदरक एवं गुड़ अपने साथ रखते थे एवं अरोगते थे.
इसी भाव से आज श्रीजी को विशिष्ट सामग्रियां भी अरोगायी जाती है.
श्री लाल-गिरधरजी ने आपका उपनयन संस्कार व्रज के जतीपुरा (गोपालपुरा) में किया.
वहां से लौटते हुए दान-घाटी के पास छुरे से श्री लाल-गिरधरजी महाराज को घायल कर दिया गया. श्री लाल-गिरधरजी महाराज कष्ट के साथ बड़ी मुश्किल से दान-घाटी से मुखारविंद तक आये और वहां नित्यलीला में पधारे.
श्रीजी की इच्छा व्रज छोड़ने की हुई तब आपने अपने तीनो काकाओं वल्लभजी, बालकृष्णजी, गोविन्दजी से विचार-विमर्श किया और गंगाबाई को साथ में रखकर विक्रम संवत १७२६ की आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को रथ में श्रीजी को पधराकर व्रज को छोड़ा.
श्रीजी की इच्छा एवं आज्ञानुसार यात्रा करते हुए विक्रम संवत १७२८ माघ कृष्ण 5 को सिहाड़ ग्राम पधारे एवं यहीं विराजे. फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को श्रीजी के पाटोत्सव के दिवस मंदिर सिद्ध होने से पूर्व प्रभु वर्तमान के खर्च भण्डार में विराजे एवं वर्तमान पाट पर चैत्र कृष्ण द्वितीया (द्वितीया पाट) को विराजित हुए. तब से अबतक श्रीजी सिहाड़ ग्राम में विराजित हैं जिसे हम श्रीनाथद्वारा के नाम से जानते हैं.
- श्री दामोदरजी ने प्रभु को विविध मनोरथों के द्वारा खूब लाड़ लड़ाए एवं विक्रम संवत १७६० में नित्यलीला में प्रवेश किया. आपके पश्चात आपके पुत्र श्री विट्ठलेशरायजी ने तिलकायत पद संभाला.
श्रीजी का सेवाक्रम-
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को पूजन कर हल्दी से मांडा जाता हैं साथ ही आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है और आरती दो समां में थाली में की जाती है.
- गद्दल, रजाई लाल बड़े बूटा के धराये जाते हैं.
- श्रीजी को नियम से लाल रंग की खीनखाब के बड़े बूंटे वाले चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर जड़ाव माणक की कुल्हे के ऊपर स्वर्ण जड़ाव का घेरा धराया जाता है.
- भोग सेवा में प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में ही केशरयुक्त संजाब (गेहूं के रवा) की खीर व श्रीखंड-वड़ा भी अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में आदा प्रकार अर्थात – अदरक की विविध सामग्रियां जैसे अदरक का शाक व अदरक के गुंजा व अदरक भात अरोगाये जाते हैं.
- श्रीजी को अदरक के गुंजा आज के अतिरिक्त केवल मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा (घर के छप्पनभोग) के दिन ही अरोगाये जाते हैं.
- उत्सव भोग के रूप में आज श्रीजी को संध्या-आरती में विशेष रूप से आदा (अदरक के रस से युक्त) के केसरी मनोर के लड्डू एवं आज अरोगाये जाने वाले ठोड़ के स्थान पर गुड़ की बूंदी के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं. ये दोनों सामग्रियां श्रीजी को वर्षभर में केवल आज के अतिरिक्त केवल मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा (घर के छप्पनभोग) के दिन ही अरोगायी जाती है.
श्रीजी दर्शन :-
- साज सज्जा में आज श्रीजी में कत्थई रंग की मखमल के ऊपर सुनहरी रेशम से भरे छोटे-छोटे कूंडों (पात्रों) व हंसों की सज्जा से सुसज्जित कलाबत्तू काम वाली पिछवाई सजाई जाती है. हांशिया के ऊपर भी कत्थई एवं श्याम रंग की सुन्दर सज्जा की हुई है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- जडाऊ स्वर्ण के एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्रों में आज श्रीजी को लाल रंग की खीनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मलमल का पटका धराये जाते हैं.
- टंकमा हीरा के मोजाजी एवं मेघश्याम रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण में आज प्रभु को वनमाला का चरणारविन्द तक का उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता हैं.
- सभी आभरण मिलवा धराये जाते है जो प्रधानतया हीरा, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के होते हैं.
- श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, स्वर्ण का जड़ाव का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- स्वरुप की बायीं ओर उत्सव की हीरा की चोटी धरायी जाती है.
- श्रीकंठ में नीचे पदक, ऊपर हार, माला आदि धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
- गुलाबी गुलाब की एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व पन्ना के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि जडाऊ धराये जाते है.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की दिखाई जाती है.
- खेल के साज में पट प्रतिनिधि का व गोटी सोने की बड़ी जाली की आती है.
- श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : भली हो किनी लाल गिरधर
राजभोग : सेवक की सुख रास सदा
आरती : राखी हो अलक बिच बिच
शयन : तेरी हों बल बल जाऊं छबीले
मान : रतन जतन क्र पायो अरी में
पोढवे : रुच रुच सेज बनाई
- कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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