व्रज – माघ कृष्ण एकादशी, शुक्रवार, 28 फरवरी 2022
विशेष – आज षट्तिला एकादशी है. आज श्रीजी में नियम से डोलोत्सव का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है. बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.
विक्रमाब्द १९७३-७४ में तत्कालीन परचारक श्री दामोदरलालजी ने प्रभु प्रीति के कारण अपने पिता और तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी से विनती कर इस श्रृंगार की आज्ञा ली और यह प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया था. तदुपरांत यह श्रृंगार प्रतिवर्ष धराया जाता है.
श्रीजी में बसंत-पंचमी के पूर्व श्रीजी में गुलाल वर्जित होती है अतः पिछवाई एवं वस्त्रों पर सफ़ेद और लाल रंग के वस्त्रों को काट कर ऐसा सुन्दर भरतकाम किया गया है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु ने गुलाल खेली हो.
श्रीजी को आज के दिन षट्तिला एकादशी के कारण विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में तिलवा (तिल) के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं,
श्रीजी दर्शन :
साज सज्जा में आज श्रीजी में पतंगी (गुलाल जैसे) रंग की, अबीर व चूवा के भाव से सफ़ेद एवं श्याम रंग की टिपकियों के भरतकाम से डोल उत्सव सी सुसज्जित पिछवाई सजाई जाती है. इसे देख के ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु ने गुलाल खेली हो.
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
जडाऊ स्वर्ण के एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
वस्त्र में आज प्रभु को पतंगी रंग का डोल उत्सव का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराया जाता है.
पटका मोठड़ा का धराया जाता है.
सभी वस्त्र सफ़ेद अबीर एवं श्याम चूवा की टिपकियों के भरतकाम से सुसज्जित होते हैं. मोजाजी लाल रंग के एवं ठाड़े वस्त्र श्वेत-श्याम रंग की टिपकियों वाले धराये जाते हैं.
श्रृंगार आभरण में आज प्रभु को वनमाला का चरणारविन्द तक भारी श्रृंगार धराया जाता है. कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण मिलवा मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल गुलाल जैसे रंग की, श्वेत-श्याम टिपकियों वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पन्ना का पट्टीदार कटिपेच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका पर रंगीन तिकड़ी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में माणक के लोलकबंदी अर्थात लड़वाले चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में सोने का डोरा, हमेल, चन्द्रहार अक्काजी का आदि धराये जाते हैं.
श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ लाल, श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में सोने के बंटदार वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि जडाऊ धराये जाते है.
आरसी दोनों समय बड़ी डांडी की दिखाई जाती है.
खेल के साज में पट चीड का, गोटी चांदी की और वस्त्र के छोगा आते हैं.
आज छड़ी नहीं धरायी जाती है.
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : आज उठ भोर नव कानन
राजभोग : आज बने नवरंग छबिले
आरती : यह छब मोपे जात न बरनी
शयन : आज सुहावनी रात
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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