व्रज – फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा
रविवार, 14 मार्च 2021
आज का श्रृंगार ऐच्छिक है.
ऐच्छिक श्रृंगार उन दिनों में धराया जाता है जिन दिनों के लिए श्रीजी की सेवा प्रणालिका
में कोई श्रृंगार निर्धारित नहीं होता है. इसकी प्रक्रिया के तहत प्रभु श्री गोवर्धनधरण की
प्रेरणा सर्वोपरि है जिसके तहत मौसम के अनुसार तत सुख की भावना से पूज्य तिलकायत
श्री की आज्ञा के अनुसार मुखियाजी के द्वारा श्रृंगार धराया जाता है.
श्रीजी दर्शन :
साज : आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके
ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर
सफ़ेद बिछावट की जाती है. एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई
जाती है. सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
वस्त्र : आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे
वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते
हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता
है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.
श्रृंगार : आज श्रीजी को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. कंठहार,
बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मीना के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरशिखा, दोहरा कतरा एवं बायीं और
शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबंदी-लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में अक्काजी की एक माला धरायी जाती है.श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा
माला के साथ श्वेत, लाल एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक
थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.
राजभोग खेल में प्रभु की कटि में गुलाल व की पोटली बांधी जाती है. आज प्रभु के कपोल
पर गुलाल अबीर लगाये जाते जाते है.
आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. फेटा बड़ा नहीं किया जाता
व लूम तुर्रा भी नहीं धराये जाते हैं.
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : परिवा प्रथम कुंवर अति बहरत
राजभोग : अष्टपदी, बरसाने की गोपी मांगन फगुवा
गोपी हो नन्दराय घर
आरती : परिवा प्रथम होरी खेलन निकसे
शयन : परिवा प्रथम कुंवर को देखन चली
पोढवे : चले हो भावते रस एन
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं
शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का
भोग आरोगाया जाता है.
श्रीजी के कपोल पर गुलाल अबीर से सुन्दर चित्रांकन किया जाता है.
राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर पोटली से गुलाल अबीर
उडाये जाते है.
सायंकालिन भोग दर्शनों के भोग में खेल के साज के भोग अरोगाये जाते है जिसमे सूखे
मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
……………………..
जय श्री कृष्ण
………………………
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD