व्रज – फाल्गुन शुक्ल दशमी, रविवार, 13 मार्च 2022
नवमी से द्वितीया पाट के दिन तक प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.इसी श्रृंखला में आज त्रयोदशी का श्रृंगार धराया जाता हैं.
विशेष – आज सभी समय झारीजी यमुनाजल से भरी जाती है और दो समय आरती थाली में होती है. इन दिनों प्रभु को आपके श्रृंगार धराये जा रहे हैं.
इसी श्रृंखला में आज श्रीजी को नियम के श्वेत जामदानी के चाकदार वागा व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सुनहरी जमाव का कतरा का श्रृंगार धराया जाता है. आभरण छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक धराये जाते हैं.
फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी.
इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दही की सेव (पाटिया) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. आज के अतिरिक्त दही की सेव (पाटिया) के लड्डू केवल डोलोत्सव, अक्षय नवमी व नागपंचमी के दिन अरोगाये जाते हैं.
राजभोग में इन दिनों भारी खेल होता है. पिछवाई पूरी गुलाल से भरी जाती है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है. प्रभु की कमर पर एक पोटली गुलाल की बांधी जाती है. ठोड़ी (चिबुक) पर तीन बिंदी बनायी जाती है.
श्रीजी दर्शन :
साज : आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से भारी खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
वस्त्र : आज श्रीजी को सफ़ेद जामदानी का छींट वाला सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं. अत्यधिक गुलाल खेल के कारण वस्त्र लाल प्रतीत होते हैं.
श्रृंगार : श्रीजी को आज मध्य का (छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण लाल मीना एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर स्याम खिड़की की सफ़ेद छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी नागफणी (जमाव) का कतरा व तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मीना के चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में एक अक्काजी की माला धरायी जाती है. श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना व स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी दोनो समय बड़ी डांडी की आती है.
संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराया जाता है.
यदि सर्दी कम हो और कोई मनोरथी हो तो श्री तिलकायतजी की आज्ञा लेकर शयन में पुष्पों के आभरण धराये जा सकते हैं.
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : समध्याने से ब्राह्मण आयो
राजभोग : डोल के पद
आरती : ढोटा दोऊ राय के खेलत डोलत
शयन : डोल झुलत है गिरधर नवल नन्द लाला
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर पोटली से गुलाल अबीर उडाये जाते है.
श्रम भोग में राजभोग के बाद अनोसर में खेल के साज के भोग अरोगाये जाते है जिसमे सूखे मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
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जय श्री कृष्ण
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