व्रज – चैत्र कृष्ण एकादशी, सोमवार, 28 मार्च 2022
आज का श्रृंगार ऐच्छिक है
- आज पापमोचनी एकादशी है। श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है
- श्रीजी के अलावा नाथद्वारा में अन्य सभी पुष्टि स्वरूपों जैसे श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री मदनमोहनजी, श्री वनमालीजी आदि को नित्य की सामग्री के अलावा राजभोग समय फलाहार का भोग लगाया जाता है
- एकादशी फलाहार में पुष्टि स्वरूपों को विशेष रूप से सिंघाड़े के आटे का सीरा (हलवा), सिंगाड़े के आटे की मीठी सेव, विविध प्रकार के शाक, सिंघाड़े के आटे की मोयन की पूड़ी, तले हुए कंद (रतालू, सूरण, अरबी), सिंघाड़े के आटे की राब, रायता आदि आरोगाये जाते हैं
श्रीजी दर्शन:
- साज: आज श्रीजी में विवाह खेल लीला की, विवाह मंडप के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. श्रीजी लग्न-मंडप में विराजित हैं, श्री स्वामिनी जी एवं श्री यमुना जी सेहरा के श्रृंगार में दोनों ओर खड़े हैं. गोपियाँ विवाह के मंगल गीत गाती हुई इस अद्भुत शोभा को निरख रहीं हैं
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है
- एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं
- वस्त्र: आज श्रीजी को केसरी ज़री का, रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मलमल का रुपहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं
- श्रृंगार:
- श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण फिरोजा के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर केसरी ज़री के दुमाला के ऊपर हीरा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में फिरोजा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- दायीं ओर सेहरे की मीना की चोटी धरायी जाती है
- श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ हीरा धराई जाती है
- पट केसरी व गोटी राग रंग की आती है
- आरसी उत्सववत वाली दिखाई जाती है
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के आभरण पटका सेहरा बड़े कर के छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं
- शयन दर्शन में दुमाला पर सिरपेच, टीका धराये जाते हैं, लूम तुर्रा नहीं आवे
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला : प्रात समय नव निकुंज द्वार
- राजभोग : बैठे कुञ्ज स्थली लालन
- आरती : हरि को बदन सरोज
- शयन : छबीले तरुण मद माते हो
- मान : आज सुहावनी रात लालन आए
- पोढवे: प्रेम के परियंक पोढ़े
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि- मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
……………………..
जय श्री कृष्ण
………………………
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
……………………….