व्रज – चैत्र शुक्ल त्रयोदशी, गुरूवार, 14 अप्रैल 2022
आज का श्रृंगार ऐच्छिक है
- ऐच्छिक श्रृंगार उन दिनों में धराया जाता है, जिन दिनों के लिए श्रीजी की सेवा प्रणालिका में कोई श्रृंगार निर्धारित नहीं होता है
- इसकी प्रक्रिया के तहत प्रभु श्री गोवर्धनधरण की प्रेरणा सर्वोपरि है
- जिसके तहत मौसम के अनुसार तत सुख की भावना से पूज्य तिलकायत श्री की आज्ञा के अनुसार मुखियाजी के द्वारा श्रृंगार धराया जाता है
श्रीजी दर्शन
- साज: श्रीजी में आज लाल पिली एकदानी चूंदड़ी की रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है
- एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं
- वस्त्र:
- आज प्रभु को लाल पिली एकदानी चूंदड़ी का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं
- सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं
- ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं
- श्रृंगार:
- आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण पन्ना के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है
- पट लाल व गोटी चाँदी की आती है
- आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला: आज बधाई मंगलचार
- राजभोग: गावो गावो मंगल चार
- आरती: श्री लक्ष्मण नंदन जय जय
- शयन: श्री लक्ष्मण वर ब्रह्मधाम
- मान: हरी बोलत चल गोकुल नारी
- पोढवे: पोढे हरी राधिका के संग
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि- मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
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जय श्री कृष्ण
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विशेष-आज मेष संक्रांति है जिसे पुष्टिमार्ग में सतुवा संक्रांति भी कहा जाता है
- भारतीय तिथियों का आकलन चंद्रमा की कलाओं के आधार पर किया जाता है और इसी कारण सभी उत्सव और त्यौहार भारतीय तिथियों के आधार पर मनाये जाते हैं परन्तु यह पर्व सूर्य के विभिन्न राशियों पर संक्रमण के आधार पर मनाया जाता है अतः सामान्यतया अंग्रेज़ी वर्ष की 13 या 14 अप्रेल को मनाया जाता है
- प्राचीन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रतिमाह सूर्य का निरयण राशी परिवर्तन संक्रांति कहलाता है, इसके अनुसार सूर्यदेव आज मेष राशी में प्रवेश करते हैं
- प्रतिमाह संक्रांति अलग-अलग वाहनों में, वस्त्र धारण कर, शस्त्र, भोज्य पदार्थ एवं अन्य पदार्थों के साथ आती है, यद्यपि सूर्य की 12 संक्रांतियां है परन्तु इनमें से चार (मेष, कर्क, तुला एवं मकर) संक्रांति महत्वपूर्ण है
- सामान्यतः केवल मकर-संक्रांति के विषय में जानते हैं क्योंकि इस दिन दान-पुण्य किया जाता है परन्तु पुष्टिमार्ग में भी दो (मेष एवं मकर) संक्रांति को मान्यता दी गयी है
- मकर-संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जायेगी एवं मेष-संक्रांति गुरूवार (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी) प्रातः 8.42 पर आरम्भ होने से 14 अप्रेल को मनायी जायेगी
- श्रीजी में आज से रथयात्रा के दिन तक मगद (बेसन) के लड्डू नहीं अरोगाये जाते और इसके स्थान पर सतुवा के (चना दाल और जौ से निर्मित) लड्डू अरोगाये जाते हैं
- सतुवा उष्णकाल में विशेष लाभकारी सामग्री है
- आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में कई स्थानों पर उष्णकाल के प्रमुख खाद्य के रूप में इसका वर्णन है
- छाछ के साथ इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी है
- श्रीजी को यह सामग्री आज से रथयात्रा तक अरोगायी जाती है
- अनसखड़ी में सतुवा लड्डू के रूप में व सखड़ी में सतुवा थोड़ा आंशिक तरल रूप में अरोगाया जाता है
- सामान्यतया पुण्यकाल के आधार पर मेष संक्रांति मनायी जाती है
- इस वर्ष मेष संक्रान्ति गुरूवार प्रातः 8.42 पर आरम्भ होने से पुण्यकाल आज सूर्योदय से मध्याह्न तक माना जायेगा
- इस लिए सूर्योदय 6.17 से दो घंटे तक अति मुख्य पुण्यकाल है अतः पुण्यकाल आज ही माना जायेगा
- श्रीजी मंदिर में गोपीवल्लभ या राजभोग के दर्शन में उत्सव भोग रखे जायेंगे
- अष्ट प्रहर की सेवा करने वाले समस्त वैष्णव भी इसी प्रकार अपने सेव्य ठाकुरजी को सतुवा का भोग रखें एवं तत्पश्चात दान आदि कर सकते हैं
- अन्य वैष्णव आज शाम को शयन समय या कल सुबह सतुवा श्री ठाकुरजी को अरोगा सकते हैं
- उत्सव भोग में श्रीजी को सतुवा के गोद के (सामान्य से बड़े) नग, श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी एवं श्री द्वारकाधीश प्रभु के घर से सिद्ध होकर आये सतुवा की सामग्री, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांड़ी, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा एवं बीज-चालनी का नमकीन सूखे मेवे का भोग अरोगाया जाता है
- कल से प्रतिदिन राजभोग की सखड़ी में प्रभु को सीरा के रूप में सिद्ध घोला हुआ सतुवा अरोगाया जायेगा