उदयपुर (दिव्य शंखनाद)। महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से आयोजित वार्षिक गाइड ओरिएंटेशन प्रोग्राम में महाराणा प्रताप विषयक संस्कृत साहित्य पर डीन कला एवं मानविकी संकाय संगम विश्वविद्यालय भीलवाड़ा के डॉ. रजनीश शर्मा ने संस्कृत श्लोक से माँ सरस्वती की वन्दना करते हुए व्याख्यान का शुभारम्भ किया।
शर्मा ने महाराणा प्रताप के जीवन मूल्यों के प्रति गहन जन आस्था और उनके मातृभूमि के प्रति समर्पण की विविध जानकारियों से रू-ब-रू करवाया। जिसमें 40 से अधिक गाइड्स ने भाग लिया। उन्होंने बताया कि राष्ट्ररत्न महाराणा प्रताप ही ऐसे लोक नायक थे जिन पर हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी के साथ ही भारतभर की लगभग सभी प्रान्तीय भाषाओं में भी लिखा गया है। यानि विश्व में कोई ऐसा देश नहीं जो मेवाड़ के इस सपूत की स्वतंत्रता प्रेम से अवगत न हो। संस्कृत विषय पर व्याख्यान देते आपने ‘‘श्रीमत्प्रतापराणायनम् महाकाव्य’’ के रचियता आन्ध्रप्रदेशीय पं. ओगेटी परीक्षित शर्मा ने देश-प्रेमरस को अपने महाकाव्य में रामायण की शैली में 80 सर्ग और 4233 श्लोकों के साथ प्रस्तुत किया।
डॉ. शर्मा ने अन्त में बताया कि ‘‘स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मस्तु भयावह’’ महाराणा के इस मूल मंत्र ने सारस्वत पुत्रों के सर्जन धर्म को नव प्राण, अन्तश्चेतना की अविरल धारा, नव-शक्ति के नवीन उन्मेष को नव-ताल, लय और गति प्रदान की फलतः शाश्वत जीवन मूल्यों के प्रति गहरी आस्था, सम्पूर्ण समर्पण की भावना, संकल्प-शक्ति उसके प्रति भक्ति और देशप्रेमरस सम्पुटित गद्य-पद्य-नाट्यमय विशिष्ट काव्य कपों का प्रत्यक्षीकरण हुआ जो ‘प्रताप चरित’ की सुवास को दिग-दिगन्त में प्रसृत कर रहे हैं।व्याख्यान के अंत में महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने डॉ. शर्मा का धन्यवाद करते हुए फाउण्डेशन की ओर से उपहार स्वरुप मेवाड़ की पुस्तकें आदि भेंट की।