व्रज : ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा, मंगलवार, 17 मई 2022
आज का श्रृंगार नियम का है, और विशेषताएं
विक्रमाब्द 1878 में ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज ने चार स्वरुप – श्रीमथुरेशजी (कोटा), श्रीविट्ठलनाथजी (नाथद्वारा), श्रीगोकुलनाथजी (गोकुल) एवं श्री नवनीतप्रियाजी को पधराकर दोहरा मनोरथ किया था अतः आज ( द्वितीया क्षय होने से) का दिन श्रीजी में चार स्वरुप के उत्सव के दिन के रूप में मनाया जाता है
सेवाक्रम
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं
- दो समय आरती थाली में की जाती है. सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है.
- श्रीजी को नियम के केसरी साज व केसरी रंग का पिछोड़ा धराया जाता है
- आज के श्रृंगार में विशेष यह है कि प्रभु को श्रीमस्तक पर केसरी श्याम झाईं वाले फेंटा के साथ श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं, सामान्यतया फेंटा के संग कर्णफूल धराये जाते हैं
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची युक्त जलेबी) के लड्डू व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है
श्रीनाथजी दर्शन:
- साज:
- श्रीजी में आज केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम वाली एवं रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई सजाई जाती है
- गादी, तकिया, चरणचौकी, दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है, इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है
- दो पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में आज पट उष्णकाल का और गोटी बाघ बकरी की पधरायी जाती है
- वस्त्र:
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को केसरी रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है
- पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है
- श्रृंगार:
- आज श्रीजी को मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा-मोती के धराये जाते हैं
- मोती की बद्दी के नीचे चंदन की मालाजी धरायी जाती है
- श्रीमस्तक पर केसरी श्याम झाईं वाले फेंटा का साज – फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चंद्रिका, मोरपंख का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैंले फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख के दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं, कली आदि सब माला धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं कटि पर दो एक मोती व एक सुवा वाला वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है
- आरसी श्रृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी वाली दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला: नमो देवी यमुना
- राजभोग: बधाई-श्री विट्ठलेश चरण चारु
- आरती: ऐ कटी पीट पिछारी बांधे
- शयन: चारु नट भैरव घर बैठे गोविन्द
- मान: आज निकी बनी राधिका नागरी
- पोढवे: झीनो पट दे ओट पोढ़े
- कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है, जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
- भोग दर्शन में प्रभु सुखार्थ श्रीजी के सम्मुख शीतल जल के चांदी के फव्वारे चलाये जायेंगे एवं राजभोग उपरान्त हर घन्टे भीतर व संध्या आरती दर्शन उपरान्त डोल-तिबारी में भी शीतल जल का छिड़काव किया जाता है
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जय श्री कृष्ण
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