व्रज – ज्येष्ठ शुक्ल छठ (प्रथम), रविवार, 05 जून 2022
आज की विशेषता : संध्या आरती पश्चात बरास व गुलाब जल से स्नान व सकड़ी में विशेष सामग्री अरोगे
हम सभी जानते ही है कि अष्टछाप के प्रमुख कवि सूरदासजी नेत्रहीन (दृष्टि से दिव्यांग) थे परन्तु प्रतिदिन मन की दिव्य दृष्टि से प्रभु के दर्शन कर अपने कीर्तनों में प्रभु के श्रृंगार का वर्णन करते थे और इसे प्रभु की कृपा कहते थे. एक बार श्री गुसांईजी गोपालपुर पधारे अतः सूरदासजी ने भी गोपालपुर जाने का विचार किया. तब श्री गिरधरजी आदि बालकों ने उन्हें दो दिन और रुककर श्री नवनीतप्रियाजी को कीर्तन सुनाने को कहा अतः सूरदासजी गोकुल में ही रुक गये.
श्री गिरधरजी से तीनों बालकों (श्री गोविन्दरायजी, श्री बालकृष्णजी और श्री गोकुलनाथजी) ने संशयवश कहा कि हम श्री नवनीतप्रियाजी को जो श्रृंगार धराते हैं, सूरदास जी वैसे ही वस्त्र आभूषणों का वर्णन करते हैं. आज कुछ ऐसा अद्भुत अनोखा श्रृंगार करें कि सूरदासजी पहचान ही नहीं पायें. तब श्री गिरधरजी ने कहा –“सूरदासजी भगवदीय है और इनके हृदय में स्वरूपानंद का अनुभव है. तुम जो भी श्रृंगार करोगे वो उसी भाव का वर्णन अपने पदों में करेंगे अतः भगवदीय की परीक्षा नहीं करनी चाहिए.”
तब तीनों बालकों ने कहा –“फिर भी हमारा मन है अतः हम अपना संशय दूर करने के लिए कल ठाकुरजी को अद्भुत श्रृंगार धरायेंगे.”
अगले दिन प्रातः तीनों बालक श्री नवनीतप्रियाजी के मंदिर में पधारे और सेवा में नहाये, श्री ठाकुरजी को जगाकर भोग धरे. मंगलभोग सरे उपरांत ठाकुरजी को नहला कर श्रृंगार धराने लगे.
ऊष्णकाल के दिन थे और कुछ अलग भी करना था अतः ठाकुरजी को वस्त्र ही नहीं धराये.
केवल मोती की दो लड़ श्रीमस्तक पर, मोती के बाजूबंद, कटि किंकिणी नुपूर, हार आदि सभी मोती के, तिलक, नकवेसर, कर्णफूल ही धराये.
सूरदासजी जगमोहन में बैठे थे और उनके हृदय में यह अनुभव हुआ तब उन्होंने विचार किया कि आज तो श्री नवनीतप्रियाजी ने अद्भुत श्रृंगार धराया है जो कि कभी नहीं सुना, नहीं देखा.
केवल मोती ही धराये हैं और वस्त्र तो है ही नहीं. मुझे भी इस अद्भुत श्रृंगार के लिए कुछ अद्भुत कीर्तन गाना चाहिए. जब श्रृंगार दर्शन खुले और सूरदासजी को कीर्तन हेतु बुलाया गया तो उन्होंने राग-बिलावल में यह सुन्दर कीर्तन गाया.
देखे री हरि नंगमनंगा l
जलसुत भूषन अंग विराजत बसन हीन छबि उठि तरंगा ll 1 ll
अंग अंग प्रति अमित माधुरी निरखि लज्जित रति कोटि अनंगा l
किलकत दधिसुत मुख लेपन करि ‘सूर’ हसत ब्रज युवतिन संगा ll 2 ll
यह सुनकर श्री गिरधरजी सहित वहां उपस्थित सभी बालक अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले –“सूरदासजी, आज आपने ऐसा कीर्तन क्यों गाया ?”
तब सूरदासजी ने विनम्रता से कहा –“जैसा अद्भुत श्रृंगार आपने किया है वैसा ही अद्भुत कीर्तन मैंने रचित कर गाया है.” सभी बालक सूरदासजी पर बहुत प्रसन्न हुए और कुछ दिन पश्चात श्री गिरधरजी सूरदास जी को लेकर गोपालपुर पधारे और श्री गुसांईजी को उस अद्भुत घटना का सविस्तार विवरण दिया.
तब श्री गुसांईजी ने श्री गिरधरजी से कहा –“सूरदासजी पर संशय नहीं करना चाहिए था.
ये तो पुष्टिमार्ग के जहाज हैं अतः इन्हें भगवदलीला का अनुभव आठों पहर होता रहता है और इसीलिए सूरदासजी श्री महाप्रभुजी के अत्यंत कृपापात्र भगवदीय थे.”
इसी प्रसंग के अनुसंधान में आज श्रीजी को बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद धराया जाता है, श्रीमस्तक पर बसरा के मोतियों की पाग धरायी जाती है और कोई वस्त्र नहीं धराये जाते यहाँ तक कि आज प्रभु को आड़बंद के भीतर तनिया भी नेट का धराया जाता हैं.
श्रीनाथजी दर्शन:
- साज:
- आज श्रीजी में श्वेत रंग की जाली की पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया, चरणचौकी, दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है
- दो पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में में पट उष्णकाल का गोटी हकीक की पधरायी जाती है
- वस्त्र:
- वस्त्र सेवा में आज बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद प्रभु को धराया जाता है. आड़बंद के भीतर तनिया भी नेट का धराया जाता हैं
- श्रृंगार:
- आज श्रीजी को छोटा हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मोती के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर बसरा के मोतियों की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोती का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है
- आरसी नित्यवत चांदी वाली वाली दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला: श्री यमुने सुख कारनी प्राण पति
- श्रृंगार : देख्यो री हरी नंगम नंगा
- राजभोग: सुन री आली दुपहरी की बिरिया
- आरती: अरे कौन टेव तेरी रे कन्हैया
- शयन: सुन्दर यमुना तीर री
- मान: उठ चल बेग राधिका प्यारी
- पोढवे: कुञ्ज में पोढ़े रसिक पिय प्यारी
- कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है, जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
- भोग दर्शन में प्रभु सुखार्थ श्रीजी के सम्मुख शीतल जल के चांदी के फव्वारे चलाये जायेंगे एवं राजभोग उपरान्त हर घन्टे भीतर व संध्या आरती दर्शन उपरान्त डोल-तिबारी में भी शीतल जल का छिड़काव किया जाता है।
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जय श्री कृष्ण
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