नाथद्वारा (दिव्य शंखनाद)। पुष्टिमार्गीय प्रधान पीठ श्रीजी प्रभु की हवेली में जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के अवसर पर होने वाले श्रीजी प्रभु के ज्येष्ठा भिषेक स्नान के लिए सोमवार जेष्ठ शुक्ल चतुर्दशी के अवसर पर गो. चि.105 श्री विशाल बावा साहब ने श्रीजी प्रभु की हवेली में स्थित भीतर की बावड़ी से श्रृंगार के दर्शन के पश्चात स्वर्ण घट भरकर प्रभु के स्नान के लिए श्रीजी प्रभु एवं लालन प्रभु के सेवकों के साथ जल भरकर सुगंधित पदार्थों से जिनमें प्रमुख रूप से चंदन, केशर, बरास, गुलाब जल, सुगंधित पुष्पों से शयन पश्चात विशेष स्नान के जल का अधिवासन किया।
इस अवसर पर श्रीजी प्रभु एवं लालन प्रभु के प्रमुख सेवकों में श्रीजी प्रभु के बड़े मुखिया इंद्रवदन गिरनारा, श्री प्रदीप सांचीहर, श्री मुकेश सांचीहर, विभु साँचीहर, लालन प्रभु के बड़े मुखिया श्री भगवानदास सांचीहर, श्री रजनीकांत सांचीहर, केशव साँचीहर, पराग, राजेश आदि सेवकों ने स्नान के जल भरने की सेवा की।ज्येष्ठाभिषेक स्नान के विशेष महत्व के बारे में अपने संबोधन में श्री विशाल बावा ने कहा कि इस उत्सव के पीछे वेदोक्त भाव यह है कि जब नंदबाबा वृद्ध हो गए तो उन्होंने विचार किया कि मैं अपने पुत्र श्री कृष्ण चंद्र प्रभु का राज्याभिषेक कर दूं तब उन्होंने श्री गर्गाचार्य जी को बुलाकर राज्याभिषेक का मुहूर्त निकलवाया और जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के अवसर पर राज्याभिषेक के लिए पवित्र जल का सुगंध एवं केसर से अधिवासन कर प्रभु का ज्येष्ठाभिषेक स्नान शंख द्वारा पुरुष सूक्त का सस्वर मंत्रोच्चार के साथ किया जाता है।
यह वेदोक्त भाव हे, तथा पुष्टीमार्ग में निकुंज भाव में श्री चंद्रावली जी और श्री यमुना जी की विनती से स्वामीनी जी एवं प्रभु ने युगल स्वरूप में श्री यमुना जी में स्नान किया यह स्नान यात्रा का भाव है और इसी उत्सव की फल सेवा में प्रभु को सवा लक्ष आम का भोग प्रभु को धराया जाता है।