व्रज – श्रावण कृष्ण दशमी, शनिवार, 23 जुलाई 2022
आज की विशेषता:: नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज का प्राकट्योत्सव (हांडी उत्सव) है
- आपका जन्म वि.सं.1763 में नाथद्वारा में हुआ था, आप एक विद्वान साहित्यकार एवं भावनाशील कलाकार थे. आप विविध कीर्तनों की रचना से एवं अनेक मनोरथों द्वारा श्रीगोवर्धनधारी प्रभु को रिझाते थे
- आपने ही प्रथम हांड़ी-उत्सव रौशनी में नंदालय की भावना से किया था और श्री ठाकुरजी को रत्नजड़ित मणि-माणक के हिंडोलने में झुलाया था
- आपश्री ने ही प्रथम बार नाथद्वारा में अन्नकूट मनोरथ पर सात स्वरूपों को पधराया था जिसमें श्री मथुराधीशजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री द्वारिकाधीशजी, श्री गोकुलनाथजी, श्री गोकुलचन्द्रमाजी, श्री बालकृष्णजी, श्री मदनमोहनजी आदि स्वरूप पधारे थे
- नाथद्वारा में दो माह तक विविध मनोरथ हुए थे. विक्रम संवत 1796 के मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी के दिन दिव्य सप्तस्वरूपोत्सव किया और छप्पनभोग धराया
सेवाक्रम:
- आज उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं
- सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है. दिन में दो समय की आरती थाली में की जाती है. गेंद, चौगान, दीवला सोने के आते हैं
- आज श्रीजी में नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है, मंगला में कसुमल फूल वाला उपरना धराया जाता है
- आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है
- भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज गौचारण लीला के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई सजाई जाती है जिसमें श्री ठाकुरजी ग्वाल-बाल सहित गौचारण कर पधारे हैं और गोपीजन उनका स्वागत हाथों में आरती लिये कर रही हैं
- उत्थापन पीछे भोग आरती में रूपहली कटोरी वाली लाल मख़मल की पिछवाई धरायी जाती हैं
- गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है
- खेल के साज पधराये जाते है
- गादी, तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है, स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल लगी हुई होती है
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, एक अन्य चांदी के पडघाजी पर माटी के कुंजा में शीतल सुगंधित जल भरा होता है
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में आज पट लाल और गोटी स्वर्ण की जाली वाली पधरायी जाती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल (कसुमल) रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं गाती का पटका धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र वस्त्र श्वेत जामदानी (डोरिया) के धराये जाते हैं
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण उत्सव के मिलवा- हीरे की प्रधानता के धराये जाते हैं
- कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं
- श्रीकंठ में नीचे पदक ऊपर हार, माला धराये जाते हैं. आज दो पाटन वाले हार भी धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर लाल चांदी के काम का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. मुकुट पर माणक का सिरपैंच धराया जाता है
- श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के कमल के पुष्पों की कलात्मक थागवाली मालाजी धरायी जाती है
- आज पुष्प की माला सभी समय एक-एक ही आती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत:
- मंगला: आयी जू श्याम जलद घटा
- राजभोग: श्री वृन्दावन भुव कुंजादिक
- हिंडोरा: आज लाल झुलत रंग भरे, राधे झुलत रमकि झमकि,
- सो तू राख ले री, सरस हिंडोलना झूले
- शयन: झूलो तो सूरत हिंडोरे झुलाऊं
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- हांड़ी उत्सव के समय उत्सव भोग में श्रीजी को चन्द्रकला, बूरा-बुरक्या (खस्ता पूड़ी के ऊपर बूरा बुरका हुआ), मूंगदाल के गुंजा, उड़ददाल की कचौरी, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी (रबड़ी), जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, पतली पूड़ी, चांवल की खीर, घी में तला हुआ चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल और शीतल आदि अरोगाये जाते हैं
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- संध्या-आरती में प्रभु श्री मदनमोहनजी को कलकत्ती काम के लाख, व कांच से निर्मित मणि-माणक के हिंडोलने में झुलाया जाता है. श्री मदनमोहनजी के सभी वस्त्र एवं श्रृंगार श्रीजी को धराये आज के श्रृंगार जैसे ही होते हैं. श्री बालकृष्णलाल जी उनकी गोदी में विराजित होकर झूलते हैं
- तुलसी समर्पित की जाती है. धूप, दीप, शंखोदक किये जाते हैं.
- डोलतिबारी की छत पर कांच की विविध रंगों की हांडियां बाँधी जाती है और उत्सव भोग सरे उपरांत दीपावली जैसे ही डोलतिबारी में रंग-बिरंगी कांच की हांडियों में रौशनी की जाती है
- इस रौशनी की चमक में प्रिया-प्रीतम की रूपमाधुरी छटा अलौकिक होती है. हिंडोलने के पीछे बड़े दर्पण खड़े किये जाते हैं, हांडियों की रौशनी के कारण प्रभु की छटा अलौकिक बन पड़ती है
- रौशनी की छटा वृद्धि हेतु संध्या-आरती में हिंडोलने के दर्शन थोड़े देरी से हल्का अँधेरा होने के पश्चात खुलते हैं
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
……………………..
जय श्री कृष्ण
………………………
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
……………………….