व्रज – वैशाख कृष्ण पंचमी
शनिवार, 01 मई 2021
विशेष : आज से श्रीमद्वल्लभाचार्यजी के जन्मोत्सव की नौबत की बधाई बैठती है एवं उत्सव का
प्रतिनिधि का पहला प्रतिनिधि श्रृंगार धराया जाता है.
मैं पहले भी बता चुका हूँ कि सभी बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का प्रतिनिधि का श्रृंगार
धराया जाता है.
जन्माष्टमी के उत्सव के चार श्रृंगार धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी एवं श्री गुसांईजी के
उत्सव के तीन श्रृंगार (एक प्रतिनिधि का, दूसरा उत्सव के दिन एवं तीसरा उत्सव के अगले दिन
का परचारगी श्रृंगार) ही धराये जाते हैं.
इसका कारण यह है कि जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपतियों (स्वामिनी जी) के भाव से
धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी स्वयं स्वामिनीजी के एवं श्री गुसांईजी स्वयं चन्द्रावलीजी के
स्वरुप हैं अतः आप स्वयं श्रृंगारकर्ता हों और स्वयं की ओर का श्रृंगार कैसे करें इस भाव से इन
दोनों उत्सवों का एक-एक श्रृंगार कम हो जाता है.
सेवाक्रम : आज दो समय आरती थाली में की जाती है. राजभोग में पीठका पर पुष्पों का चौखटा आता हैं. आज ही के दिन श्री महाप्रभुजी के उत्सव, आगामी नृसिंह जयंती व वामन द्वादशी के दिन धराये जाने वाले वस्त्र केसर से रंगे जाते हैं.
आज राजभोग आरती पश्चात श्रीजी के मुखियाजी, निज सेवक व दर्जीखाना के प्रभु सेवकों के
सानिध्य में श्रीठाकुरजी के वस्त्र रंगे जायेंगे.
पंचमी के दिन वस्त्र रंगने का भाव ये हे कि इसमें श्री गोवर्धनधरण प्रभु से विनती का भाव है
कि जिस प्रकार यह श्वेत वस्त्र आज केसर के रंग में रंग गए हैं, आज पंचमी के दिन मेरी पाँचों
ज्ञानेन्द्रियाँ भी प्रभु रंग में रंग जाएँ.
श्रीजी दर्शन :
साज : आज श्रीजी में केसरी मलमल की, उत्सव के कमल के काम वाली एवं रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. जडाऊ स्वर्ण के एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
वस्त्र : आज श्रीजी को केसरी मलमल का सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते
हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत मलमल के धराये जाते हैं.
श्रृंगार : आज प्रभु को उत्सववत वनमाला का (चरणारविन्द तक) दो जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया
जाता है. कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण एक हीरा का एवं एक हीरा तथा माणक के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर तीन जोड़ी श्रृंगार धराए जाते हैं कुल्हे पर सिरपैंच, पांच मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की मीना की चोटी (शिखा) भी
धरायी जाती है. श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं. चैत्री गुलाबों एवं अन्य पुष्पों से निर्मित वन-चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी,
हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते है. प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं. आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : प्रेंख पर्यंक शयनम
राजभोग : तत्व गुण बान भुव माधव
आरती : श्री वल्लभ मधुराकृत मेरे
शयन : यह धन धर्म ही ते पायो
मान : छांड दे माननी श्याम संग रुठवो
पोढवे : राय गिरधरन संग राधिका रानी
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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