व्रज – वैशाख कृष्ण सप्तमी
सोमवार, 03 मई 2021
श्री विट्ठलनाथ जी (नाथद्वारा) का पाटोत्सव
आज द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथ जी (नाथद्वारा) का पाटोत्सव है. आप सभी वैष्णवों को ख़ूबख़ूब बधाई.
आज का श्रृंगार ऐच्छिक है.
ऐच्छिक श्रृंगार उन दिनों में धराया जाता है जिन दिनों के लिए श्रीजी की सेवा प्रणालिका में कोई श्रृंगार निर्धारित नहीं होता है. इसकी प्रक्रिया के तहत प्रभु श्री गोवर्धनधरण की प्रेरणा सर्वोपरि है जिसके तहत मौसम के अनुसार तत सुख की भावना से पूज्य तिलकायत श्री की आज्ञा के अनुसार मुखियाजी के द्वारा श्रृंगार धराया जाता है.
श्रीजी दर्शन :
साज : आज श्रीजी में गुलाबी मलमल की रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. जडाऊ स्वर्ण के एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
वस्त्र : श्रीजी को आज गुलाबी मलमल के खुले बंध के चाकदार वागा चोली, सूथन धराये जाते
हैं. ठाड़े वस्त्र फ़िरोज़ी रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
श्रृंगार : आज प्रभु को छेड़ान का (हल्का) श्रृंगार धराया जाता है. कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण फ़ीरोज़ा के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर फेंटा का साज धराया जाता है. गुलाबी रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, बीच की
चंद्रिका, दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती की
लोलकबंदी-लड़वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
कमल माला धरायी जाती हैं.
श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ गुलाब के पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
पट गुलाबी एवं गोटी मीना की धरायी जाती हैं. आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : झूलो पालने गोविन्द
राजभोग : कृष्ण मुख अनल
आयुस आँगन बोले भाई
आरती : पुष्टि महारस देन प्रकटे
शयन : गोकुल राज के गाम आनंद
मान : जपत प्यारो तेरे गुनन की माला
पोढवे : चांपत चरण मोहन लाल
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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द्वितीय गृह निधि स्वरूप प्रभु श्री विठ्ठलनाथजी के पाटोत्सव की अनेकानेक बधाईयाँ
नमामि विठ्ठलेश्वरं सदात्युदार मानसं,
स्वभक्त रक्षणंक्षमं व्रजेश भक्तिभावदं.
श्री विट्ठलनाथजी (नाथद्वारा) का पाटोत्सव
स्तुति
सर्वात्माना प्रपन्नानां गोपीनां पोषयन् मनः l
तं वंदे विट्ठलाधीशं गौरश्यामं प्रियान्वितम् ll
भावार्थ –
पूर्ण भावपूर्वक शरण में आये गोपीजनों के मन का पोषण करने वाले श्रीस्वामिनीजी सहित विराजित गौरश्याम स्वरुप श्री विट्ठलनाथजी प्रभु, मैं आपका वंदन करता हूँ.
इतिहास – चरणाट में महाप्रभु जी के यहाँ जिस दिन उनके द्वितीय पुत्र श्री गुसांईजी का प्राकट्य हुआ उसी दिन एक ब्राह्मण आये जिन्होंने श्री महाप्रभुजी को प्रभु श्री विट्ठलनाथजी का यह स्वरुप दिया.
श्री महाप्रभुजी ने प्रसन्न हो कहा – “आज प्रभु एवं पुत्र दोनों पधारे हैं इस कारण इसका नाम हम श्री विट्ठलनाथ रखेंगे. विट्ठल का अर्थ अज्ञानियों को ज्ञानरुपी प्रकाश बताने वाला होता है अतः यह बालक पुष्टिमार्ग का पूर्ण विकास करेगा.”
प्रभु के इस स्वरुप की सेवा श्री महाप्रभुजी के साथ श्री गुसांईजी करते थे एवं कालांतर में श्री गुसांईजी ने यह स्वरुप अपने द्वितीय पुत्र श्री गोविंदरायजी को सेवा हेतु प्रदान किया.
श्री गोविंदरायजी ने प्रभु के स्वरुप को गोकुल के यशोदाघाट स्थित मंदिर में पधराकर वर्षों सेवा की. आपके पुत्र श्री कल्याणरायजी एवं उनके पुत्र श्री हरिरायजी ने भी यहीं प्रभु की खूब सेवा की. यह स्थान आज श्री हरिरायजी की बैठक के रूप में जाना जाता है.
श्री हरिरायजी भविष्यदृष्टा थे और उन्हें आभास हो गया कि श्रीजी भविष्य में व्रज छोड़कर मेवाड़ पधारेंगे अतः आप पहले ही प्रभु के स्वरुप सहित मेवाड़ पधारे एवं नाथद्वारा के निकट खमनोर गाँव में विराजित हो सेवा करने लगे. जब श्रीजी मेवाड़ पधारे तब अपने श्रीजी मंदिर के निकट ही श्री विट्ठलनाथजी का भव्य मंदिर बनवाकर आज के दिन प्रभु को वहां पधराया. तब से अब तक प्रभु श्री विट्ठलनाथजी अपने स्वामिनीजी सहित वहीँ विराजित हो भक्तों पर आनंद की वर्षा कर रहे हैं.
वर्तमान में द्वितीय पीठ आचार्य गोस्वामी श्री कल्याणरायजी अपने पुत्रों श्री हरिरायजी एवं श्री वागीशजी और परिवार सहित प्रभु की सेवा का लाभ ले रहे हैं.
स्वरुप भावना –
श्री ठाकुरजी का स्वरुप श्याम है परन्तु श्री स्वामिनीजी का स्वरुप गौरवर्ण है. श्री स्वामिनीजी के प्रेमविवश हो प्रभु भी आधे गौरवर्ण बन गए अतः श्री मस्तक से कमर तक श्याम एवं कमर से चरणारविन्द तक गौरवर्ण हैं.
दोनों श्रीहस्त कमर पर टिके हैं, बायें श्रीहस्त में शंख एवं दायें श्रीहस्त में कमल है.
श्रीमस्तक किरीट मुकुट से सुसज्जित है. दोनों चरण सीधे हैं, एक चरण में नुपुर आभूषण है जबकि अन्य चरण में आभूषण नहीं. साथ में श्री यमुनाजी विराजित हैं जो कि ठाकुरजी के चौथे स्वामिनीजी हैं.
उनके दोनों श्रीहस्त में कमल हैं.
देख्यो अद्भुत रूप सखीरी सुर सुता के साथ l
बिबस भये देखि हरि, सुन्दर कटि पर रहि गए दोऊ हाथ ll 1 ll
तातें गौर चित्र श्यामल तन, उपमा कहै तन आवे गाथ l
‘द्वारकेश’ प्रभु यह बिधि देखि, कर लियो जनम सनाथ ll 2 ll
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