व्रज – श्रावण शुक्ल त्रयोदशी, बुधवार, 10 अगस्त 2022
आज की विशेषता: किंकोडा तेरस, चतुरा नागा के श्रृंगार
- आज चतुरानागा पर श्रीजी कृपा का दिवस है जिसे किंकोड़ा तेरस भी कहते है. आज का दिवस केवल पुष्टी जीवों के लिए ही नहीं सर्वकालीन सत्ताओं के लिए भी मार्गदर्शक दिवस है. पुष्टिमार्गीय साहित्य के अनुसार आज के दिन व्रज में विराजित श्रीजी ने यवनों के उपद्रव का बहाना कर पाड़े अर्थात भैंसे के ऊपर बैठकर रामदासजी, कुम्भनदासजी, सदु पांडे व माणिकचंद पांडे को साथ लेकर चतुरा नागा नाम के अपने भक्त को दर्शन देने कृपा एवं उक्त पाड़े (भैंसे) का उद्धार करने टॉड का घना नाम के घने वन में पधारे थे
- यह उल्लेखनीय है कि आज भी राजस्थान में भरतपुर के समीप टॉड का घना नामक स्थान पर श्रीजी की चरणचौकी एवं बैठकजी है जो कि अब अत्यंत रमणीय स्थान है
- इस लीला का संकेत यह है कि चतुरा नागा जो कि हमारी व्यवस्था के कारण सर्वकालीन अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति है जो श्रीजी के दर्शन को लालायित थे परन्तु वे श्री गिरिराजजी पर पैर नहीं रखते थे जिससे श्रीजी के दर्शन से विरक्त थे
- भक्तवत्सल प्रभु अत्यन्त दयालु हैं अखिल ब्रह्मांड की व्यवस्था की शीर्ष शक्ति हैं फिर भी वे स्वयं अपने भक्त को दर्शन देने पधारते है. अर्थात सत्ता को प्रथम वैष्णव जिन्हें कल ही पवित्रा द्वादशी पर ब्रह्मसम्बन्ध की कृपा प्राप्त हुई गुरु श्री वल्लभ के माध्यम से. लेकिन चतुरा नागा साधनहीन है वंचित है उन पर कृपा करने के लिए प्रभु स्वयं पधार कर अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक सत्ता को पहुँचने की आज्ञा कर रहे है. जिससे वंचित की अपार प्रसन्नता का कोई छोर नहीं रहता. आगे की लीला में भी सन्देश है.
- वर्षा ऋतु थी सो चतुरा नागा तुरंत वन से किंकोडा के फल तोड़ लाये और उसका शाक सिद्ध किया. रामदासजी साथ में सीरा (गेहूं के आटे का हलवा) सिद्ध कर के लाये थे सो श्रीजी को सीरा एवं किंकोडा का शाक भोग अरोगाया. अर्थात प्रभु अपने भक्तो में भेद नहीं करते. उनके लिए भक्त की भक्ति ही मायने रखती है
- उपरोक्त प्रसंग की भावना से ही आज के दिन श्रीजी को गोपीवल्लभ अर्थात ग्वाल भोग में किंकोडा का शाक एवं सीरा जिसे हम सामान्य भाषा में गेहूं के आटे का हलवा कहते है भी अरोगाया जाता है
- अद्भुत बात यह है कि आज भी प्रभु को उसी लकड़ी की चौकी पर यह भोग रखे जाते हैं जिस पर सैंकड़ों वर्ष पूर्व चतुरा नागा ने प्रभु को अपनी भाव भावित सामग्री अरोगायी थी
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज वर्षाऋतु में बादलों की घटा एवं बिजली की चमक के मध्य यमुनाजी के किनारे कुंज में एक ओर श्री ठाकुरजी एवं दूसरी ओर स्वामिनीजी को व्रजभक्त झूला झुला रहे हैं. प्रभु की पीठिका के आसपास सोने के हिंडोलने का सुन्दर भावात्मक चित्रांकन किया है जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु स्वर्ण हिंडोलना में झूल रहे हों, ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है
- गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी हरी मखमल वाली होती है.
- चांदी के पडघा के ऊपर माटी के कुंजे में शीतल सुगन्धित जल भरा होता है
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में पट लाल एवं गोटी मीना की धराई जाती हैं
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल एवं केसरी रंग की चौफूली चूंदड़ी की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं पटका धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र सफेद डोरीया के धराये जाते है
- श्रृंगार
- प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची आदि मोती के धराये जाते हैं
- श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं
- श्रीमस्तक पर सिलमा सितारा का मुकुट व टोपी एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है
- श्रीकर्ण में मोती के कुंडल धराये जाते हैं
- चोटीजी नहीं आती हैं.
- पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थाग वाली दो सुन्दर मालाजी एवं कमल के फूल की मालाजी धरायी जाती है
- रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत:
- मंगला: यह नित नेम यशोदा जू
- राजभोग: महा मंगल मेहराने आज
- हिंडोरा:
- झुलत गिरधर लाल, सांवरे संग गोरी झुलत
- आज लाल झुलत रंग भरे, मोर मुकुट की लटकन मटकन
- शयन: आज तो बधाई बाजे मंदिर
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी डोल तिवारी में चांदी के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं.
- श्री नवनीतप्रियाजी भी चांदी के ही हिंडोलने में विराजित होकर झूलते है.
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जय श्री कृष्ण
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