व्रज – भाद्रपद कृष्ण तीज, रविवार, 14 अगस्त 2022
विशेष: आज हिंडोलना विजय
- श्रीजी की सेवा प्रणालिका में हिंडोलना विजय शुभमुहूर्त के अनुसार किया जाता है. जो कि पूर्वा अथवा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में किया जाता है. श्रीजी में हिंडोलना यदि प्रातः कालीन मुहूर्त में हो तो श्रृंगार में या सायंकालीन मुहूर्त में हो तो भी हिंडोलना में प्रभु श्रृंगार में ही विराजते है
- इस बार मुहूर्त प्रातःकालीन होने से श्रृंगार के दर्शन में हिंडोलना विजय है
- हिंडोलना विजय के दिन, प्रथम हिंडोलना रोपण के दिन धराये गये साज दीवालगरी, वस्त्र, श्रृंगार आदि सभी वैसे ही धराये जाते हैं
- इस अवसर पर गोविन्दस्वामी के चार हिंडोलना विजय के पद गाये जाते हैं.
- कीर्तन : (राग : मल्हार)
तैसोई वृन्दावन तेसीये हरित भूमि तेसीये वीर वधू चलत सुहाई माई l
तेसोई कोकिल कल कुहुकुहु कुंजत तेसोई नाचत मोर निरखत नयना सुखदाई ll 1 ll
तेसीय नवरंग नवरंग बनी जोरी तेसेई गावत राग मल्हार तान मन भाई l
‘गोविंद’ प्रभु सुरंग हिंडोरे झूले फूले आछे रंग भरे चंहु दिशते घटा जुरि आई ll 2 ll - कीर्तन : (राग : मल्हार)
झूलन आई व्रजनारी गिरिधरनलालजु के सुरंग हिंडोरना l
सुभग कंचन तन पहेरे कसुम्भी सारी गावत परस्पर हस मृदुबोलना ll 1 ll
ईत नंदलाल रसिकवर सुन्दर ऊत वृषभानसुता छबि सोहना l
रमकत रंग रह्यो पियप्यारी ‘गोविंद’ बलबल रतिपति जोहना ll 2 ll - कीर्तन : (राग : मल्हार)
झूलत सुरंग हिंडोरे राधामोहन l
बरन बरन चूनरी पहेरे व्रजवधू चंहू ओरे ll 1 ll
राग मल्हार अलापत सातसूरन तीनग्राम जोरे l
मदनमोहन जु की या छबि ऊपर ‘गोविंद’ बल तृण तोरे ll 2 ll - कीर्तन : (राग : मल्हार)
रंग मच्यो सिंघद्वार हिंडोरे व झूलना l
गौरश्याम तन नील पीतपट घनदामिनी हेम बिराजत निरख निरख व्रजजन मन फूलना ll 1 ll
ऊर पर वनमाल सोहे इन्द्रधनुष मानो उदित भयो मोतीनहार बगपंगति समतूलना l
वरषत नवरूप वारी घोख अवनि रत्न खचित ‘गोविंद’ प्रभु निरख कोटि मदन भूलना ll 2 ll
- कीर्तन : (राग : मल्हार)
- ये कीर्तन होने के उपरांत मुखियाजी, सभी भीतरिया आदि सेवक हिंडोलना की चार परिक्रमा करते हैं एवं तत्पश्चात आरती की जाती है और ठाकुरजी हिंडोलना से भीतर पधरा लिए जाते हैं.
- श्रीजी के उस्ताखाना के सेवक हिंडोलना की सभी साज बड़ी कर लेते हैं.
- आज से हिंडोलने की बिछायत, दीवालगरी आदि उतार लिए जाते हैं.
- केवल मणिकोठा में आगामी सप्तमी तक दीवालगरी रहती है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल की सुनहरी लप्पा की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी हरी मखमल वाली ही आती है
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं
- चांदी के पडघा के ऊपर माटी के कुंजे में शीतल सुगन्धित जल भरा जाता है
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में आज पट लाल एवं गोटी छोटी स्वर्ण की छोटी धराई जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सुनहरी लप्पा से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं
- श्रृंगार
- आज प्रभु को हीरों का छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची आदि सभी आभरण हीरे के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर आसमानी मलमल की सुनहरी बाहर की खिड़की वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
- मोतियों की माला के ऊपर चार पान घाट की जुगावली धराई जाती हैं.
- श्रीकंठ में त्रवल नहीं धराया जाता हैं, हीरे की बघ्घी धराई जाती हैं.
- पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में प्रभु को कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- आरसी श्रृंगार में लाल मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की दिखाई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा के तहत:
- मंगला: महा महोच्छव श्री गोकुल गाम
- राजभोग: महा मंगल महराने आज
- हिंडोरा:
- श्री गोविन्द स्वामी वाले चार पद
- तैसोई वृन्दावन तेसीये हरित, झूलन आई व्रजनारी
- झूलत सुरंग हिंडोरे राधामोहन, रंग मच्यो सिंघद्वार हिंडोरे
- शयन: पावस ऋतू आनंद
- मान: रसिक प्रीतम संग
- पोढवे: चरण कमल दोऊ
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
आँगन नंदके दधि कादौ l
छिरकत गोपी ग्वाल परस्पर प्रगटे जगमे जादौ ll 1 ll
दूध लियो दधि लियो लियो घृत माखन मांट संयुत l
घर घर ते सब गावत आवत भयो महरि के पुत ll 2 ll
बाजत तूर करत कुलाहल वारि वारि दे दान l
जायो जसोदा पुत तिहारो यह घर सदा कल्यान ll 3 ll
छिरके लोग रंगीले दीसे हरदी पीत सुवास l
‘मेहा’ आनंद पुंज सुमंगल यह व्रज सदा हुलास ll 4 ll
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जय श्री कृष्ण
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