व्रज – भाद्रपद शुक्ल नवमी, सोमवार, 05 सितम्बर 2022
सेवाक्रम:
- आज श्रीजी को राधाष्टमी का परचारगी श्रृंगार धराया जायेगा.
- परचारगी श्रृंगार में श्रीजी में सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं, केवल पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा नहीं धराया जाता है और आभरण कुछ कम होते हैं.
- गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.
- आज तकिया के खोल एवं साज जड़ाऊ स्वर्ण काम के आते हैं.
- दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.
- चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) आरती थाली में की जाती है.
- श्रीजी में सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है.
- साज
- श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली जन्माष्टमी वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी के ऊपर सफेद, तकिया के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी सफ़ेद मखमल वाली आती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- खेल के साज में पट व गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती है.
- वस्त्र
- श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली फूल वाली किनारी से सुसज्जित चाकदार वागा एवं चोली धरायी जाती है.
- सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का होता है.
- ठाड़े वस्त्र मेघ श्याम रंग के होते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का हीरा एवं माणक का भारी श्रृंगार धराया जाता है. – कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण मिलवा- हीरे, मोती, माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- उत्सव की हीरा की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है.
- मुखारविंद पर चंदन से कपोलपत्र किये जाते हैं.
- नीचे आठ पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार एवं माला धराए जाते हैं.
- श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि मालाजी धरायी जाती है.
- श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: नव नागरी प्यारी तू वृन्दावन
- राजभोग: तू देख सुता वृषभान की
- आरती: काम केलि कनक वेली
- शयन: रावल में आज जै जै कार
- मान: राधे जू के प्राण गोवर्धनधारी
- पोढवे: राय गिरधरन संग राधिका रानी
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
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जय श्री कृष्ण
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