व्रज – आश्विन शुक्ल अष्टमी, सोमवार, 3 अक्टूबर 2022
अष्टम विलास की भावना: नवविलास के अंतर्गत पुष्टिमार्ग में आज अष्टम विलास का लीलास्थल शांतन कुंड है. आज दुर्गाष्टमी भी है.
- आज के मनोरथ की मुख्य सखी भामाजी (भावनीजी) हैं और सामग्री चंद्रकला (सूतरफेणी) है.
- यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.
- श्रीजी को आज गोपीवल्लभ में मोहनथाल(डेढ़ बड़ी) आरोगाया जाता हैं.
- आज श्रीजी को सखड़ी में अठपुड़ा प्रकार आरोगाया जाता हैं.
- नवरात्रि में मर्यादामार्गीय शक्ति पूजन के मूल में शिव है जबकि पुष्टिमार्गीय शक्ति की लीला प्रकार के मूल में स्वयं नंदनंदनप्रभु श्रीकृष्ण हैl
- ‘तिहिंछिन प्रभुजी आप पधारे कोटिक मन्मथ मोहै l’
- आज श्रीजी की पिछवाई के सुन्दर चित्रांकन में गोपियाँ समूह में भद्रवन में वनदेवी के पूजन हेतु जा रही हैं किन्तु चिंतन एवं गुणगान नंदनंदन श्रीकृष्ण का ही कर रही हैं.
- आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
- रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं जिनका वर्णन मैं आगे भी दूंगा. आज महारास की सेवा का प्रथम मुकुट का श्रृंगार है जिसमें प्रभु प्रथम वेणुनाद करते हैं, गोपियाँ प्रश्न करती हैं, उपदेश तथा प्रणय गीत होते हैं जिससे रास के भाव से आती गोपीजनों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है.
- प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.
- अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजीका पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.
- जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है.
- जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.
- सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग पर सादी चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.
- यह श्रृंगार प्रभु को अनुराग के भाव से धराया जाता है.
- श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में नवविलास के भाव से विशेष रूप से मोहनथाल की सामग्री अरोगायी जाती है.
- जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.
- दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.
- साज
- साज सेवा में आज वेणुनाद सुन कर दोनों दिशाओं से प्रभु की ओर आते गोपियों के समूह की, रास के प्रारंभ के भाव की भद्रवन की लीला के अद्भुत चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पानघर की सेवा के तहत बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- प्रभु के सम्मुख चांदी की त्रस्टीजी धरे जाते हैं जो कि दिन के अनोसर में ही धरे जाते हैं.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है..
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज अमरसी तथा श्याम रंग के छापा की रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं काछनी धरायी जाती है.
- केसरी रंग के छापा का रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित रास-पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र श्वेत छापा के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज आज वनमाला का चरणारविन्द तक का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरे, मोती, एवं सोने के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- मीना की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- आज अलक धराया जाता हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला, कली, कस्तूरी एवं कमल माला के साथ रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- खेल के साज में पट अमरसी एवं गोटी नाचते मोर की आती हैं.
श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: ऐ बंसी नाद सुर साध के बजाई
- राजभोग: नटवर गत निर्तत है
- आरती: बन्यो मोर मुकुट नटवर वपु
- शयन: ग्र ग्र थुंग न किट थुंग
- मान: आज निकी बनी राधिका नागरी
- पोढवे: पोढ़े रसिक पिय प्यारी
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
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आठों विलास कियौ श्यामाजू,
शांतनकुंड प्रवेशजू ।
उनकी मुख्य भामा सारंगी,
खेलत जनित आवेशजू ।।१।।
सूरज मंदिर पूजन कर मेवा,
सामग्री भोगधरी ।
आनँद भरी चली व्रज ललना,
क्रीडन बनकों उमगि भरी ।।२।।
भद्रबन गमन कियौ बनदेवी,,
पूजन चंदनबंदन लीन ।
भोग स्वच्छ फेनी एनी,
सब अंबर अभरनचीने ।३।।
गावत आवत भावत चितवन,
नंदलालके रसमाती ।
कृष्णकला सुंदर मंदिरमें,
युवती भयी सुहाती।।४।।
देखी स्वरूप ठगी ललनाते,
चकचोंधीसी लाई ।
अँचवत दृगन अघात “दास रसिक,”
विहारीन राई ।।५।।
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जय श्री कृष्ण
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