व्रज – कार्तिक कृष्ण एकम सोमवार, 10, अक्टूबर 2022
दृश्य शरदोत्सव, कार्तिक स्नान आरंभ
विशेष: व्रज (विक्रमाब्द) में आज से कार्तिक मास प्रारंभ हो रहा है लेकिन कार्तिक स्नान कल से आरंभ हो चुका था. यशोदाजी एवं गोपियों ने कल से व्रत आरंभ कर कार्तिक कृष्ण सप्तमी व अष्टमी को मानसी-गंगा में स्नान कर, श्री कृष्ण-बलराम को भी स्नान करा कर इंद्रपूजन की शुरुआत कार्तिक कृष्ण नवमी के दिन से की थी. इस भाव से अन्नकूट महायज्ञ की शुरुआत कल अथवा आज के दिन से की जाती है.
- आज श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी देहलीज को हल्दी मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज से प्रतिदिन भीतर की देहरी हल्दी से मांडा जाता है, अन्नकूट के कीर्तन गाये जाते हैं.
- श्रीमस्तक के श्रृंगार में विशेष श्रृंगार मोरपंख की चन्द्रिका एवं कतरा के धराये जाते हैं.
- रासपंचाध्यायी की भावना के अनुसार श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच अध्याय के वर्णित श्रृंगार धराये जाते हैं. इसी श्रृंखला में आज महारास की सेवा का पंचम एवं अंतिम अध्याय का मुकुट का श्रृंगार है जिसमें शरद का दूसरा वैसा ही श्रृंगार और शयन में चन्द्रावलीजी के भाव से ठाकुरजी को श्वेत मलमल का तारा का उपरना धराने का वर्णन है.
- आज सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार कल की भांति ही होते हैं.
- इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है.
- जैसा कि हम जानते है प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. – मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है. अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.
- जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.
- जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.
- दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.
- साज
- साज सेवा में “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े शरद-रास कर रहें हैं ऐसी महारासलीला के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद लट्ठा की बिछावट की जाती है.
- आज सर्व साज शरद का ही आता है परन्तु दीवालगिरी, चंदरवा आदि बिछात नहीं होती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज कल की ही भाँति सुनहरी और रुपहली ज़री का सूथन व काछनी तथा मेघश्याम रंग की दरियाई (रेशम) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली धरायी जाती है.
- लाल रंग का रेशमी रास-पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र सफेद डोरिया के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज कल जैसा ही भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- हीरे की प्रधानता एवं मोती, माणक, पन्ना से युक्त जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर हीरे का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- आज पीठिका के ऊपर हीरे का जड़ाव का चौखटा नहीं धराया जाता है.
- कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
- हीरा का शरद उत्सव वाला कोस्तुभ धराया जाता हैं.
- श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- पट श्वेत ज़री का व गोटी जड़ाऊ काम की आती है.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में शरद की डांडी की दिखाई जाती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: मरगजी उर कुंद माल लोचन
- राजभोग: बन्यो रास मंडल
- आरती: अलाग लागन उरप तिरप
- शयन: पूरी पुरन मासी
- मान: शरद उजियारी में कैसे
- पोढवे: दोउ मिल करत भांवती बातियाँ
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
उत्सव दर्शन:
- कल अलौकिक (गुप्त) शरद थी जिसका आनंद प्रभु, उनकी अलौकिक सखियाँ एवं गोपियाँ लेती हैं.
- आज लौकिक (दृश्य) शरद है जिसमें शयन में श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी में शरद का मनोरथ होता है. जिसके दर्शन बाहर खुलते है.
- श्री नवनीतप्रियाजी नये बगीचे के बाहर वाले चबूतरे पर विराजित हो दर्शन देते हैं.
- शरद के भाव की साज-सज्जा की जाती है.
- शरद उत्सव को अरोगायी जाने वाली सामग्रियां भाव रूप में अरोगायी जाती हैं.
- श्रीजी को आज शयन के दर्शन में श्वेत सितारों का उपरना एवं श्याम झाई की छज्जेदार पाग धराये जाते हैं.
- छेड़ान के हल्के श्रृंगार एवं हीरा के आभरण धराए जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर श्याम झाई की छज्जेदार पाग पर रूपहरी लूम तुर्रा धराया जाता हैं.
- श्वेत सितारों वाली पिछवाई धराई जाती हैं.
- इसके अतिरिक्त एक और विशेष बात है कि आज विशेष रूप से शयन की आरती (श्रीजी में और श्री नवनीतप्रियाजी) में सभी बत्तियां बुझाकर की जाती है.
- आरती की लौ की रौशनी में सफेद सितारा के उपरने, पाग और हीरों के आभरण से सुसज्जित प्रभु के अद्भुत स्वरुप की अलौकिक छटा वास्तव में अद्वितीय और देवताओं को भी दुर्लभ होती है.
- आज के अतिरिक्त दर्शनों का यह अलौकिक आनंद मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी प्रथम (हरी) घटा, मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या द्वितीय (दूज को चंदा) को भी लिया जा सकता है.
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प्रीतम प्रीत ही तें पैये ।
यद्यपि रूप गुण शील सुघरता, इन बातन न रीजैयें ॥१॥
सतकुल जन्म करम शुभ लक्षण, वेद पुरान पढ़ैये ।
“गोविंदके प्रभु” बिना स्नेह सुवालों, रसना कहा जू नचैये ॥२॥
भावार्थ- विशुद्ध प्रेम ही अन्त:करण को पवित्र करता है. परम प्रीति ही भक्ति है. प्रभु प्रेम द्वारा ही वश में होते हैं.
रूप, गुण, शील, सुघड़ता इन सब से प्रभु प्रसन्न नहीं होते हैं. अच्छे कुल में जन्म होना, कर्म, शुभ लक्षण, वेद पुराणों का ज्ञान यह सब हो किन्तु प्रेम नहीं हो तो सब व्यर्थ है.
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राजभोग दर्शन – कीर्तन – (राग : सारंग)
हमारो देव गोवर्धन पर्वत गोधन जहाँ सुखारो l
मघवाको बलि भाग न दीजे सुनिये मतो हमारो ll 1 ll
बडरे बैठ बिचार मतो कर पर्वतको बलि दीजे l
नंदरायको कुंवर लाडिलो कान्ह कहे सोई कीजे ll 2 ll
पावक पवन चंद जल सूरज वर्तत आज्ञा लीने l
या ईश्वर को कियो होत है कहा इंद्र के दीने ll 3 ll
जाके आसपास सब व्रजकुल सुखी रहे पशुपारे l
जोरो शकट अछूते लेले भलो मतो को टारे ll 4 ll
माखन दूध दह्यो घृत घृतपक लेजु चले व्रजवासी l
अद्भुत रूप धरे बलि भुगतत पर्वत सदा निवासी ll 5 ll
मिट्यो भाग सुरपति जब जान्यो मेघ दीये मुकराई l
‘मेहा’ प्रभु गिरि कर धर राख्यो नंदसुवन सुखदाई ll 6 ll
जय श्री कृष्ण
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