व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी, शनिवार, 12 नवम्बर 2022
- आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी कृत छह स्वरुप का उत्सव दिवस
- विक्रमाब्द 1879 में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी ने श्री गोवर्धनघरण प्रभु श्रीजी तथा श्री नवनीतप्रियाजी के साथ श्री मथुरेशजीजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री द्वारकाधीशजी, श्री गोकुलनाथजी, श्री गोकुलचन्द्रमाजी तथा श्री मदनमोहनजी को पधराकर छप्पनभोग सहित विविध मनोरथ अंगीकृत कराये.
-इन सभी निधि स्वरूपों के साथ काशी के श्री मुकुंदरायजी को छठे घर के स्वरुप के रूप में पधराये थे. - इस उपरांत अन्य गोदी के स्वरूपों सहित कुल 14 स्वरुप पधारे थे परन्तु आज का उत्सव छह स्वरूपोत्सव ही कहा जाता है.
- उस दिन आपके द्वारा अंगीकार कराया लाल ज़री का साज एवं वनमाला का श्रृंगार आज भी धराया जाता है.
- आज का सेवाक्रम चन्द्रावलीजी की ओर से होता है.
सेवाक्रम:
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से माँडी जाती हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- पूरे दिन यमुना जल की झारी भरी जाती है. दो समय की आरती थाली से करी जाती हैं.
- आज से नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविंदलालजी महाराजश्री के उत्सव की पाँच दिन की बधाई बेठती हैं.
- आज नूतन उत्सव के कारण नूतन श्रृंगार अंगीकार किया जाता है. सामान्यतया श्रीजी में दुमाला के साथ कुंडल नहीं धराये जाते परन्तु आज ज़री के बीच के दुमाला के साथ मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- चन्द्रावलीजी के भाव से रुपहरी ज़री का अंतवर्ती पटका धराया जाता है.
- आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में स्वच्छ सफेद चाशनी वाली चन्द्रकला और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है वहीँ सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में श्रीजी में आज लाल आधारवस्त्र पर सुनहरी ज़री के बूटों के ज़रदोज़ी के काम वाली तथा श्याम आधारवस्त्र के ऊपर सुनहरी ज़री की पुष्प-लता की सुन्दर सज्जा वाले हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि एवं अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी में आज सुनहरी ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं ऊर्ध्वभुजा की ओर रुपहली ज़री का अंतवर्ती पटका धराया जाता है.
- श्वेत एवं सुनहरी ज़री के मोजाजी धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण उत्सववत हीरा की प्रधानता के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री के बीच के दुमाला के ऊपर पन्ना का सिरपैंच (रूप-चौदस को आवे वह), सुनहरी जमाव की बीच की चन्द्रिका (काशी की), एक कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी आदि सब माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्री हस्त में हीरा के वेणुजी एवं हीरा व पन्ना के वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर धराये जाते है.
- खेल के साज में पट काशी का एवं गोटी कूदती हुई गायों की आती हैं.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में आरसी सोना के डांडी की दिखाई जाती है.
- सायंकालीन सेवा में परिवर्तन:
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं.
- श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
- दुमाला बड़ा नहीं किया जाता और लूम-तुर्रा भी नहीं धराये जाते.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: अम्बर देहो मुरारी हमारे
- राजभोग: सातों रूप धरे
- आरती: नवल नन्द लाल नागर किशोर
- शयन: डगर चल गोवर्धन की
- मान: मौन मनायो मान चल
- पोढवे: रच रुच सेज बनायी
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जय श्री कृष्ण
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