व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी, मंगलवार, 22 नवम्बर 2022
विशेष:– आज श्री गुसांईजी के सप्तम लालजी श्री घनश्यामजी का प्राकट्योत्सव है. श्री गुसांईजी ने आपको श्री मदनमोहनजी का स्वरुप सेवा हेतु प्रदान किया था.
- एक बार ग्रीष्मकाल में छत पर आप प्रभु को पोढ़ाकर नैत्र बंदकर पंखा झल रहे थे, तभी कोई प्रभु व स्वामिनीजी के स्वरुप चुराकर ले गया. प्रभु के वियोगमें श्री घनश्यामजीने वियोग का अनुभव किया और विरह पदो का गान करके समय व्यतीत करके लीलामे प्रवेश किया. यह विरह पद ‘घनश्याम’ छाप से प्रसिद्द है।
- आपश्री द्वारा वल्लभाचार्यजी कृत ‘मधुराष्टकम्’ एवं श्री प्रभुचरण कृत ‘गुप्तरस’ ग्रंथ पर संस्कृत टीका लिखी गई हैं.
- आपके यहाँ विराजित यह स्वरुप श्री यज्ञनारायण भट्टजी को यज्ञवेदी में प्राप्त हुआ था. श्री हरिरायजी के वर्णन के अनुसार प्रभु श्री मदनमोहनजी एवं दोनों स्वामिनीजी के स्वरुप कुछ समय पश्चात नाथद्वारा में शाकघर में सेवक एक बाई के पास से पुनः प्राप्त हुए.
- इस कारण से आज श्री घनश्यामजी की ओर से श्रीजी को कुल्हे जोड़ का श्रृंगार धराया जाता है.
- श्री घनश्यामजी षडऐश्वर्य में वैराग्य के स्वरुप थे अतः प्रभु को मयूरपंख की जोड़, प्रभु में आपका अनुराग था अतः अनुराग के भाव के लाल वस्त्र एवं उभय स्वामिनी जी के भाव से पीले ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.
- आज गोपमास के भाव से श्री नवनीतप्रियाजी और कई अन्य कई पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में विशेष रूप से उड़द दाल की कचौरी अरोगायी जाती है.
आज की विशेषता:
- छप्पनभोग का मनोरथ, श्री द्वारिकाधीशजी का पाटोत्सव नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
- श्रीजी में घर के छप्पनभोग और अदकी के छप्पनभोग में कुछ अंतर होते हैं – नियम (घर) के छप्पनभोग की सामग्रियां उत्सव से पंद्रह दिवस पूर्व अर्थात मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है परन्तु अदकी के छप्पनभोग की सामग्रियां मनोरथ से आठ दिवस पूर्व ही सिद्ध होना प्रारंभ होती है. नियम (घर) के छप्पनभोग ही वास्तविक छप्पनभोग होता है क्योंकि अदकी का छप्पनभोगवास्तव में छप्पनभोग ना होकर एक मनोरथ ही है जिसमें विविध प्रकार की सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती है.
- नियम (घर) का छप्पनभोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन प्रातः लगभग 11 बजे खुल जाते हैं जबकि अदकी का छप्पनभोग मनोरथ राजभोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन दोपहर लगभग 12 बजे खुलते हैं. नियम (घर) के छप्पनभोग में श्रीजी के अतिरिक्त किसी स्वरुप को आमंत्रित नहीं किया जाता जबकि अदकी के छप्पनभोग मनोरथ में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार श्री नवनीतप्रियाजी में राजभोग अपेक्षाकृत कुछ जल्दी होते हैं और लालन अपने घर राजभोग अरोग कर श्रीजी में पधारते हैं व श्रीजी की गोदी में विराजित हो छप्पनभोग अरोगते हैं.
- नियम (घर) का छप्पनभोग उत्सव विविधता प्रधान है अर्थात इसमें कई अद्भुत सामग्रियां ऐसी होती है जो कि वर्ष में केवल इसी दिन अरोगायी जाती हैं परन्तु अदकी के छप्पनभोग मनोरथ
- संख्या प्रधान है अर्थात इसमें सामान्य मनोरथों में अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अधिक मात्रा (351)में अरोगायी जाती हैं.
सेवाक्रम:-
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज श्रीजी को नियम के लाल साटन के चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पन्ना की जडाऊ कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका धरायी जाती है.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- इसके अतिरिक्त आज गोपीवल्लभ भोग में ही श्री नवनीतप्रियाजी में से उड़द दाल की कचौरी व छुकमां दही श्रीजी के भोग हेतु आते हैं.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
- श्री गुसांईजी के सभी पुत्रों के उत्सव सातों गृहों में मनाये जाते हैं अतः आज द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी एवं तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) के घर से भी श्रीजी के भोग हेतु सामग्री आती है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज लाल साटन की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई सजाई जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल साटन के सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं इसी प्रकार के टंकमां हीरा के काम वाले मोजाजी धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार सेवा में श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण पन्ना के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर पन्ना की जड़ाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है.
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (सोने व पन्ना के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि धराये जाते है.
- खेल के साज में पट लाल एवं गोटी श्याम मीना की आती हैं.
- आरसी श्रृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती है.
- सायंकालीन सेवा में परिवर्तन:
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे धरायी जाती है परन्तु लूम तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: हरी जस गावत चली ब्रज सुन्दरी
- राजभोग: जयति रुक्मणीनाथ पद्मावती
- आरती: मोहन तिलक गो रोचन
- शयन: चम्पकली गन गनी राखी हो
- मान: राधा प्यारी रुसनो निवार
- पोढ्वे: रच रुच सेज बनाई
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जय श्री कृष्ण
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