व्रज– मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया शनिवार, 26 नवम्बर 2022
आज का श्रृंगार ऐच्छिक है: ऐच्छिक श्रृंगार उन दिनों में धराया जाता है जिन दिनों के लिए श्रीजी की सेवा प्रणालिका में कोई श्रृंगार निर्धारित नहीं होता है. इसकी प्रक्रिया के तहत प्रभु श्री गोवर्धनधरण की प्रेरणा सर्वोपरि है जिसके तहत मौसम के अनुसार तत सुख की भावना से पूज्य तिलकायत श्री की आज्ञा के अनुसार मुखियाजी के द्वारा श्रृंगार धराया जाता है. श्रीजी मंदिर से प्राप्त जानकारी के अनुसार निम्न श्रृंगार धराया जाता है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज हरे रंग की सिलमा सितारों के कशीदे के ज़रदोशी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई सजाई जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज हल्के हरे रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं.
- पटका मलमल का धराया जाता हैं.
- ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा में प्रभु को आज छोटा हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण गुलाबी मीना के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर हरी गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, कतरा चन्द्रिका और शीशफूल धराएं जाते हैं।
- श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल के एक जोड़ी धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट हरा व गोटी चाँदी की रखी है.
- आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
- क़तरा एवं चंद्रिका के साथ बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- सायंकालीन सेवा में परिवर्तन:
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: अति तप करत गोख कुमार
- राजभोग: लालन अनंत रितु मानी आए
- आरती: टेडी है री आली टेड़ी अलक
- शयन: सोही शीश दुरंगी पाग
- मान: झपट प्यारो तेरे गुनन की माला
- पोढवे: रंग महल गोविन्द
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जय श्री कृष्ण
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