व्रज – पौष शुक्ल सप्तमी, गुरूवार, 29 दिसंबर 2022
विशेष: शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को खांड़ के रस की मीठी लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.
आज भव्य चंवरी का मनोरथ होगा, विशेष सामग्री अरोगेंगे. विशेष मनोरथ होने से मंगला के पश्चात सीधे राजभोग के दर्शन खुलेंगे. श्रृंगार और ग्वाल के दर्शन बाहर नहीं खुलेंगे.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोशी के काम से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विवाह के सेहरा के श्रृंगार में विराजमान हैं.
- गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल रंग का खीनखाब का सूथन, चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं.
- लाल मलमल का रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- लाल ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग के दुमाला के ऊपर हीरा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है.
- श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ लाल एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि धराये जाते है.
- खेल के साज में पट लाल एवं गोटी राग रंग की आती हैं.
- आरसी उत्सववत दिखाई जाती है.
- सायंकालीन सेवा में परिवर्तन:
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं पर दुमाला ब ड़ा नहीं किया जाता हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर दुमाला पर टिका एवं सिरपेच धराये जाते हैं. लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.
- अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : राधे तू अतरंग भरी हो
- राजभोग : राधे जू नव दुल्ही दुल्हे हो मदन गोपाल
- आरती : लाल बातन पर बल जेये
- शयन : अरी चल दुल्हे देखन जाय
- मान : राधे जू के प्राण गोवर्धनधारी
- पोढवे : पोढ़ीये लाल लाडली संग
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जय श्री कृष्ण
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