व्रज – माघ शुक्ल पंचमी, गुरूवार, 26 जनवरी 2023
विशेष :- आज बसंत-पंचमी है. आज के दिन प्रद्युमन प्रादुर्भावोत्सव तथा कामदेव का प्रादुर्भाव हुआ था अतः इसे मदन-पंचमी भी कहा जाता है. यह उत्सव पूर्वोक्त उत्सवों में नूतन अनूठा और रसभरा माना जाता है.
- शीत ऋतु लगभग पूर्ण हो चुकी है और बसंत का आगमन हो गया है अतः आज से प्रभु बसंत खेलते हैं. आज से सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में शीतकालीन साज बड़ा (हटा) कर सम्पूर्ण सफ़ेद साज धरा जाता है.
- आज से डोलोत्सव (40 दिन) तक ज़री के वस्त्र नहीं धराये जाते हैं.
– आज से डोल तक खंडपाट, चौकी, पडघा आदि सभी साज चांदी के आते हैं.
– आज से निज-मंदिर में प्रभु स्वरुप के सम्मुख धरी जाने वाली लाल रंग की रुईवाली पतली रजाई (तेह) नहीं बिछाई जाएगी जो कि शीतकाल में प्रतिदिन राजभोग सरे पश्चात उत्थापन तक प्रभु सुखार्थ चरण-चौकी से शैया मन्दिर में शैयाजी तक बिछाई जाती है.
– आज से दिन के अनोसर में श्रीजी को सौभाग्य-सूंठ भी नहीं आरोगायी जाएगी. अब केवल रात्रि अनोसर में ही प्रभु को सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाएगी जो कि आगामी दिनों में शीत रहने तक अरोगायी जाएगी.
– आज से प्रतिदिन छोगा छड़ी धरायी जाती है व आज से चालीस दिनों तक प्रभु को धरायी जाने वाली गुंजामाला दोहरी धराई जाती है.
– माघ, फाल्गुन एवं चैत्र मास श्री चन्द्रावलीजी के सेवा मास हैं परन्तु आज से दस दिन की सेवा श्री यमुनाजी के भाव से होती है. बसंत खेल के दस दिन हैं जो कि सात्विक भक्तों के खेल के दिन हैं.
– गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन इन चार वस्तुओं से प्रभु को खेल खिलाया जाता है. गुलाल ललिताजी के भाव से, अबीर श्री चन्द्रावलीजी के भाव से, चोवा श्री यमुनाजी के भाव से और केसरयुक्त चन्दन कंचनवर्णी श्री राधिकाजी (श्री स्वामिनीजी) के भाव से आते हैं.
– इस प्रकार श्रीजी आगामी दस दिन इन चार वस्तुओं से खेलते हैं. अनामिका उंगली से टिपकियां करके सूक्ष्म खेल होता है.
– आज से चालीस दिन तक गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन एवं केसर रंग से प्रभु व्रजभक्तों के साथ होली खेलते हैं. होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. प्रिया-प्रियतम परस्पर भी होली खेलते हैं. कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं. ऐसी रसमय होली उत्सव की आज शुरुआत होती है. - श्रीजी का सेवाक्रम :- होली उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- दिनभर सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दिन में सभी समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) थाली की आरती की जाती है.
– गेंद, चौगान व दिवला सभी चांदी के आते हैं.
– मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल से अभ्यंग कराया जाता है.
– आज से प्रतिदिन छोगा व श्रीहस्त में पुष्पों की छड़ी धरी जाती है.
– आज से 10 दिन तक जैसे श्रृंगार हों उसी भाव के बसंत के पद गाये जाते हैं.
– प्रत्येक पद बसंत से सम्बंधित राग में ही गाये जाते हैं.
– श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी का भोग अरोगाया जाता है.
– आज श्रीजी में दो राजभोग अरोगाये जाते हैं. प्रथम राजभोग में नियम के भोग के साथ अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में मीठी सेव, केसरी पेठा आदि अरोगाये जाते हैं.
– आज की सेवा में बसंत अधिवासन किया जाता है. बसंत के कलश की स्थापना की जाती है. रजत कलश (घट या हांडा) में जल भरकर इसे खजूर की डाल, आम के वृक्ष के पत्तों सहित आम्र मंजरी (आम के वृक्ष पर लगने वाली कोंपलें), सरसों के पीले पुष्प सहित टहनियां, यव (गेहूं) की बालियाँ, बेर आदि एवं विविध पुष्पों से सजाया जाता है.
– कलश को लाल वस्त्र से लपेटा जाता है जो कि किनारी से सुसज्जित होता है.
– प्रथम राजभोग अरोगाये जाने के पश्चात इस कलश का अधिवासन किया जाता है. कामदेव के पांच बाणों के भाव से ऊपर वर्णित पांच वस्तुओं से कलश को सजाया जाता है. कामदेव के पूजन के भाव से ही कलश का पूजन किया जाता है. बसंत के कलश को सजाकर लकड़ी की चौकी पर पधराकर आचमन कर हाथ में जल, अक्षत लेकर निम्नलिखित श्लोक बोला जाता है.
‘भगवत: श्री पुरुषोत्तमस्य वृन्दावने वसन्तक्रीड़ार्थं वसंताधिवासनम अहं करिष्ये.’
– तत्पश्चात जल-अक्षत छोड़कर, कलश के ऊपर कुंकुम व अक्षत के छींटे डाल मिश्री के बूरे की कटोरी एवं बीड़ा का भोग रखा जाता है.
– इस प्रकार अधिवासन के उपरांत पहले राजभोग दर्शन खुलते हैं.
– आज राजभोग की आरती करते समय पुष्प उडाये जाते हैं.
– दूधघर-शाकघर की सामग्रियां, सूखे-मेवे, फल आदि सामग्रियों का एक थाल सजाकर सिंहासन के पास रखा जाता है. प्रभु को बसंत खिलाने के पूर्व इस थाल, फरगुल एवं झारीजी के ऊपर सफ़ेद वस्त्र ढँक दिया जाता है.
– प्रथम श्री ठाकुरजी को दंडवत प्रणाम कर क्रमशः केसरी चन्दन से, गुलाल से, अबीर से एवं अंत में चोवा से खिलाया जाता है. इसमें सर्वप्रथम प्रभु की पाग, वागा, सूथन इस रीती से क्रमानुसार अनामिका उंगली से टिपकियां कर प्रभु को खिलाया जाता है.
– तत्पश्चात मालाजी, वेत्रजी, गेंद, गादी को रंगा जाता है. अंत में सिंहासन वस्त्र तथा पिछवाई को केवल चन्दन एवं गुलाल से रंगा जाता है. चंदरवा को केवल चन्दन से छांटा जाता है.
– इसके बाद डोल-तिबारी में दर्शन कर रहे वैष्णवों पर अबीर और गुलाल छांटी जाती है. खेल हो जाने के बाद दर्शन बंद होने के पश्चात मंदिर-वस्त्र किया जाता है अर्थात गुलाल को पोंछ के साफ़ किया जाता है और उत्सव भोग रखे जाते हैं.
– द्वितीय राजभोग के उत्सव भोग में गेहूं की पाटिया के लड्डू, कठोर मठडी, कूर (घी में सेके हुए मेवा मिश्रित कसार) के गुंजा, छुट्टी-बूंदी, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, तले हुए बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार), विविध प्रकार के फलफूल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.
25 बीड़ा की बड़ी शिकोरी आती हैं.
– धुप-दीप, तुलसी, शंखोदक किया जाता है. भोग का समय पूर्ण होने के पश्चात भोग सराकर द्वितीय राजभोग के दर्शन खोले जाते हैं.
– आज के दिन केवल प्रथम राजभोग में ही गुलाल से प्रभु को खेलते हैं. कल से चालीस दिन तक प्रतिदिन ग्वाल और राजभोग में प्रभु को गुलाल, अबीर से खिलाया जायेगा.
– खेल का सर्व साज (गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन) प्रतिदिन नये साजे जाते हैं और राजभोग पश्चात के अनोसर में भी श्रीजी के पास सजे रहते हैं. खेल के भोग एवं खेल का साज सायं उत्थापन समय सराये जाते हैं.
– बसंत का कलश संध्या-आरती के पश्चात मंदिर के बाहर पधराया जाता है. यह कलश केवल आज के दिन ही धरा जाता है.
– उत्सव भोग भी केवल आज के दिन ही धरे जाते हैं. कल से केवल खेल के साज का थाल धरा जायेगा जो कि खेल के श्रमभोग के रूप में अरोगाया जाता है.
– अनामिका से चन्दन-गुलाल आदि की टिपकियां कर खेल होवे इस भाव से सूरदास जी ने गाया है –
– ‘नेक महोंडो मांडन देहो होरीके खेलैया, जो तुम चतुर खिलार कहावत अंगुरिन को रस लेहो.’
– आज भोग समय फल के साथ अरोगाये जाने फीका के स्थान पर तले सूखे मेवे की बीज-चलनी अरोगायी जाती है वहीँ संध्या आरती में प्रभु को अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर पाटिया (सेव) के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सज्जा में आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादा पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि रजत के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को श्वेत अड़तु का सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं.
- पटका मोठड़ा का धराया है.
- ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
- सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण में आज श्रीजी में मध्य का अर्थात छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण फाल्गुन के माणक, स्वर्ण एवं लाल मीना के मिलवा धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर श्वेत पाग (श्याम खिड़की की) के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पट्टीदार जड़ाऊ कटिपेंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, स्वर्ण बंटदार के वेणुजी एवं कटी परदो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- आज विशेष रूप से श्रीमस्तक पर सिरपैंच में आम के मोड़ धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि धराये जाते है.
- खेल के साज में पट चीड़ का, गोटी चांदी की
- आरसी दोनो समय बड़ी डांडी की वाली दिखाई जाती है.
- संध्याकालीन सेवा :-
- संध्या-आरती दर्शन उपरान्त श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े कर श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं और छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं.
- आज से श्रीजी में शयन के दर्शन बाहर खुलने प्रारंभ हो जायेंगे और प्रतिदिन लगभग सायं 7 बजे खुलेंगे. आज से शयन दर्शन संभवतया चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नववर्ष) अथवा चैत्र शुक्ल नवमी (रामनवमी) तक गर्मी के आगमन के आधार पर होते रहेंगे. उसके पश्चात विजय दशमी तक शयन के दर्शन भीतर ही होते हैं.
- वर्षभर में केवल आज के दिन श्रीजी में नौ दर्शन खुलते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : मेरो भाई माधो सों मन मान्यो
- श्रृंगार : आज और काल और दिन प्रतिदिन छवि और
- राजभोग : वसंत अष्टपदी फागुन शुक्ल 10 तक
- हरी रिह व्रज युवती शत संगे – आदि
- दुसरे राजभोग में : नन्द के द्वार हम आई
- आरती : देखत बसंत समे ब्रज सुन्दर
- शयन : गोवर्धन की शिखर चारु पर
- आयो रितु राज
- मान : ऐसो पत्र पठायो नृप वसंत
- पोढवे : खेलत खेलत पोढ़ी
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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